आटा मिलों का उत्पादन घटकर 25 प्रतिशत पर | दिलीप कुमार झा / मुंबई April 12, 2020 | | | | |
गेहूं, मजदूर और पैकिंग सामग्री न होने की वजह से देश भर की आटा मिलों ने परिचालन क्षमता औसतन 25 प्रतिशत कम कर दी है। देश भर में 2,500 से ज्यादा छोटी, मझोली और बड़ी इकाइयां हैं, जिनकी कुल सालाना गेहूं पिसाई की क्षमता 2.5 करोड़ टन है। इन मिलों में सूजी, मैदा और आटा तैयार किया जाता है।
छोटी गेहूं प्रसंस्करण इकाइयां, जो कुल मिलों की 50 प्रतिशत हैं, कार्यशील पूंजी रुकी होने के कारण बंद हो गई हैं, जो उन्हें बिस्कुट, ब्रेड और पाव विनिर्माताओं से मिलती है। बंदी के दौरान इस तरह की सभी इकाइयां सार्वजनिक जुटान रोकने के लिए बंद कर दी गईं, जो असंगठित क्षेत्र और कुटीर उद्योगों में आती हैं।
इस तरह से गेहूं के प्रसंस्करण की क्षमता कम होने की वजह से भविष्य में आटा, सूजी, मैदा की आपूर्ति प्रभावित होनी तय है।
महाराष्ट्र के शीरगोन स्थित गेहूं प्रसंस्करण मिल पंचगंगा रोलर फ्लोर मिल्स के डी माणिकचंद ने कहा, 'कुछ मंडियों के बंद होने की वजह से गेहूं खरीद बड़ी समस्या है। साथ ही पुलिसिया उत्पीडऩ के डर से ट्रकों की आवाजाही भी प्रभावित है, भले ही सरकार ने अंतरराज्यीय आवाजाही की अनुमति दी है। इसके अलावा पैकेजिंग सामग्री की भी कमी बनी हुई है। इस समय हम क्षमता का महज 25 प्रतिशत काम कर रहे हैं और यही स्थिति देश की सभी छोटी और मझोली इकाइयों की है।'
माणिकचंद ने कहा, 'आटा, सूजी और मैदा जैसे खाद्य पदार्थों को खुला नहीं बेचा जा सकता है, ऐसे में पैकेजिंग सामग्री न मिलने और पैकिंग का कोई विकल्प न होने के कारण उत्पादन घटाना मजबूरी है।'
इसके अलावा 21 दिन की देशबंदी की घोषणा के बाद उल्टी दिशा में विस्थापन हुआ और विनिर्माण क्षेत्र व फ्लोर मिलें इससे सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हैं।
केंद्रीय गृह मंत्रालय ने 7 अप्रैल को खाद्य मंत्री को पत्र लिखकर देश भर में आवश्यक जिंस अधिनियम लागू करने को कहा था। इससे स्थानीय अधिकारियों को अधिकार मिल गया है कि वे किसी भी जिंस की स्टॉक सीमा तय कर सकते हैं और किसी भी समय फैक्टरियों व गोदाम की जांच कर सकते हैं। स्टॉक सीमा के दिशानिर्देशों का पालन न होने की स्थिति में 7 साल जेल की सजा हो सकती है। राजस्थान सरकार ने पहले से यह अधिनियम लागू कर दिया है।
रोलर फ्लोर मिलर्स फेडरेशन आफ इंडिया के अध्यक्ष संजय पुरी ने कहा, 'हमने सरकार से सिफारिश की थी कि फ्लोर मिल जैसे ग्राहकों को गेहूं की सीधी बिक्री की अनुमति मिलनी चाहिए। साथ ही गेहूं की बंपर पैदावार का अनुमान लगाया गया है और सरकारी एजेंसियां भंडारण केंद्र को लेकर संघर्ष कर रही हैं। ऐसे में गेहूं खरीदकर खुले में बोरे में रखने से बेहतर है कि फ्लोर मिलों को प्रसंस्करण के लिए गेहूं खरीदकर रखने की मंजूरी दी जाए।'
भारत गेहूं का निर्यात भी करता है। मार्च 2020 तक के आंकड़ों के मुताबिक 275 लाख टन गेहूं भारतीय खाद्य निगम के विभिन्न गोदामों में पड़ा है। यह पिछले साल के 239 लाख टन भंडारण की तुलना में करीब 15 प्रतिशत ज्यादा है।
बहरहाल कृषि जिंसों के विशेषज्ञ विजय सरदाना ने इस बात पर जोर दिया है कि कृषि उत्पाद विपणन समिति (एपीएमसी) ऐक्ट में तत्काल संशोधन की जरूरत है, जिससे इसे कारोबारियों के अनुकूल बनाया जा सके।
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