महामारी पर काबू के लिए सामूहिक परीक्षण प्रक्रिया | अतनु विश्वास / April 15, 2020 | | | | |
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के महानिदेशक टेड्रोस एडेनॉम गेब्रेसस का पूरी दुनिया के लिए महज एक ही संदेश है कि अधिक से अधिक लोगों के परीक्षण किए जाएं। निश्चित तौर पर यह कोविड-19 महामारी के खिलाफ जंग में एक अनिवार्यता है। गेब्रेसस ने कहा, 'सभी देश सभी संदिग्ध मामलों के परीक्षण करने लायक होने चाहिए, वे इस महामारी के खिलाफ अपना संघर्ष आंखें बंद कर नहीं लड़ सकते हैं।' इस महामारी के खिलाफ दक्षिण कोरिया को मिली कामयाबी का एक बड़ा कारण बड़े पैमाने पर परीक्षण करना भी रहा है। दक्षिण कोरिया 4.40 लाख लोगों का कोरोना संक्रमण परीक्षण कर चुका है जो प्रति दस लाख आबादी पर 8,572 का औसत है। हालांकि दुनिया के लगभग हरेक हिस्से में कोरोना टेस्ट किट की भारी कमी भी होने से परीक्षण कम हो पा रहे हैं।
कोविड-19 परीक्षण के आंकड़े अलग-अलग देशों में पॉजिटिव पाए गए मामलों के अनुपात में विविधता दिखा रहे हैं। ऐसे में स्वाभाविक है कि अगर महामारी गंभीर रूप अख्तियार करती है तो यह अनुपात भी बढ़ेगा। वहीं अगर संबंधित देश आक्रामक ढंग से परीक्षण करता है तो इस अनुपात में कमी भी आएगी। मसलन, हॉन्गकॉन्ग में 30 मार्च तक किए गए 90,000 परीक्षणों के चलते यह अनुपात बेहद कम (सिर्फ 0.8 फीसदी) है लेकिन इटली में 2 अप्रैल तक 5.80 लाख से अधिक परीक्षण किए जाने के बावजूद पॉजिटिव टेस्ट रिपोर्ट प्रतिशत 19.8 फीसदी के उच्च स्तर पर है।
कोविड-19 टेस्ट किट की मौजूदा कमी के बीच मेरे मन में यह ख्याल आ रहा है कि क्या कुछ सरल सांख्यिकीय तकनीकें कारगर हो सकती हैं? क्या हम कम टेस्ट किटों से ही अधिक लोगों की जांच कर सकते हैं? कोविड-19 टेस्ट असल में संदिग्ध संक्रमित व्यक्ति से लिए गए नमूनों में न्यूक्लिक एसिड की गुणवत्तापरक मौजूदगी का पता लगाने वाला एक रिवर्स ट्रांसक्रिप्शन पॉलिमेरेस चेन रिएक्शन (आरटी-पीसीआर) परीक्षण है। मैं इस संभावना पर विचार कर रहा था कि ये परीक्षण एक साथ कई लोगों के समूह पर किए जा सकते हैं या नहीं। मेरे हिसाब से इस सामूहिक परीक्षण के लिए यह प्रक्रिया अपनाई जा सकती है:
मान लीजिए कि 100 लोगों में कोविड-19 के संक्रमण की जांच करनी है। इसके लिए पहले उन्हें पांच-पांच लोगों के 20 समूहों में बांट दें। फिर एक किट से किसी एक शख्स के नमूने की जांच करने के बजाय उस समूह में शामिल सभी पांच लोगों के नमूने मिला दिए जाएं और फिर उस मिले-जुले नमूने की जांच की जाए। अगर वह नमूना निगेटिव निकलता है तो फिर समूह के सभी पांचों लोगों को निगेटिव घोषित कर दिया जाए। वहीं अगर नमूने का नतीजा पॉजिटिव आता है तो फिर उस समूह में कम-से-कम एक व्यक्ति संक्रमित जरूर है। उस स्थिति में सभी पांचों लोगों का अलग-अलग परीक्षण किया जाएगा।
