लॉकडाउन से बाहर निकलना लागू करने जितना पेचीदा | दिल्ली डायरी | | ए के भट्टाचार्य / April 14, 2020 | | | | |
अधिकांश राज्य लॉकडाउन को दो सप्ताह तक बढ़ाने के पक्ष में रहे, इसलिए इस बात पर मंथन करना होगा कि कोविड-19 के प्रसार को रोकने के लिए सरकार ने अब तक किस तरह और किस गति से काम किया है। देश में कोविड-19 के पहले मामले की पुष्टि 30 जनवरी को हुई थी और अगले चार दिनों में यह संख्या तीन पर पहुंच गई। लेकिन करीब एक महीने यानी 1 मार्च तक इसमें कोई इजाफा नहीं हुआ।
मार्च के पहले हफ्ते इसमें तेजी से बढ़ोतरी हुई और 4 मार्च तक देश में पुष्ट मामलों की संख्या 28 पहुंच गई। उसी दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट किया कि वह होली मिलन कार्यक्रम में हिस्सा नहीं लेंगे और साथ ही उन्होंने कोरोनावायरस के खतरे को देखते हुए देशवासियों को भी भीड़भाड़ से दूर रहने की सलाह दी।
उन्होंने लोगों को स्वैच्छिक रूप से संयम बरतने और बीमारी से निपटने के लिए सावधान रहने की हिदायत दी और इस तरह कोरोनावायरस के खिलाफ सामाजिक आंदोलन में उनका यह पहला प्रयास था। देश के विभिन्न हिस्सों में 9 और 10 मार्च को होली मनाई जानी थी और कुछ हद तक लोगों पर उनकी सलाह का असर पड़ा। कई स्थानों पर होली का रंग थोड़ा फीका रहा।
होली के एक दिन बाद यानी 11 मार्च को देश में कोविड-19 के मामलों की संख्या 62 पहुंच गई। सरकार ने 13 मार्च से 15 अप्रैल तक अपनी सारी सीमाएं सील कर दीं और प्रवासी भारतीयों समेत सभी तरह के पर्यटक वीजा निलंबित कर दिए। 23 मार्च से 15 अप्रैल तक सभी अंतरराष्टï्रीय उड़ानें भी रद्द कर दी गईं।
अंतरराष्ट्रीय यात्राओं पर रोक के एक दिन बाद यानी 14 मार्च को देश में कोविड-19 के मामलों की संख्या 102 पहुंच गई। इसके बाद छह दिन में यानी 20 मार्च को यह संख्या दोगुना होकर 244 पहुंच गई। इससे एक दिन पहले मोदी ने देश को संबोधित किया था और लोगों को एकदूसरे से सामाजिक दूरी बनाने और 22 मार्च रविवार को घर से बाहर नहीं निकलने की गुजारिश की। वायरस के प्रसार को रोकने के लिए उन्होंने लोगों को स्वैच्छिक रूप से घरों में ही रहने को कहा और इस जंग में जन भागीदारी का उनका यह दूसरा प्रयास था। उन्होंने यहां तक संकेत दिया था कि 22 मार्च का जनता कफ्र्यू देश को आने वाले दिनों के लिए तैयार करेगा।
जब कोविड-19 के मामलों की संख्या महज तीन दिन में दोगुना होकर 23 मार्च को 499 पहुंच गई तो सरकार चौकन्नी हो गई। अगले दिन मोदी ने 24 मार्च की मध्यरात्रि से देशव्यापी लॉकडाउन की घोषणा कर दी। साथ ही उन्होंने स्वास्थ्य उपकरणों और सुविधाओं के लिए 15,000 करोड़ रुपये के पैकेज की भी घोषणा की। उससे पहले उसी दिन वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने विभिन्न आर्थिक नियमों के अनुपालन की समयसीमा में छूट की घोषणा की। दो दिन बाद कामगारों और गरीबों के लिए 1.7 लाख करोड़ रुपये के पैकेज की घोषणा की गई।
