देर आया पर दुरुस्त आया आरबीआई | तमाल बंद्योपाध्याय / March 27, 2020 | | | | |
मौजूदा हालात में किसी ने भी सीआरआर में कटौती की उम्मीद नहीं की थी लेकिन आरबीआई ने एक ही झटके में रीपो में भी 75 आधार अंकों की कटौती कर सबको चौंका दिया है। बता रहे हैं तमाल बंद्योपाध्याय
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की नीतिगत ब्याज दर 4.4 फीसदी के साथ इतिहास के सबसे निचले स्तर पर है। इसी तरह वाणिज्यिक बैंकों का नकद आरक्षित अनुपात (सीआरआर) यानी केंद्रीय बैंक के पास रखा जाने वाला जमा अनुपात भी तीन फीसदी के रिकॉर्ड स्तर पर आ चुका है।
आरबीआई के गवर्नर शक्तिकांत दास को यह श्रेय दिया जाना चाहिए कि वह मौद्रिक नरमी बरतने वाले केंद्रीय बैंकों की श्रेणी में थोड़ा देर से शामिल होने के बावजूद बाजार को चौंकाने में सफल रहे। किसी ने भी इस समय सीआरआर में कटौती की उम्मीद नहीं की थी और एक ही झटके में 75 आधार अंकों की बड़ी कटौती तो अधिकतर लोगों की अपेक्षाओं से काफी ज्यादा है।
मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की शुक्रवार को हुई बैठक में लिए गए कई फैसले कोविड-19 महामारी के भारतीय अर्थव्यवस्था पर पड़ रहे व्यापक असर के बीच बाजार एवं वित्तीय क्षेत्र की स्थिरता को लेकर कायम चिंताओं को दूर करते हैं।
इस नीति में भविष्य के लिए दिखाई राह उठाए गए कदमों की ही तरह महत्त्वपूर्ण है। इससे पता चलता है कि आरबीआई आर्थिक वृद्धि में नई जान फूंकने के लिए परंपरागत एवं गैर-परंपरागत सभी तरह के कदम उठाएगा और इसी के साथ जहां तक जरूरी हो सामंजस्य का रुख भी बनाए रखेगा।
अब हम आरबीआई की तरफ से उठाए गए कुछ कदमों एवं उनके निहितार्थों पर गौर करते है:
♦ नीतिगत रीपो दर 75 आधार अंकों की कटौती के साथ 5.15 फीसदी से घटकर 4.4 फीसदी पर आ गई है। इस फैसले का मतलब है कि बैंकों को अब आरबीआई से उधारी जुटाने में आने वाली लागत कम हो जाएगी।
♦ रिवर्स रीपो दर में 90 आधार अंकों की भारी कटौती की गई है और अब यह चार फीसदी पर आ गई है। रिवर्स रीपो सुविधा के तहत बैंक अपने पास पड़े अतिरिक्त पैसे को आरबीआई के पास जमा कर उस पर ब्याज वसूलते हैं। ऐसे में रिवर्स रीपो दर में भारी कटौती करने का आशय यह है कि बैंक अपने पास अधिक रकम रखने से परहेज करें क्योंकि उन्हें इससे खास ब्याज नहीं मिलेगा। इसकी जगह पर वे इसका इस्तेमाल लोगों को कर्ज देकर उनसे ब्याज कमाने में करें।
♦ सीआरआर में 100 आधार अंकों की बड़ी कटौती कर तीन फीसदी कर दिया गया है। बैंकों की शुद्ध मांग एवं समयबद्ध देनदारियों के लिए सीआरआर को उनकी जमाओं का एवजी प्रावधान माना जाता है। इस अनुपात में की गई कटौती एक साल के लिए प्रभावी है लेकिन बैंकों का दैनिक सीआरआर बैलेंस रखरखाव तीन महीनों में 90 फीसदी से 80 फीसदी हो गया है। बैंक सीआरआर के मद में आरबीआई के पास जो रकम रखते हैं उस पर उन्हें कोई ब्याज नहीं मिलता है। सीआरआर में की गई इस कटौती से बैंकों के पास 1.37 लाख करोड़ रुपये की अतिरिक्त राशि रहेगी जिसका इस्तेमाल वे कर्ज बांटने एवं निवेश उद्देश्यों के लिए कर सकेंगे।
♦ आरबीआई वित्तीय प्रणाली में तरलता बढ़ाने के लिए दीर्घकालिक रीपो नीलामी (एलटीआरओ) करता रहा है। इस बार उसने एक कदम आगे बढ़ाते हुए एक लाख करोड़ रुपये तक का लक्षित दीर्घकालिक रीपो (टीएलटीआर) नीलामी करने का फैसला किया है। इस राशि की मियाद तीन साल तक होगी जबकि इसकी लागत नीतिगत रीपो दर से जुड़ी होगी।
इस तरीके से जुटाई गई रकम का इस्तेमाल प्राथमिक एवं द्वितीयक बाजारों से कॉर्पोरेट बॉन्ड, वाणिज्यिक पत्रों एवं गैर-परिवर्तनीय डिबेंचरों की समान मात्रा में खरीद करने में किया जाएगा। म्युचुअल फंड हाउस एवं गैर-बैंकिंग वित्त कंपनियां (एनबीएफसी) बैंकों को ऐसे वित्तीय साधन बेच सकेंगी।
