कोविड-19 के बाद की दुनिया का 'आम चलन' होगा बिल्कुल अलग | जमीनी हकीकत | | सुनीता नारायण / April 20, 2020 | | | | |
कोविड-19 हमारे जीवनकाल की सर्वाधिक उथल-पुथल भरी, सर्वाधिक विनाशकारी और सबसे ज्यादा निर्धारक परिघटना है। मैं दूसरी किसी चीज के बारे में सोच भी नहीं सकती जो इतने कम समय में इस तरह फैली हो। गत दिसंबर में इस बीमारी का पहला मामला चीन में आया था और अप्रैल के मध्य तक पूरी दुनिया की एक-तिहाई आबादी अपने घरों में कैद हो चुकी है। ऐसे संकट की कोई भी नजीर नहीं है जो सरकारों को बता सके कि उन्हें क्या करना है, अर्थव्यवस्थाओं को किस तरह बंद करना है और कब उन्हें दोबारा खोलना है? यह वायरस उत्परिवर्तन से उपजा है जो जानवर से इंसानों तक आया, यह खुद को छिपाने के नए तरीके ईजाद करने में सफल होने से घातक है। शरीर में लक्षण न दिखने पर भी हम इस वायरस के संवाहक हो सकते हैं।
लेकिन हमें अपनी दुनिया की सामूहिक कमजोरी के बारे में सोचना चाहिए। सर्वाधिक रसूखदार नेता, सर्वाधिक उन्नत वैज्ञानिक प्रतिष्ठान और सबसे ताकतवर आर्थिक शक्तियों को इस तुच्छ वायरस के रूप में तगड़ी चुनौती मिली है। इस स्थिति में हमें विनम्रता के साथ सोचना चाहिए कि क्या अलग करने की जरूरत है, हमें किस तरह से काम करने और व्यवहार करने की जरूरत है? लेकिन मुझे शक है कि हम इस बारे में गलती करेंगे।
जब भी कोई विनाशकारी घटना होती है तो ध्यान तात्कालिक राहत एवं बचाव कार्यों पर होता है, न कि इस पर कि इससे भविष्य के लिए क्या सीख सकते हैं? कोविड-19 महामारी के प्रबंधन की अनिवार्यताएं बेहद तात्कालिक एवं अपरिहार्य किस्म की हैं। अस्पतालों एवं स्वास्थ्य देखभाल की समुचित व्यवस्था वाले संपन्न देशों में भी महामारी के चलते हजारों लोगों की मौत हो रही है। ऐसे में विकासशील देशों में इस मानव त्रासदी की गंभीरता का अंदाजा लगाइए जहां ये सुविधाएं नगण्य हैं। महामारी के चलते गरीबों को बड़ी संख्या में अपना काम-धंधा गंवाना पड़ा है, उनकी आर्थिक स्थिति रोजगार की सुरक्षा पर नहीं बल्कि रोज की कमाई पर निर्भर होती है।
लेकिन कोविड-19 का प्रकोप खत्म होने के बाद भी जिंदगी होगी। सवाल है कि नई सामान्य स्थिति क्या होगी? चलिए, अपने वैश्वीकृत विश्व के सबसे अहम मुद्दे के बारे में चर्चा करते है: अगली आपातस्थिति आने से निपटने के लिए हमारे नेताओं एवं संस्थानों को इस महामारी से क्या सीखना होगा? कड़वा सच तो यह है कि मिलकर काम करने की अहमियत पता होते हुए भी हमने ऐसा नहीं किया।
