सरकारी फंडिंग वाली स्वास्थ्य बीमा योजनाओं ने इस बात की समझ पैदा की है कि निजी क्षेत्र के साथ कैसे सहयोग किया जाए। इस दिशा में और आगे बढ़ने की आवश्यकता है। विस्तार से बता रहे हैं अजय शाह
कोविड-19 महामारी की प्रतिक्रिया की बात करें तो इससे निपटने के लिए जांच और स्वास्थ्य सुविधाओं में भारी इजाफा करने की आवश्यकता है। हमारे देश में जांच और स्वास्थ्य सुविधाओं की अधिकांश क्षमता निजी क्षेत्र में है।
ऐसे में यह प्रयास करना होगा कि स्वास्थ्य नीति में इन क्षमताओं का इस्तेमाल कैसे किया जा सकता है। सही संतुलन सार्वजनिक फंडिंग और निजी उत्पादन के मिश्रण से हासिल होगा। इसमें बाजार की विफलताओं की जटिलता को अनुबंध में सरकारी क्षमताओं के इस्तेमाल और खरीद से दूर किया जा सकता है।
किसी महामारी के मामले में जांच करना दो कारणों से अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। पहला कारक परिस्थितियों से जुड़ी जागरूकता से संबंधित है। निजी और सरकारी क्षेत्र में निर्णय लेने वालों के लिए, हालात को समझने के लिए और सही निर्णय लेने के लिए सही तथ्यों की जानकारी आवश्यक है। दूसरा अहम कारण है इस महामारी का प्रसार रोकने का व्यावहारिक और सतत पथ। इन दिनों लॉकडाउन है। परंतु ऐसा लंबे समय तक नहीं चल सकता। लोगों की आजीविका और जीवन पर इनका गहरा असर होगा। खासतौर पर भारत जैसे देश में जहां आबादी के निचले 70 प्रतिशत लोगों के पास बहुत कम संपत्ति है। लोगों की कमाई बंद होने का बहुत बुरा असर होगा। अर्थव्यवस्था शायद सात दिन तक काम चला ले लेकिन क्या सात महीने तक ऐसे चलता रह सकता है? यदि पर्याप्त आंकड़े होते तो लोगों को अलग-थलग करने का काम सीमित क्षेत्रों में किया जा सकता था जहां बीमारी का प्रसार ज्यादा है। बुजुर्गों और पॉजिटिव पाए जाने वाले लोगों को चिह्नित किया जाना चाहिए। ऐसा करना संपूर्ण राज्य को बंद करने से बेहतर होगा। उस वक्त हमारा सामना दो संभावनाओं से होगा: कम जांच और व्यापक पृथक्करण या फिर ज्यादा जांच और उचित पृथक्करण। इनमें बाद वाली स्थिति का आर्थिक प्रभाव कम होगा, इसलिए उस राह पर जाने का प्रयास करना उचित होगा।
हमारे देश में प्रतिदिन 2.5 लाख जांच कैसे की जा सकती हैं? देश में अधिकांश जांच क्षमता निजी क्षेत्र में ही है। फिर चाहे यह कोविड-19 के लिए प्रचलित आरटी-पीसीआर जांच हो या अब सामने आ रहे जांच के नए तरीके। ये सभी निजी क्षेत्र में हैं। स्वास्थ्य नीति में इसका फायदा उठाया जाना चाहिए। जांच किट के निजी उत्पादन में सरकार को मदद करनी चाहिए। 2,000 रुपये प्रति टेस्ट की दर पर प्रति दिन 2.5 लाख टेस्ट करने में 50 करोड़ रुपये रोजाना का खर्च आएगा।