आखिर में, बैंकों को ऐसे निवेश को मार्क-टु-मार्केट (एमटीएम) के रूप में नहीं दिखाना होगा। एमटीएम अकाउंटिंग की वह प्रथा है जिसमें एक निवेश का मूल्यांकन इसकी बाजार कीमत के संदर्भ में होता है न कि जिस कीमत पर उसे खरीदा गया था। इसका मतलब है कि अगर ऐसे निवेश का मूल्य गिरता है तो भी बैंकों के बहीखाते पर उसका कोई असर नहीं पड़ेगा।
यूरोपीय केंद्रीय बैंक (ईसीबी) से प्रेरणा लेते हुए कहें तो एलटीआरओ और टीएलटीआरओ दोनों ही गैर-पारंपरिक उपाय हैं। निश्चित रूप से ईसीबी ने अपने एलटीआरओ को बैंक कर्ज वितरण से जोड़ दिया था, वहीं आरबीआई चाहता है कि बैंक कॉर्पोरेट बॉन्ड खरीदने के लिए इस तरीके से जुटाई गई रकम का इस्तेमाल करें।
♦ बैंक आरबीआई के रीपो प्रावधान से उधारी ले सकते हैं बशर्ते उनके पोर्टफोलियो में सरकारी बॉन्ड नियामकीय जरूरत से अधिक हों। इसकी वजह यह है कि उन्हें ऐसे बॉन्ड समर्थक प्रतिभूति के तौर पर रखने की जरूरत भी पड़ सकती है। वे मार्जनल स्टैंडिंग सुविधा (एमएसएफ) के तहत उधारी में अपनी बॉन्ड होल्डिंग को 2 फीसदी तक घटा सकते हैं जिससे वे रीपो दर से 25 आधार अंक अधिक ब्याज दे सकते हैं। अब उन्हें एमएसएप विंडो के जरिये रकम जुटाने के लिए तत्काल प्रभाव से अपने बॉन्ड पोर्टफोलियो के तीन फीसदी तक कटौती की इजाजत दे दी गई है। इस छूट की मियाद 30 जून तक रहेगी।
सीआरआर, टीएलटीआरओ विंडो और एमएसएफ छूट की यह तिकड़ी सैद्धांतिक तौर पर वित्तीय प्रणाली में करीब 3.74 लाख करोड़ रुपये डाल सकती है। इससे भी अहम यह है कि पैसों की जरूरत वाले बैंकों को अब पैसे मिलने लगेंगे। मार्च की शुरुआत से ही आर्थिक प्रणाली में प्रतिदिन औसतन तीन लाख करोड़ रुपये से भी अधिक रकम अतिरिक्त रही है लेकिन इसका वितरण असमान रहा है।
इन उपायों का असर फौरन नजर भी आने लगा। सरकारी बॉन्ड का प्रतिफल करीब 30 आधार अंकों तक गिरने के बाद की गई बिक्री ने इसके प्रतिफल को बढ़ा दिया और सौदों की संख्या भी बढ़ गई। इसी तरह विसुप्त हो चुके कॉर्पोरेट बॉन्ड बाजार में भी सीमित अवधि का प्रतिफल 100 बीपीएस चढऩे के बाद रौनक लौट आई। बॉन्ड के भाव एवं प्रतिफल विपरीत दिशाओं में बढ़ते नजर आए। आरबीआई की नवीनतम नीति ने नियमन एवं निरीक्षण में ढील देकर बैंकों की बैलेंस-शीट का भी ध्यान रखा है। लघु वित्त बैंकों एवं सहकारी बैंकों समेत सभी वाणिज्यिक बैंकों और एनबीएफसी को सावधि कर्जों के भुगतान पर तीन महीने का अस्थायी रोक लगाया गया है। इसी तरह की छूट कार्यशील पूंजी ऋणों पर भी दी गई है। इसका मतलब है कि अगर कर्जदार किस्तों का भुगतान नहीं कर पाते हैं तो बैंकों को ये कर्ज एनपीए की श्रेणी में डालने की जरूरत नहीं होगी लिहाजा उन्हें इसके लिए अलग से प्रावधान भी नहीं करना पड़ेगा। मुझे यकीन है कि हालात की मांग रही तो इस कर्ज भुगतान अवकाश को आगे भी बढ़ाया जाएगा।
इस नीतिगत समीक्षा ने उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति को चार फीसदी के दायरे में रखने के मध्यकालिक लक्ष्य को हासिल करने की आरबीआई का मंशा को फिर से दोहराया है। इसमें वृद्धि को समर्थन देने के बावजूद मुद्रास्फीति एवं वृद्धि अनुमानों को बहुत साफगोई से नहीं बयां किया गया है। वैसे इसे देखकर कोई अचंभा नहीं होता है क्योंकि अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने भी ठीक यही किया है। लेकिन आश्चर्य इस पर है कि एमपीसी ने 4-2 के बहुमत से 75 आधार अंकों की कटौती करने का फैसला किया। मौजूदा हालात में भी इस समिति के दो सदस्य 50 आधार अंकों की ही कटौती के पक्ष में थे। क्या आरबीआई कुछ और कदम उठा सकता है? इस बारे में हम आगे चर्चा करेंगे।
(लेखक बिज़नेस स्टैंडर्ड के सलाहकार संपादक एवं जन स्मॉल फाइनैंस बैंक लिमिटेड के वरिष्ठ परामर्शदाता हैं)
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