फिर भी, देशव्यापी लॉकडाउन की घोषणा के महज चार घंटे के भीतर इसके क्रियान्वयन ने देश को सकते में डाल दिया और इससे खासकर लाखों प्रवासी कामगारों, गरीबों, छोटी कंपनियों और असंगठित क्षेत्र के उद्मियों को खासी परेशानी का सामना करना पड़ा। देशव्यापी लॉकडाउन की घोषणा और आजीविका के बुनियादी साधनों का क्रम गलत हो गया। बाद के दिनों में स्थिति बेहतर हुई लेकिन देश के विभिन्न हिस्सों से अब भी लोगों की मुश्किलों की खबरें आ रही हैं। इस सदमे ने गरीबों को गहरे जख्म दिए हैं जिन्हें भरने में लंबा समय लगेगा।
कुल मिलाकर इस बीमारी को रोकने की रणनीति कुछ हद तक कारगर रही। 23 मार्च को देश में कोविड-19 के 499 पुष्ट मामले थे जो छह दिन बाद यानी 29 मार्च को दोगुना होकर 1,024 पहुंच गई। लेकिन बाद के हफ्ते में इसमें तेजी आई। महज चार दिन में मामले दोगुना हो गए। 29 मार्च को 1,024 मामले थे जो 2 अप्रैल को 2,069 पहुंच गए। इसके बाद फिर चार दिनों में यानी 6 अप्रैल को यह संख्या दोगुनी होकर 4,281 हो गई।
हालांकि इसके बाद इस गति धीमी हुई है। अगले छह दिनों में यानी 12 अप्रैल तक ये मामले दोगुना होकर 8,447 पहुंचे। गौर करने वाली बात है कि करीब एक पखवाड़े पहले बड़ी संख्या में प्रवासी कामगार शहरों और कस्बों से अपने गांव लौटे थे और इससे बिहार या उत्तर प्रदेश में मामलों की संख्या में कोई तेजी नहीं आई है। प्रवासी कामगारों में अधिकांश इन्हीं दो राज्यों से आते हैं। साथ ही रोज होने वाली जांच की संख्या में भी बढ़ोतरी हुई है। देश में अब तक कुल 189,000 से अधिक लोगों की जांच की गई है जिनमें से करीब 4.5 फीसदी ही संक्रमित पाए गए हैं। यह औसत दूसरे अधिकांश देशों की तुलना में बहुत कम है।
देश में अब तक इस बीमारी के प्रसार और जांच की संख्या में क्रमिक बढ़ोतरी से साफ है कि इसका प्रकोप दूसरे देशों की तुलना में कम है। सरकार ने इस बीमारी की प्रसार शृंखला को पूरी तरह तोडऩे के लिए लॉकडाउन को 3 मई तक बढ़ा दिया है। हालांकि, इससे आर्थिक गतिविधियों को गहरा झटका लगेगा। साथ ही यह भी साफ है कि सामाजिक दूरी, सार्वजनिक स्थानों पर मास्क पहनने और भीड़भाड़ से बचने के नियमों में कोई ढील नहीं दी जा सकती है ताकि यह बीमारी काबू में रहे।
आगे एक बड़ी चुनौती है। और यह लॉकडाउन से बाहर निकलने की रणनीति के बारे में है। चूंकि इन दिनों महाभारत के उद्धरण लोकप्रिय हो रहे हैं, इसलिए हमें याद रखना चाहिए कि लॉकडाउन लागू करना चक्रव्यूह में घुसने के समान है लेकिन वहां से सही सलामत बाहर निकलना भी अहम है। लॉकडाउन को कैसे चरणबद्ध तरीके से समाप्त किया जाता है या हटाया जाता है, इसी से हमें पता चलेगा कि कोविड-19 के खिलाफ लड़ाई में सरकार सफल रही है या नहीं। अगर वह लॉकडाउन से बाहर निकलने के लिए सही फैसले नहीं ले पाती है तो इससे जो कुछ हासिल हुआ है वह बेकार जा सकता है।
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