कोविड-19 ने रत्नाभूषण उद्योग का भविष्य बिगाड़ दिया है जो पिछली कुछ तिमाहियों से परेशान चल रहा था। इस परेशानी की शुरुआत अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध से हुई थी। बाद में आर्थिक मंदी और फिर हॉन्ग कॉन्ग के दंगों तथा अब कोरोनावायरस के कारण लॉकडाउन ने इस परेशानी को बढ़ा दिया।
रत्न एवं आभूषण निर्यात संवर्धन परिषद (जीजेईपीसी) के शुरुआती अनुमान के अनुसार मार्च में इस क्षेत्र का निर्यात गिरकर आधा रह गया है। तराशे हीरे समेत कुल निर्यात मार्च में लुढ़ककर 1.5 अरब डॉलर रहने का अनुमान है, जबकि मार्च 2019 में यह 3.34 अरब डॉलर था। इस तरह इसमें 56.4 प्रतिशत गिरावट के संकेत मिल रहे हैं। इसके परिणामस्वरूप वित्त वर्ष 20 में इस क्षेत्र से होने वाला कुल निर्यात 11.33 प्रतिशत गिरकर 35.14 अरब डॉलर रहने का अनुमान है।
सूत्रों ने कहा कि सूरत हीरा प्रसंस्करण उद्योग को अपने सभी काम बंद करने पड़ गए हैं। अब उनके पास पिछले कुछ सप्ताह के दौरान प्रसंस्कृत किया गया बिना बिका हुआ स्टॉक ही बचा हुआ है और निकट भविष्य में नई मांग आने की कोई संभावना नहीं दिख रही है क्योंकि वैश्विक बाजार में लॉकडाउन या अर्ध लॉकडाउन की स्थिति चल रही है।
हालांकि जब यह लॉकडाउन खत्म होगा और बाजार खुलेगा तो उद्योग को फिर से कारोबार करना होगा। अब तक दुनिया भर के उपभोक्ता अपने गैर-जरूरी व्यय में कटौती कर चुके हैं जिससे हीरा आभूषण खरीद पर असर पड़ रहा है। जब उद्योग में काम शुरू होगा तो सबसे बड़ा मसला ऋण जुटाना होगा। धन की आवश्यकता पहले की तुलना में सबसे महत्त्वपूर्ण होगी।
जीजेईपीसी के उपाध्यक्ष कोलिन शाह ने कहा कि हमने भारतीय रिजर्व बैंक से ब्याज दरों और निर्यात ऋण पर लागू मार्जिन में राहत देने, इस स्थिति में सभी क्षेत्रों के कारोबारियों और विनिर्माताओं को पांच प्रतिशत तक ब्याज अनुदान उपलब्ध कराने, पैकिंग क्रेडिट और निर्यात बिलों के लिए 90 से 180 दिनों की अवधि के लिए परमिट में विस्तार का अनुरोध किया है।
उन्होंने कहा कि इस स्थिति से निपटने के लिए क्षमता केपुनर्मूल्यांकन में समय लगेगा और कंसोर्टियम खाते में तो और ज्यादा समय लगेगा। इसलिए बैंकों द्वारा यह अतिरिक्त धनराशि आवेदन के सात दिनों के अंदर प्रदान की जाए। तभी इससे मदद मिलेगी। अगर उन्हें इसमें 90 दिन लगते हैं तो यह पूरा प्रयोजन बेकार हो जाएगा।