इस साल झमाझम बरसेंगे मॉनसूनी बादल! | |
संजीव मुखर्जी / नई दिल्ली 04 15, 2020 | | | | |
देश में कोविड-19 महामारी के बढ़ते प्रकोप और अर्थव्यवस्था पर इसके प्रतिकूल प्रभावों की आशंका के बीच मौसम के मोर्चे पर अच्छी खबर आई है। देश में इस साल दक्षिण-पश्चिम मॉनसून सामान्य रहने का अनुमान है। भारतीय मौसम विभाग के पहले अनुमान के मुताबिक इस साल मॉनसून दीर्घावधि औसत का 100 फीसदी रहेगा।
हालांकि विशेषज्ञों का कहना है कि सामान्य मॉनसून का जून से शुरू होने वाली खरीफ फसलों की बुआई पर कितना सकारात्मक असर रहेगा, यह इस बात पर निर्भर करेगा कि देश में कोविड-19 महामारी का कितने समय तक और कितना व्यापक असर रहता है और इससे फ सलों की कटाई और बुआई की गतिविधियां किस कदर प्रभावित होती हैं।
केयर रेटिंग्स के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस ने कहा, 'मुझे लगता है कि बुआई पर मॉनसून से ज्यादा इस बात का फर्क पड़ेगा कि अगले कुछ महीनों में देश में कोविड महामारी की क्या स्थिति रहती है। अगर यह संकट बढ़ता है तो इससे मजदूरों की उपलब्धता और समय पर फसलों की बुआई पर गंभीर असर होगा। साथ ही किसानों के पास नकदी की उपलब्धता भी प्रभावित होगी।'
उन्होंने कहा कि सामान्य मॉनसून कृषि क्षेत्र के लिए अच्छी खबर है लेकिन अभी यह कहना जल्दबाजी होगी कि इसका कितना सकारात्मक असर होगा क्योंकि इस बीच कई किंतु-परंतु हैं। अच्छी फ सल से 2020-21 में देश की कृषि विकास दर बढ़ेगी लेकिन अगर मांग सुस्त रहती है तो इससे किसानों की आय कम होगी। ऐसा होता है तो ग्रामीण क्षेत्रों में स्थिति और बदतर होगी, जहां पिछले कुछ वर्षों के दौरान वृद्धि दर सामान्य से कम रही है। मौसम विभाग का कहना है कि दक्षिण-पश्चिम मॉनसून के दौरान 71 फीसदी संभावना सामान्य या अधिक बारिश की है और 29 फीसदी संभावना इसके सामान्य से कम रहने की है।
मॉनसून के प्रदर्शन पर प्रतिकूल असर डालने वाला अल नीनो प्रभाव भी इस बार तटस्थ रहने की उम्मीद है और अनुमान के कुछ मॉडलों के मुताबिक मॉनसून के उत्तराद्र्घ में यह ला नीना में बदल सकता है। अल नीनो उस प्रभाव को कहते हैं जिसमें पूर्वी उष्णकटिबंधीय प्रशांत महासागर की सतह का तापमान दीर्घावधि तापमान से 0.5 डिग्री अधिक बढ़ जाता है जबकि ला नीना में इसकी उलट स्थिति होती है। अल नीनो भारत में मॉनसून के प्रदर्शन में बड़ी भूमिका निभाता है। मौसम का पूर्वानुमान व्यक्त करने वाली निजी एजेंसी स्काईमेट के मुताबिक 1880 से 2014 के बीच यानी 135 वर्षों के आंकड़े दिखाते हैं कि अल नीनो प्रभाव वाले वर्षों में भारत में 90 फीसदी मौकों पर सामान्य से कम मॉनसूनी बारिश हुई और ऐसे 65 वर्षों में सूखा पड़ा।
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