कोरोना की जटिलता से बचाएगा आय पुनर्वितरण | पार्थसारथि शोम / April 20, 2020 | | | | |
कोरोनावायरस एक फ्लू वायरस है जो नजदीकी संपर्क से फैलता है। कुछ समय तक सुप्तावस्था में रहने के बाद वायरस अन्य लोगों को भी संक्रमित करता है और फिर तेजी से फैलने लगता है। संक्रमित व्यक्ति की श्वसन प्रणाली पर सबसे ज्यादा असर पड़ता है जिससे कमजोर प्रतिरक्षा वाले लोगों की जान भी जा सकती है। आधुनिक विज्ञान अपनी तमाम कोशिशों के बावजूद अभी तक इसकी काट खोज पाने में नाकाम रहा है। कहा जाता है कि यह वायरस जानवरों से इंसान तक आया है और अब इंसानों से बिल्ली प्रजाति तक पहुंच रहा है। इस वायरस के प्रसार की नई दिशा करीब 200 देशों तक फैल चुकी महामारी के बारे में एक नया आयाम जोड़ती है। अप्रत्याशित रूप से इस खतरे को अभी तक स्वीकार भी नहीं किया गया है।
मानव-जाति एक बार फिर भारी उथल-पुथल एवं जटिलता के चंगुल में फंस चुकी है। दुनिया ट्रंप के काल में अंतरराष्ट्रीय व्यापार की उथल-पुथल, श्रम आंदोलन और पूंजी की अस्थिरता के साथ अपना तालमेल बिठाने में लगी थी। देश भारी उठापटक के दौर से निकल रहे एक स्थिर वैश्विक समाधान के लिए तैयार हो रहे थे। देश 'जटिल मैंडलब्रॉट समूह' रूपी इस नव-सामान्य की तरफ बढ़ रहे थे। लेकिन अचानक ही दुनिया के इस तालाब में एक पत्थर फेंक दिया गया और उससे नई उथल-पुथल होने लगी।
वैश्विक अर्थव्यवस्था के जैव-आर्थिक अस्थिरता के झटके से जूझने के बीच उभरी नई चुनौतियों पर काबू पाना सरकारों के बूते के बाहर की बात है। सच तो यह है कि आने वाले वक्त में ये चुनौतियां बढ़ेंगी। मानवता को एक नव-सामान्य की राह पर ले जाने के बजाय अग्रणी देश एक-दूसरे पर दोषारोपण में लगे हुए हैं।
इस समस्या को दूर करने के लिए एक परिचित आर्थिक मॉडल पर भी विचार किया जा सकता है। वह मॉडल आर्थिक उत्तरजीविता एवं पुनरुद्धार और संवेदना के साथ सामाजिक कार्य का है। सवाल है कि किसकी उत्तरजीविता, किसका पुनरुद्धार और किसके लिए सामाजिक कार्य हों? सामाजिक कार्य आर्थिक रूप से बहिष्कृत समूहों के संरक्षण के लिए किया जाना है। पुनर्वितरणकारी नीति अपनाने का कदम पूंजी बाजारों में नई जान फूंकने के पहले उठाया जाना है।
सवाल है कि ऐसा क्यों करना है? आर्थिक वृद्धि दर पूंजी उपयोग पर मिलने वाले प्रतिफल की दर और श्रम की आपूर्ति पर मिलने वाले प्रतिफल की दर का औसत होती है। आदर्श रूप में ये तीनों दरें समान होनी चाहिए। पूंजी बाजारों से प्रतिफल की दर अगर श्रम पर मिलने वाले प्रतिफल की दर से अधिक होती है तो यह आदर्श बाधित होता है। यह असंतुलन दशकों से जारी रहा है। इसके जारी रहने से गरीबी बढ़ती है और आय पुनर्वितरण की जरूरत पैदा होती है।
भारत में ग्रामीण रोजगार के लिए चलाई गई योजना मनरेगा, खाद्य संरक्षा कानून, शहरी काम एवं गरीबी उन्मूलन के लिए एनयूएलएम एवं यूआरएमयूपी, बाल विकास के लिए आईसीडीएस और वन अधिकारों के लिए एफआरए जैसे कार्यक्रम और कानूनों ने गरीबी दूर करने में योगदान दिया है। लेकिन जमीनी स्तर पर व्याप्त भ्रष्टाचार एवं खामियों से इनका प्रभावी क्रियान्वयन नहीं हो पाया है। ये कार्यक्रम पर्याप्त नहीं रहे हैं, अन्यथा हर साल गांवों से शहरों की ओर होने वाला श्रमिक प्रवास कम होता।
भारत की आबादी का दो-तिहाई ग्रामीण इलाकों में रहता है और उनमें से एक बड़ी संख्या हर साल शहरों में काम की तलाश में आती है। कोरोना का प्रकोप बढ़ते ही सरकार के आदेश से शहरी कारोबार और निर्माण क्षेत्र पूरी तरह से ठप हो गया और इसके पहले प्रवासी कामगारों को भोजन एवं आश्रय मुहैया कराने की व्यवस्था भी केंद्र या राज्यों की सरकारों ने नहीं की। यह अव्यवस्था नोटबंदी और जीएसटी लागू करने के पहले तैयारी में बरती गई खामियों की ही याद दिलाती है।
ऐसी स्थिति में मजदूरों ने अपने गांव लौटने का रास्ता चुना। पुरुष एवं महिला कामगारों को छोटी जगहों पर कैदी की तरह रखने या सड़कों के किनारे पैदल ही चलते जाने या केमिकल छिड़काव कर सैनिटाइज करने के दृश्य काफी पीड़ादायक हैं। संवेदना के बगैर कड़ाई से लॉकडाउन का अनुपालन कराने से तात्कालिक समस्या दूर हो सकती है, बुनियादी हल नहीं निकल सकता है।
ऐसी खबरें भी आईं कि गरीब लोगों की बस्तियों में जांच के लिए गए स्वास्थ्य कर्मचारियों के दल पर पथराव किए गए। वहां के निवासियों ने बाद में इसके लिए माफी मांगी लेकिन जांच के लिए राजी न होने के पीछे शायद यही डर था कि कोरोना से संक्रमित पाए जाने पर उन्हें भी अलग-थलग रख दिया जाएगा या उन पर केमिकल छिड़काव होगा?