भारत में गत 1 अप्रैल तक पॉजिटिव पाए गए नमूनों का प्रतिशत 3.4 फीसदी था। देश भर में किए गए कुल 47,951 परीक्षणों में से 1637 लोग ही पॉजिटिव पाए गए थे। इसका मतलब है कि अगर हम पांच-पांच लोगों के समूह का परीक्षण करें तो हमें या तो केवल एक टेस्ट किट (निगेटिव मामलों में) या फिर छह किटों (पॉजिटिव पाए जाने पर) की जरूरत पड़ेगी। लेकिन एक व्यक्ति के पॉजिटिव पाए जाने की आशंका महज 3.4 फीसदी होने से उसके निगेटिव पाए जाने की प्रायिकता 0.966 हो जाती है। ऐसी स्थिति में पॉजिटिव होने पर एक समूह के लिए पांच अतिरिक्त परीक्षण किए जाने की प्रायिकता 15.9 फीसदी ही रह जाती है। यह प्रक्रिया अपनाने पर पांच-पांच लोगों के 20 समूहों वाले 100 लोगों की जांच के लिए औसतन 36 से भी कम परीक्षणों की जरूरत पड़ेगी।
साधारण गुणा-गणित का इस्तेमाल करने पर मुझे ऐसा लगता है कि एक समूह में छह लोगों को शामिल कर सामूहिक परीक्षण किया जा सकता है। इस तरह कम परीक्षणों की भी जरूरत पड़ेगी। इस तरह से परीक्षण करने पर 1,000 लोगों का कोरोना संक्रमण जांचने के लिए करीब 354 टेस्ट किटों की ही जरूरत रह जाएगी।
हालांकि यह प्रक्रिया उस समय उतनी असरदार नहीं हो पाएगी जब पॉजिटिव पाए जाने की संभावना अधिक हो। अगर एकल परीक्षणों के 10 फीसदी मामले पॉजिटिव पाए जाने लगें तो फिर 100 लोगों का परीक्षण करने के लिए चार लोगों का समूह बनाना होगा और उसके लिए करीब 60 किटों की जरूरत होगी। अगर हम अधिक लोगों का परीक्षण कर पाते हैं तो किसी भी हाल में पॉजिटिव मामले सामने आने की संभावना घटेगी। इस तरह सामूहिक परीक्षण प्रक्रिया अधिक असरदार साबित हो पाएगी।
हम इस दृष्टिकोण का इस्तेमाल दो चरणों वाले परीक्षण में भी कर सकते हैं। पहले चरण में हम 15 लोगों के अपेक्षाकृत बड़े समूह का परीक्षण कर सकते हैं। अगर उस सामूहिक परीक्षण का नतीजा पॉजिटिव आता है तो फिर उन 15 लोगों को पांच-पांच लोगों के तीन छोटे समूहों में बांट सकते हैं और हरेक पॉजिटिव समूह के लिए पूर्व-निर्धारित प्रक्रिया अपनाई जा सकती है। संबंधित डॉक्टर इस प्रक्रिया को अधिक असरदार बनाने के लिए समूहों का गठन विवेकपूर्ण ढंग से कर सकते हैं।
सांख्यिकीय नजरिये से देखें तो यह प्रक्रिया ठीक है। लेकिन इसी के साथ मैं एक शर्त भी लगाता हूं कि चिकित्सकीय नजरिये से शायद मैं कुछ चीजें नहीं समझ पा रहा हूं। यह प्रक्रिया उस समय काम नहीं करेगी जब कुछ कोविड-19 निगेटिव लोगों के नमूने पॉजिटिव पाए गए व्यक्ति के साथ मिल जाएं और उस जांच के नतीजे निगेटिव आएं। एक सांख्यिकीविद के तौर पर मैं इस संभावना पर कोई टिप्पणी नहीं कर सकता।
निश्चित रूप से दुनिया भर की प्रयोगशालाओं में कोविड-19 की रक्त जांच के लिए एंटीबॉडी परीक्षणों के विकास की दिशा में जोर-शोर से काम चल रहा है और जल्द ही यह उपलब्ध हो जाने की संभावना है। रक्त जांच से कोविड-19 संक्रमण के सटीक एवं जल्द नतीजे मिल सकेंगे और महामारी पर काबू पाने में भी इससे काफी मदद मिलने की संभावना है।
(लेखक भारतीय सांख्यिकीय संस्थान कोलकाता में सांख्यिकी के प्रोफेसर हैं)
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