पंजाब में अब मक्के की खेती की तैयारी | |
दिलाशा सेठ और संजीव मुखर्जी / नई दिल्ली 04 19, 2020 | | | | |
देशबंदी की अवधि बढऩे की संभावना से श्रमिकों की आवाजाही प्रभावित रहने की संभावना है। इसे देखते हुए पंजाब सरकार ने राज्य के किसानों को धान की जगह मक्के और कपास की खेती के लिए प्रोत्साहित करने की बड़ी योजना बना रही है।
धान की रोपाई जून में शुरू होने की उम्मीद है, जो दक्षिण पश्चिम मॉनसून पर निर्भर होता है। इसके लिए खेत तैयार करने का काम पहले से शुरू हो जाता है।
कोरोनावायरस के कारण हुई देशबंदी की वजह से धान की रोपाई के लिए विस्थापित मजदूर उपलब्ध नहीं हैं। ऐसे में पंजाब सरकार किसानों से अनुरोध कर रही है कि वे खरीफ सत्र में अगली फसल के लिए मक्के या कपास की खेती करें।
पिछले महीने जब देशबंदी की घोषणा हुई तो उत्तर प्रदेश और बिहार के धान रोपाई में निपुण मजदूर अपने घर लौट गए, इसकी वजह से पंजाब सरकार को खरीफ की फसल की रणनीति पर फिर से विचार करना पड़ रहा है।
पंजाब ने केंद्र सरकार से भी कहा है कि वह मक्के के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में बढ़ोतरी करे और मक्का आधारित उद्योगों को प्रोत्साहन दे, जिससे किसान राज्य में धान की रोपाई से मक्के की बुआई की ओर प्रोत्साहित हों।
मक्के का मौजूदा न्यूतम समर्थन मूल्य 2019-20 के लिए 1,760 रुपये प्रति क्विंटल है, जबकि सामान्य श्रेणी के धान का एमएसपी 1,815 रुपये प्रति क्विंटल है। धान की जहां सरकारी खरीद सुनिश्चित होती है, वहीं मक्के की सरकारी खरीद नहीं होती जिसकी वजह से इसकी खेती किसानों के लिए आकर्षक नहीं है। पंजाब सरकार किसानों को धान की जगह खरीफ सत्र में मक्के व अन्य विकल्पों को अपनाने पर काम कर रही है, वहीं 2019 में करीब 7.5 लाख हेक्टेयर धान किसानों ने वैकल्पिक फसलों को चुना है, लेकिन इस बार अन्य फसलों पर ध्यान केंद्रित करना ज्यादा अहम हो गया है क्योंकि मजदूर न मिलने का डर बढ़ा हुआ है।
पंजाब के वित्त मंत्री मनप्रीत सिंह बादल ने बिजनेस स्टैंडर्ड से हाल में कहा था, 'रबी की फसल की मड़ाई पंजाब में चिंता का विषय नहीं है, बल्कि हमारी अगली फसल धान को लेकर चिंता है। धान की रोपाई पूरी तरह से मजदूरों पर निर्भर है और पंजाब में धान रोपने की विशेषज्ञता या रोपाई करने वाले श्रमिक नहीं हैं।'
पंजाब भारत का मुख्य अनाज उत्पादक राज्य है, जहां हर साल करीब 26 से 27 लाख हेक्टेयर जमीन पर धान की खेती होती है। लेकिन 2019 में धान के रकबे में कमी आई, क्योंकि कुछ किसानो ने धान की जगह मक्के, कपास और महंगी बासमती व सब्जियों की खेती शुरू कर दी। मक्के की खेती के लिए प्रति एकड़ 3 से 4 श्रमिकों की जरूरत होती है, जो फसल की बुआई करते हैं, वहीं मशीन से बुआई करकने वाले एक एकड़ जमीन की बुआई दो घंटे से कम समय में कर सकते हैं। मक्के की फसल तैयार होने के बाद उसे तोडऩे व काटने में भी धान की तुलना में कम श्रमिक लगते हैं क्योंकि यह काम पूरी तरह से कंबाइन हार्वेस्टर से किया जा सकता है। इसकी तुलना में धान रोपने से लेकर फसल की कटाई तक ज्यादा श्रमिकों की जरूरत होती है।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के पूर्व निदेशक और हरियाणा के मैज डाइवर्सीफिकेशन ग्रुप के चेयरमैन सैन दास ने कहा, 'किसी भी हाल में मैं लोगों से धान की जगह मक्के की खेती करने को कहूंगा क्योंकि इसमें धान की तुलना में ज्यादा आर्थिक लाभ है। इसमें पानी की भी कम जरूरत पड़ती है और पर्यावरण को नुकसान कम होता है।' देशबंदी के 20 दिन पहले पंजाब में लॉकडाउन हो गया था, क्योंकि राज्य में बड़ी संख्या में प्रवासी लोग हैं।
ऐसे में सरकार यह सुनिश्चित करने की कवायद कर रही है कि राज्य में बड़े पैमाने पर मक्के और कपास के बीज उपलब्ध रहें। बादल ने कहा, 'सरकार यह सुनिश्तित करने का प्रयास कर रही है कि किसान जिले में एक उचित स्थान से बीज प्राप्त कर सकें।'
केंद्र से मक्के का न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ाने के अलावा पंजाब ने मक्के से एथेनॉल बनाने मात्रा बढ़ाने की अनुमति देने की मांग की है, जिससे उसे पेट्रोल में मिलाया जा सके।
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