सवाल है कि कोरोना संकट खत्म होने के बाद वैश्विक मैंडलब्रॉट समूह कैसा होगा? वैश्विक महामंदी के दौर की 'भिखारी-तुम्हारा-पड़ोसी' वाली नीति पर अमेरिका एक बार फिर चलेगा और ऐसे संकेत मिलने भी लगे हैं। अपने डॉक्टरों के लिए फ्रांस ने चीन से 30 लाख मास्क मंगवाने के ऑर्डर दिए थे। लेकिन वे मास्क फ्रांस भेजे जाने के पहले ही अमेरिका ने ऊंचे दाम देकर पूरा स्टॉक खरीद लिया। ब्रिटेन ने चीन से तीन हजार वेंटिलेटरों की खरीद का ऑर्डर दिया हुआ है। दूसरे यूरोपीय देश भी जरूरी स्वास्थ्य उत्पाद आयात कर रहे हैं। ब्रिटेन के एक पूर्व प्रधानमंत्री ने कहा था कि ब्रेक्सिट के बाद अर्थव्यवस्था एक कदम आगे बढ़ेगी। लेकिन अमेरिका या यूरोप क्या कभी भी महत्त्वपूर्ण घरेलू जरूरतों वाले उत्पादों के विनिर्माण की अपनी क्षमता दोबारा हासिल कर पाएंगे? ऐसे में लगता है कि भुगतान संतुलन में चालू खाते की स्थिति ऐसी ही रहेगी।
चीन अकेला वैश्विक आपूर्तिकर्ता नहीं हो सकता है। भारत के पास विनिर्माण की बहुत संभावनाएं हैं और यह वक्त इस क्षमता को हासिल करने के लिए प्रयास तेज करने का है। अमेरिकी राष्ट्रपति ने कोविड महामारी के इलाज में मददगार मानी जा रही मलेरिया-रोधी दवा हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्विन की आपूर्ति के लिए भारत से मदद मांगी। हालांकि भारत का कहना था कि वह अपने पड़ोसी देशों को पहले यह दवा देगा लेकिन अमेरिकी राष्ट्रपति ने चेतावनी भरे लहजे में कहा कि भारत कई वर्षों तक अमेरिका से लाभ लेता रहा है और अब अगर वह अनुकूल कदम नहीं उठाता है तो उसे इसके दुष्परिणाम भी झेलने होंगे।
आखिर भारत के पुनर्वितरण कार्यक्रमों का दायरा बढ़ाने के लिए पैसे कहां से आएंगे? पांच साल के लिए कॉर्पोरेट आयकर की दर में कटौती के फैसले को वापस लीजिए, न्यूनतम वैकल्पिक कर बढ़ाइए, कर रियायतें बंद कीजिए, 1 करोड़ रुपये से अधिक की व्यक्तिगत आय पर कर की दर को 1-2 करोड़ रु, 2-3 करोड़ रु, 3-4 करोड़ रु और ऐसे ही आगे की आय के हिसाब से बढ़ाइए। शादियों में दिए जाने वाले उपहारों पर कर छूट को भी खत्म कीजिए। गरीबों को सुरक्षा देने के लिए जीएसटी दर में बढ़ोतरी से परहेज करें। शराब, तंबाकू और फास्ट फूड जैसे हानिकारक उत्पादों पर उत्पाद शुल्क बढ़ा दीजिए। इसी के साथ दिखावटी निर्माण परियोजनाओं को रोक दीजिए। सरकारों की यह गलत सोच रही है कि भव्य एवं विशाल स्मारक सबको आर्थिक रूप से सशक्त बनाने से कहीं बेहतर विरासत साबित होंगी।
क्या गांवों से शहरों की ओर होने वाले पलायन को रोकने के लिए आय वितरण में गड़बड़ी दूर करने के बारे में गंभीरता से सोचा जा सकता है? यह हमारे नीति-निर्माताओं एवं बुद्धिजीवियों का नैतिक दायित्व है। एक प्रस्ताव यह हो सकता है कि गरीबी उन्मूलन के लिए वर्ष 2025 का लक्ष्य तय किया जाए। जनसंख्या नियंत्रण पर जोर रहे लेकिन बलपूर्वक नहीं। इस जंग में अधिक कर लगाकर और अनुत्पादक व्यय रोककर पुनर्वितरण का दायरा बढ़ाइए। फिर आपके पास गरीबों के लिए पर्याप्त संसाधन होंगे ताकि वे आखिरकार भारतीय नागरिक के तौर पर स्वीकार किए जाएं।
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