कोरोनावायरस महामारी के बीच निजता का प्रश्न | तकनीकी तंत्र | | देवांशु दत्ता / April 07, 2020 | | | | |
कोरोनावायरस महामारी के बीच सूचना तकनीक तथा कृत्रिम मेधा (एआई) का कई तरह से उपयोग किया जा रहा है। शोधकर्ताओं ने प्रभावित लोगों की पहचान करने, क्वारंटीन में रह रहे लोगों की निगरानी करने, अहम स्थानों की खोज करने और बड़े स्तर पर डेटा विश्लेषण करने के उद्देश्यों से एआई एल्गोरिद्म तैयार किए हैं। लोगों पर 24 घंटे नजर रखने के लिए कई देशों की सरकारों ने कई ऐप जारी किए हैं। कारोबारी स्तर पर घर से काम करने की आवश्यकता के बीच वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग का चलन बढ़ रहा है। कई लोग दोस्तों से बात करने के लिए भी इससे संबंधित ऐप का उपयोग कर रहे हैं।
हालांकि निजता तथा सुरक्षा से जुड़े कुछ सवाल भी खड़े होते हैं। वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के उपयोग से जुड़े लाभ, हानि जैसे अहम सवाल एक लंबे वाद-संवाद का हिस्सा हैं। हमें यह समझना होगा कि आखिर हमारी जरूरतें क्या हैं? इसलिए जब वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग की बात आती है तो आपको अपनी जरूरतें परिभाषित करनी चाहिए। इसके बाद इंटरनेट पर विभिन्न समीक्षाओं को पढऩे एवं विश्लेषण करने के बाद ही किसी ऐप का चयन करना चाहिए।
अगर आपको केवल दूरदराज बैठे अपने घर-परिवार वालों या दोस्तों के साथ बातचीत करनी है तो आपको ऐसे ऐप की जरूरत नहीं है जो 250 लोगों को एक साथ वीडियो कॉलिंग की सुविधा देता हो। आपको वह बातचीत रिकॉर्ड भी नहीं करनी है। हालांकि कर्मचारियों तथा ग्राहकों से बातचीत करने वाले कारोबारियों को ऐसी कुछ खासियतों की जरूरत होगी जिसमें छोटी-बड़ी डिजिटल फाइलें भेजने के विकल्प भी शामिल हों। प्रत्येक उपयोगकर्ता गोपनीयता तथा निजता चाहता है। सुरक्षा का पहला स्तर तो ऐप ही है जिसमें हैक होने जैसी खामियां नहीं होनी चाहिए। अधिकांश ऐप आपको मोबाइल फोन के स्टोरेज, माइक, कैमरा और कई तरह के बदलाव करने जैसी अनुमति ले लेते हैं, इसलिए सॉफ्टवेयर प्रदाताओं को डेटा चोरी नहीं होने से जुड़ी प्रतिबद्धताएं देनी चाहिए। डेटा को किसी सुरक्षित सर्वर पर रखना चाहिए।
सॉफ्टवेयर प्रदाता को उपयोगकर्ताओं से जुड़ा डेटा नहीं बेचने से संबंधित अपनी प्रतिबद्धता स्पष्ट करनी चाहिए। उदाहरण के लिए जूम एक लोकप्रिय वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग सॉफ्टवेयर प्रदाता है और फेसबुक को ग्राहक संबंधी डेटा बेचने के आरोप में इस पर कार्रवाई की गई है।
जब सरकार द्वारा जारी किए गए प्लेटफॉर्म की बात आती है तो कई दूसरे मुद्दे सामने आ जाते हैं। कई बार उपयोगकर्ताओं के पास विकल्प नहीं होते और उन्हें संबंधित ऐप इंस्टॉल करने के लिए मजबूर किया जाता है। वास्तव में जो ऐप आपकी लॉन्टेक्स सूची साझा कर रहा है, वह एक निगरानी ऐप है।
