उत्तराधिकार नीति पर आरबीआई सख्त | रघु मोहन / मुंबई April 12, 2020 | | | | |
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) निजी बैंकों के लिए उत्तराधिकार योजना की नीति को और सख्त बनाने पर विचार कर रहा है। इसके तहत नए प्रबंध निदेशक और मुख्य कार्य अधिकारी की पहचान करने और उन्हें अपनी नई भूमिका में ढलने का मौका देने के लिए अधिक कठोर समयसीमा लागू की जा सकती है। इस समय इन पदों पर बैठे व्यक्तियों की सेवा में विस्तार को इस बात से जोड़ा जा सकता है कि जिस बैंक के वे मुखिया हैं, उसमें उत्तराधिकार की योजना कितनी मजबूत है और उस पद के लिए लोगों को कैसे तैयार किया जा रहा है।
केंद्रीय बैंक इन पदों के लिए उम्मीदवारी पर विचार करते समय यह देख सकता है कि उन्होंने महत्वपूर्ण वाणिज्यिक परिचालनों को चलाने में कैसा प्रदर्शन किया है, निदेशक मंडल में उन्हें कितना अनुभव है और निदेशक मंडल के विचार-विमर्श में उनका कितना योगदान रहा है। ऐसे में बैंकों की नामांकन एवं पारितोषिक समिति की जिम्मेदारी बढऩा तय है और निजी बैंकों के निदेशक मंडलों को भी उत्तराधिकार योजना में अधिक भागीदारी करनी होगी।
निजी बैंकों में उत्तराधिकार योजना की प्रक्रिया अभी ठीक ढंग से निर्धारित नहीं है और केंद्रीय बैंक चाहता है कि दूसरी पीढ़ी के हाथ में प्रबंधन की बागडोर सुगम तरीके से आए। साथ ही नियंत्रण से बाहर की घटनाओं के लिए आपात योजना में शामिल किए गए 'प्रमुख व्यक्तिगत जोखिम' में भी कमी की जाए। उत्तराधिकार योजना का मतलब है निजी बैंकों के शीर्ष प्रबंधन से परे देखना और मौजूदा मुखिया का कार्यकाल खत्म होने से पहले ही दूसरी पंक्ति को पहचान लेना। अधितर निजी बैंकों में उप प्रबंध निदेशक और मुख्य कार्य अधिकारी तक नहीं हैं। रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर ऊर्जित पटेल के समय में केंद्रीय बैंक ने उत्तराधिकार योजना का कठोर ढांचा तैयार करना शुरू किया था। अब पता चला है कि 'निजी बैंकों में पिछले एक साल में हुई घटनाओं के कारण यह मुद्दा एक बार फिर नियामकीय एजेंडे पर लौट आया है।'
इसका नमूना पिछले हफ्ते ही दिखा, जब रिजर्व बैंक ने एचडीएफसी बैंक में अतिरिक्त निदेशक के तौर पर शशिधर जगदीशन और कार्यकारी निदेशक के पद पर भावेश जवेरी की नियुक्ति पर तब तक के लिए रोक लगा दी, जब तक बैंक के प्रबंध निदेशक आदित्य पुरी का उत्तराधिकारी तय नहीं कर दिया जाता। जगदीशन और जवेरी को बैंक के मुखिया पद का संभावित उम्मीदवार माना जा रहा था। भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड ने 17 अप्रैल, 2014 को आदेश दिया था कि उत्तराधिकार की स्पष्टï योजना अनिवार्य है और यह निदेशकों का मुख्य कार्य होगा। निजी बैंकों के मामले में इस आदेश की जमकर आजमाइश हुई है और केंद्रीय बैंक को इस मोर्चे पर कड़ाई बरतने की जरूरत है।
आईसीआईसीआई बैंक से चंदा कोछड़, ऐक्सिस बैंक से शिखा शर्मा और येस बैंक से राणा कपूर की अलग-अलग वजहों से अचानक विदाई के कारण बैंकों के निदेशक मंडल मुश्किल में आ गए थे। इंडसइंड बैंक के प्रबंध निदेशक एवं मुख्य कार्याधिकारी रोमेश सोबती के उत्तराधिकारियों की तलाश के कारण यह बात चर्चा में आ गई कि केंद्रीय बैंक निजी बैंकों के निदेशक मंडल सदस्यों की आयु सीमा कंपनी अधिनियम के मुताबिक 70 साल से बढ़ाकर 75 साल करेगा या नहीं। मौजूदा परिपाटी के मुताबिक निजी बैंक मौजूदा एमडी और सीईओ का कार्यकाल खत्म होने से चार महीने पहले तीन उम्मीदवारों की सूची मंजूरी के लिए केंद्रीय बैंक के पास भेजते हैं।
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