देसी प्रतिस्पर्धियों से पीछे विदेशी दवा कंपनियां | |
राम प्रसाद साहू / 04 19, 2020 | | | | |
पिछले कुछ वर्षों के दौरान अपनी भारतीय जेनेरिक दवा कंपनियों को मात देने के बाद विदेशी बहुराष्ट्रीय कंपनियों का दबदबा अब फीका पड़ रहा है। परिचालन और शेयर बाजार, दोनों मोर्चों पर इसका अंदाजा लग गया है। कैलेंडर वर्ष 2020 के शुरू से ही विदेशी दवा दिग्गजों की भारतीय सहायक इकाइयों के शेयर 6.9 फीसदी मजबूत हुए हैं। सेंसेक्स के कमजोर प्रदर्शन को देखते हुए यह मजबूती कम नहीं है। समान अवधि में सेंसेक्स में 26.5 फीसदी तक की कमजोरी आई है। हालांकि तुलनात्मक तौर पर, प्रमुख 16 भारतीय दवा कंपनियों ने 16.5 फीसदी का प्रतिफल दिया है।
मजबूत विकास परिदृश्य और आकर्षक मूल्यांकन को देखते हुए दवा क्षेत्र की रेटिंग में बदलाव के साथ एमएनसी समेत सभी कंपनियों में निवेशकों की दिलचस्पी बढ़ेगी। विश्लेषकों का मानना है कि विदेशी दवा कंपनियों का भारतीय बिजनेस मॉडल मजबूत है और उनका 100 फीसदी राजस्व घरेलू बाजार से आता है और इस वजह से उनमें अल्पावधि से मध्यावधि में वृद्धि और राजस्व की अच्छी संभावना है। हालांकि हाल के महीनों में उनकी चमक कुछ हद तक फीकी पड़ी है।
दवा बाजार में शोध संगठन एआईओसीडी-एडब्ल्यूएसीएस ने संकेत दिया है कि मार्च ऐसा महीना रहा जब फार्मा एमएनसी ने अपनी भारतीय प्रतिस्पर्धियों की तुलना में कमजोर प्रदर्शन किया। बाजार भागीदारी के लिहाज से प्रमुख सात एमएनसी समेत बड़ी कंपनियों ने 8.2 फीसदी की वृद्धि दर्ज की जबकि भारतीय कंपनियों के लिए यह 10.2 फीसदी और कुल बाजार वृद्धि 9.8 फीसदी थी। एचडीएफसी सिक्योरिटीज इंस्टीट्यूशनल रिसर्च के बंशी देसाई ने कहा, 'भारतीय कंपनियों की तुलना में फार्मा एमएनसी की धीमी वृद्धि के मुख्य कारण राजस्व में पुराने ब्रांडों का ज्यादा योगदान, नई पेशकशों में कमी, और पोर्टफोलियो पर कीमत नियंत्रण का प्रभाव शामिल हैं।'
एमएनसी दवाओं की कीमत उनके स्थानीय वैरिएंट के मुकाबले 30 फीसदी तक ज्यादा होती है और जब ये कीमतें नियंत्रित की जाती हैं तो इससे विदेशी कंपनियों को भारतीय कंपनियों की तुलना में ज्यादा अनुपात में कीमतें घटाने के लिए बाध्य होना पड़ता है। इसके अलावा, प्रमुख ब्रांडों (बिक्री में 50 फीसदी योगदान) पर निर्भरता को देखते हुए कीमत नियंत्रण से राजस्व वृद्धि प्रभावित हुई है। अन्य समस्या अपने भारतीय प्रतिस्पर्धियों के मुकाबले फार्मा एमएनसी द्वारा नई पेशकशों की सुस्त दर भी है। भारतीय कंपनियां अपनी विदेशी प्रतिस्पर्धियों के मुकाबले लागत नियंत्रण के साथ जल्द अपने पोर्टफोलियो में बदलाव लाने में सक्षम रही हैं।
आईआईएफएल रिसर्च का मानना है कि फार्मा एमएनसी के लिए कीमत नियंत्रण वाले वर्ष में जोखिम बढ़ रहा है। दवा कीमत नियंत्रण आदेश यानी डीपीसीओ में 2020 में संशोधन किया जाना है। भारतीय जेनेरिक कंपनियों द्वारा रणनीति में बदलाव से भी बाजार भागीदारी में मजबूती आ रही है। देश से बाहर बड़े अवसरों को देखते हुए भारतीय जेनेरिक कंपनियां विकसित और उभरते बाजारों में अपनी उपस्थिति बढ़ा रही हैं। हालांकि, समस्याओं (चाहे यह मौद्रिक उतार-चढ़ाव से संबंधित हो, या नियामकीय तथा वृद्धि से संबंधित) ने उन्हें अपना दृष्टिकोण बदलने के लिए बाध्य किया है।
प्रभुदास लीलाधर के सुरजीत पाल का कहना है, 'वैश्विक बाजारों में वृद्धि से जुड़ी समस्याओं को देखते हुए बड़ी जेनेरिक कंपनियों ने भारतीय बाजार पर अपना ध्यान बढ़ाया है। इसके अलावा, मंदी को ध्यान में रखते हुए भी भारतीय उपभोक्ताओं की खरीदारी क्षमता प्रभावित हुई है क्योंकि वे अब बहुराष्ट्रीय ब्रांडों के महंगे उत्पादों के बजाय जेनेरिक और कम कीमत वाले दवा उत्पादों को पसंद कर रहे हैं।' भारतीय बाजार में आक्रामकता वर्ष 2015 से किए गए अधिग्रहणों की वजह से भी स्पष्टï रूप से दिखी है। टॉरंट फार्मा ने 2015 और 2018 में एल्डर और यूनिकेम के फोर्टफोलियो का अधिग्रहण किया। ताजा अधिग्रहण जाइडस ने किया है। जाइडस ने हाइंज के पोर्टफोलियो को
खरीदा है।
उत्पाद पेशकशों और सहायता के लिए अपनी सूचीबद्घ सहायक इकाइयों के साथ मुकाबला करने वाली फार्मा एमएनसी की 100 फीसदी स्वामित्व वाली सहायक कंपनियों ने हितों का टकराव पैदा किया है। अभिषेक शर्मा और राहुल जिवानी ने सनोफी इंडिया का उदाहरण दिया है, जिसमें थेरेपी क्षेत्रों के बीच कोई अंतर नहीं है, जिन्हें सूचीबद्घ या पूर्ण स्वामित्व वाली कंपनी द्वारा पेश किया जा सकता है। फार्मा एमएनसी में, ऐबट इंडिया अन्य कंपनियों से अलग दिख रही है और उसने बाजार भागीदारी में लगातार इजाफा किया है। आईआईएफएल रिसर्च के अनुसार, कंपनी एमएनसी प्रतिस्पर्धियों के बीच नई पेशकशों के संदर्भ में मजबूती से आगे बढ़ी है और इस वजह से वह व्यापक आधार के बावजूद भारत में सबसे तेजी से बढ़ रही बहुराष्टï्रीय कंपनी बन गई है।
भारतीय कंपनियों की मजबूत बाजार भागीदारी और फार्मा एमएनसी के महंगे मूल्यांकन को देखते हुए विश्लेषकों का मानना है कि भारतीय कंपनियां अल्पावधि से मध्यावधि में अपनी विदेशी प्रतिस्पर्धियों को लगातार मात देने में सफल रहेंगी।
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