ये ऐप उपयोगकर्ताओं की स्थिति तथा डेटा को ट्रैक करते हैं। चिकित्सा संबंधी आंकड़ों जैसे कई अहम डेटा का प्रसंस्करण करके उन्हें कई तरह से एक जगह सहेज लिया जाता है। इन ऐप के लिए ब्लूटूथ तथा जीपीएस को ऑन करना भी जरूरी होता है जिससे गोपनीयता तथा सुरक्षा संबंधी चुनौतियां खड़ी हो जाती हैं तथा हैकिंग की संभावना बढ़ जाती है।
'इलेक्ट्रॉनिक ब्रेसलेट' जैसे कुछ ऐप अपराधियों की निगरानी के लिए बनाए गए हैं। ये ऐप इंस्टॉल होने के बाद वस्तुविशेष की स्थिति, दिशा, यात्रा की गति, दिन विशेष की रियल टाइम गतिविधियों आदि पर नजर रखी जा सकती है। इन आंकड़ों को रियल टाइम में डाउनलोड किया जा सकता है जिसका बाद में विश्लेषण किया जा सकता है।
भारत सरकार द्वारा जारी ऐप आरोग्य सेतु के लिए चौबीसों घंटे स्थिति तथा ब्लूटूथ को ऑन रखना जरूरी है। ब्लूटूथ के जरिये संबंधित फोन ब्लूटूथ की रेंज में किसी दूसरे फोन को खोजता है। संक्रमण से ग्रसित व्यक्ति द्वारा उपयोग की गई डिवाइस को लैग कर दिया जाता है और ब्लूटूथ के जरिये ऐसी किसी लैग की हुई डिवाइस की खोज की जाती है। इसके अलावा, फोन पर स्थिति ऑन रहती है जिससे संबंधित व्यक्ति या फोन जिस जगहों पर गया हो, उन्हें रिकॉर्ड में शामिल कर लिया जाए। सिंगापुर, जर्मनी, इटली, फ्रांस, इजराइल आदि इसी तरह के ऐप जारी कर रहे हैं। हालांकि सिंगापुर द्वारा जारी ऐप ओपन सोर्स ऐप है अर्थात इसमें अगर कोई सुरक्षात्मक खामी है तो इसे बहुत जल्दी ढूंढा जा सकता है। जर्मनी, इटली तथा फ्रांस के नागरिक निजता तथा सुरक्षा को लेकर अधिक चिंतित नहीं हैं क्योंकि इस देशों ने यूरोपीय संघ के जनरल डेटा प्रोटक्शन रेग्युलेशन (जीडीपीआर) के प्रति प्रतिबद्धता जताई है। जीडीपीआर के तहत नागरिकों से पूछा जाता है कि उनसे संबंधित कौन-सा डेटा रिकॉर्ड में दर्ज किया जाए। इससे भी अहम बात यह है कि नागरिकों के पास 'राइट टू फॉर्गेट' का अधिकार है अर्थात, व्यक्ति अपने किसी भी डेटा को रिकॉर्ड से हटाने के लिए कह सकता है। संंबधित डेटा का दुरुपयोग करने पर जुर्माना और दूसरे तरह के दंड का भी प्रावधान है। हालांकि भारत में ऐसा कुछ भी नहीं है। आरोग्य-सेतु ऐप ओपन सोर्स ऐप नहीं है जिसका अर्थ है कि अगर इसमें कोई खामी मिल जाती है तो हैकर इसका उपयोग कर सकता है। साथ ही, भारत में निजी डेटा सुरक्षा कानून नहीं है। हालांकि इससे जुड़ा एक कानून प्रस्तावित है, लेकिन इस मसौदा विधेयक में भी सरकार के पास किसी भी तरह के डेटा को संजोने की शक्ति होगी।
अगर आपको आरोग्य-सेतु ऐप का उपयोग करना है तो इसे इंस्टॉल करने से पहले अपने निजी डेटा को स्मार्टफोन से हटा दें और इसे फैक्टरी रीसेट कर लें। बाद में जब आप इसे फोन से हटाएं तो भी सबसे पहले फैक्टरी रीसेट कीजिए और इसके बाद ही फोन का इस्तेमाल करें। जिस समय ऐप फोन में मौजूद है, किसी भी तरह के निजी डेटा को फोन में रखने से बचें। स्वस्थ रहें, सुरक्षित रहें, निजता का ध्यान रखें।
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