सरकार ने आज प्लांटेशन उत्पादों, उसके प्रसंस्करण और विपणन से जुड़े मानकों में ढील दी है। इससे उन फसलों को मदद मिलेगी, जो प्रसंस्करण न होने से खराब हो रही हैं और जब तक देशबंदी पूरी तरह खत्म नहीं हो जाती है, उनकी मांग में कमी रहेगी।
उत्पादकों का कहना है कि मानकों में आज दी गई ढील से उन्हें मदद मिलेगी और वे देशबंदी खत्म होने पर होने वाली मांग के लिए तैयारी कर सकेंगे। बहरहाल इस समय चाय, रबर उत्पादों, कॉफी आदि की मांग बहुत कम है क्योंकि दुकानें, होटल, खुदरा दुकानें, कार्यालय व अन्य वाणिज्यिक प्रतिष्ठान बंद हैं।
चाय बागानों में फसलें बड़े पैमाने पर बर्बाद हुई हैं। बागान मालिक उन्हें बचाकर बेचना चाहते हैं और वे नीलामी शुरू होने का इंतजार कर रहे हैं। बहरहाल कोच्चि को छोड़कर हर जगह नीलामी बंद है। रबर की खेती करने वाले टैपिंग बढ़ाएंगे और प्रसंस्करणकर्ता इसका प्रसंस्करण करेंगे, जिसे देशबंदी खत्म होने के बाद होने वाली मांग पूरी की जा सके। इसके पहले इन गतिविधियों में 25 प्रतिशत मजदूरों को काम करने की अनुमति थी, लेकिन अब इनकी संख्या बढ़ाकर 50 प्रतिशत की गई है।
छूट 20 अप्रैल से लागू होगी।
केंद्रीय गृह मंत्रालय की ओर से जारी अधिसूचना में कहा गया है, 'चाय, कॉफी, रबर और काजू के प्रसंस्करण, पैकेजिंग, बिक्री और विपणन के क्षेत्र में 50 प्रतिशत कर्मचारियों को काम करने की अनुमति होगी।' इससे चाय, कॉफी, रबर प्लांटेशन की आपूर्ति शृंखला बरकरार रखी जा सकेगी।
करीब 60 लाख किलो चाय बिक्री के लिए उपलब्ध है। पूर्वी भारत की 7 चाय नीलामी समितियां परिचालन शुरू करने को इच्छुक हैं और संबंधित सरकारों से मंजूरी का इंतजार कर रही हैं। चाय की पिछली बोली 6-7 अप्रैल को आयोजित की गई थी, जहां राज्य की पीडीएस खरीद एजेंसी ने सबसे ज्यादा खरीदारी की थी। शेष नीलामी केंद्रों पर अभी प्रक्रिया का इंतजार है।
कलकत्ता टी ट्रेडर्स एसोसिएशन के सेक्रेटरी कल्याण सुंदरम ने कहा, 'हमने राज्य सरकार से पहले ही नीलामी शुरू कराने के लिए संपर्क साधा है और मंजूरी की प्रतीक्षा कर रहे हैं।' असम में पौधरोपण कंपनियों ने अपने कर्मचारियों की संख्या घटाकर 50 प्रतिशत और पश्चिम बंगाल में 25 प्रतिशत कर दी है, जो इस समय झाडिय़ों को साफ करने और फसल तैयार करने में लगे हैं। छोटे चाय उत्पादक राज्य सरकार से स्पष्टीकरण चाहते हैं कि वे अपने उत्पाद फैक्टरियों को बेच सकेंगे और फैक्टरियों में काम चालू हो सकेगा। अगर पत्तियों का प्रसंस्करण 48 घंटे में न किया जाए तो वे खराब हो जाती हैं।
केरल के एसोसिएशन आफ प्लांटर्स के सचिव अजित बालाकृष्णन ने कहा, 'चाय के मामले में पहली बारिश तक फसल पर काम चलता है और हम संभवत: 50 प्रतिशत कर्मचारियों के साथ काम कर सकते हैं। लेकिन रबर के मामले में यह संभव नहीं है। मॉनसून के पहले की बारिश के पहले हमें काम पूरा करना होता है और हम पहले ही 21 दिन देर कर चुके हैं। 50 प्रतिशत कर्मचारियों के साथ हम मॉनसून के पहले काम खत्म कर पाएंगे, यह संभव नहीं लगता।' कॉफी के मामले में यह राहत देरी से आई है। कर्नाटक के उत्पादक और कर्नाटक प्लांटर्स एसोसिएशन के सदस्य रोहन कोलाको ने कहा कि फसल का सीजन फरवरी में पूरा हो चुका है।
यूनाइटेड प्लांटर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष आरएम नागप्पन ने कहा कि प्लांटेशन गतिविधियां शुरू करने के साथ यह अहम है कि पूरी आपूर्ति शृंखला की गतिविधियां बहाल की जाएं।