चीन ने कोरोनावायरस के बारे में बाकी दुनिया को जल्द जानकारी नहीं दी जिससे वायरस चीन से बाहर फैला और संक्रमण बढ़ता गया। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने पर्याप्त तेजी नहीं दिखाई या शायद उसकी बात को उतनी तवज्जो नहीं दी गई। जनवरी के अंत तक डब्ल्यूएचओ वायरस के चीन तक ही सीमित रखने के दावे कर रहा था, यहां तक कि उसने कुछ देशों द्वारा लगाए गए यात्रा प्रतिबंधों का विरोध भी किया था और इस संकट को महामारी घोषित करने में भी आनाकानी की। जब इसने कदम उठाए तब भी इसने स्वास्थ्य आपातकाल की गंभीरता के हिसाब से काम नहीं किया। इस संकट काल में डब्ल्यूएचओ ने विश्वसनीयता गंवा दी है और वह भी ऐसे वक्त में जब दुनिया को आगे बढ़ाने के लिए सशक्त आवाज की दरकार है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की ऐसे समय में भी कई हफ्तों तक बैठक नहीं हुई और जब हुई तो भी यह बच्चे के रुदन जैसा ही था।
सवाल महज इनका नहीं है। हरेक देश ने यही दिखाया है कि वह इस संकट के समय में केवल अपने बारे में सोच रहा है। हालत ऐसी है कि देश स्वास्थ्य कर्मचारियों के लिए जरूरी सुरक्षात्मक पोशाक पीपीई और मास्क के लिए डाका डालने लगे हैं, दवाओं की आपूर्ति के लिए प्रतिस्पद्र्धा कर रहे हैं और इस जानलेवा बीमारी की पहली वैक्सीन बनाने की होड़ में लगे हैं। बीमारी का प्रसार देशों की अंतर्निर्भरता और भूमंडलीकरण की वजह से हुआ है, ऐसे में तमाम देशों के मौजूदा रुख काफी डराते हैं।
सच है कि यह वायरस चीन के एक ऐसे प्रांत से निकला है जिसके निवासियों का खानपान के साथ मनहूस रिश्ता जगजाहिर है। लेकिन संक्रमण दुनिया भर में इसलिए फैला कि हम एक अंतर-संबद्ध दुनिया में रहते हैं। यह भी स्पष्ट है कि हम अपनी सबसे कमजोर कड़ी जितने ही मजबूत होते हैं। अगर वायरस का प्रसार जारी रहता है तो सबसे कमजोर स्वास्थ्य सेवा वाले या युद्ध एवं संकट से बेहाल किसी देश में यह वायरस बना रहेगा। हम इस जंग को एक साथ होने पर ही जीत पाएंगे।
यही वजह है कि मौजूदा वैश्विक नेतृत्व की शोचनीय हालत को लेकर हमें फिक्रमंद होना चाहिए। कई लोगों का कहना है कि कोविड-19 बहुपक्षीयता के अंत, संयुक्त राष्ट्र और उसके बुनियादी सिद्धांतों का खात्मा लेकर आया है।
लेकिन कोविड-19 और जलवायु परिवर्तन के रूप में आसन्न वैश्विक आपातस्थिति में एकपक्षीयता काम नहीं करेगी। कोविड-19 की ही तरह जलवायु परिवर्तन का सामना करने के लिए भी वैश्विक नेतृत्व की जरूरत है। अगर एक देश भी उत्सर्जन जारी रखता है तो बाकी देशों के सारे प्रयास निरर्थक हो जाएंगे। लेकिन अगर हम चाहते हैं कि सभी देश खुलकर इस कोशिश में शामिल हों तो फिर हमें एक सहकारी समझौता तैयार करना होगा जिसमें समाज के अंतिम व्यक्ति, दुनिया के अंतिम देश के पास भी विकास का अधिकार हो। हमें एक वैश्वीकृत अंतर्निर्भर विश्व में वैश्विक नेतृत्व की जरूरत है। लिहाजा, कोविड-19 के बाद की दुनिया की नई सामान्य स्थिति में हमें इस बात को याद रखना होगा। हम इस समस्या का समाधान कैसे करते हैं, यह आने वाले कल का सवाल है लेकिन हमें यह करना ही होगा।
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