स्वास्थ्य सुविधाओं की बात करें तो निजी क्षेत्र में इसकी स्थिति अच्छी है लेकिन इस क्षेत्र में बाजार विफल नजर आ रहा है। चूंकि कोविड-19 अत्यधिक संक्रामक है इसलिए बाहरी समस्या बड़ी है। यहां स्वास्थ्य सेवाओं में सार्वजनिक व्यय की आवश्यकता उत्पन्न होती है। अब तक देश कोविड-19 को लेकर स्वास्थ्य सेवा की जरूरतों में कोई बाढ़ नहीं आई है लेकिन ऐसा हो सकता है। कोविड-19 के मामलों में सहयोगी चिकित्सा जटिल नहीं है लेकिन इसके लिए न्यूनतम क्षमता वाले अस्पताल तो चाहिए।
चूंकि देश में स्वास्थ्य सुविधाओं का ज्यादातर हिस्सा निजी क्षेत्र के हवाले है इसलिए यदि स्वास्थ्य सुविधाओं में इजाफा करने की आवश्यकता पड़ती है तो निजी क्षेत्र अनिवार्य होगा। ऐसे में स्वास्थ्य नीति में यह व्यवस्था करनी होगी कि निजी क्षेत्र से सेवाएं खरीदी जाएं।
यह भी संभव है कि मरीजों की तादाद इतनी बढ़ जाए कि निजी क्षेत्र भी उनका ध्यान नहीं रख पाए। देश के 100 इलाकों का विश्लेषण करना उचित होगा और यह देखना होगा कि विपरीत परिस्थितियों में कैसे काम किया जा सकता है। आने वाले कुछ महीनों में बहुत अधिक स्वास्थ्य सुविधाओं की आवश्यकता हो सकती है, उसे देखते हुए भी हमें तैयारी करनी होगी। ये ऐसी सुविधाएं होंगी जिन्हें बाद में खत्म किया जा सकता है। हमारे देश में इसका निर्माण निजी क्षेत्र ही कर सकता है।
कोविड-19 को ध्यान में रखते हुए स्वास्थ्य नीति में इस बात को स्वीकार किया जाना चाहिए कि परीक्षण और स्वास्थ्य सुविधाएं प्रदान करने की क्षमता निजी क्षेत्र में हैं। ऐसे में इन सुविधाओं में इजाफा करने का प्रयास करना होगा। यह आसान नहीं होगा।
निजी स्वास्थ्य सेवा कंपनियों और आम लोगों के बीच के रिश्ते में बाजार की विफलता भी एक कारक है। देश में इस क्षेत्र में उपभोक्ता संरक्षण काफी कमजोर रहा है। सक्षम चिकित्सकों की भी कमी है और मरीजों से गलत शुल्क वसूले जाते रहे हैं।
इस क्षेत्र में मानव संसाधन, समुचित प्रबंधन, अंकेक्षण और लेखा के साथ-साथ निजी क्षेत्र के साथ समुचित अनुबंधों की आवश्यकता है। देश में कमजोर सरकारी क्षमता का एक अहम कारण उपरोक्त क्षेत्रों में कमतर व्यवस्था भी है।
भारत के सरकारी क्षेत्र को निजी क्षेत्र के साथ अनुबंध करने में मुश्किल सामने आ सकती है। ऐसा समझदारी भरी खरीद, अनुबंध की अवधि के दौरान अनुबंध प्रबंधन में शामिल होने और लोगों को समय पर भुगतान करने के क्षेत्र में हो सकता है। चाहे रक्षा खरीद हो या निजी-सार्वजनिक भागीदारी वाला बुनियादी ढांचा, हमें उक्त तीनों चरणों में दिक्कत का सामना करना पड़ा है। जटिल अनुबंध हमेशा अधूरे रहते हैं। विवाद निस्तारण और बातचीत के लिए विधिक ढांचे की आवश्यकता होती है। निजी कारोबारियों को अक्सर शासन के साथ निपटने में दिक्कत का सामना करना पड़ा है तो और कुछ बेहतरीन फर्म ने तो सरकारी खरीद प्रक्रिया में शामिल न होने का निर्णय ही ले लिया है।
निजी क्षेत्र की जांच और स्वास्थ्य सुविधा सेवाओं को बाजार की खास विफलताओं से असर पड़ता है। भारत की बात करें तो यहां सरकारी क्षेत्र निजी क्षेत्र के साथ अनुबंध में समस्या में पड़ जाता है। ये लंबी समस्याएं हैं और हम सोच सकते हैं कि काश ये दिक्कतें 25 वर्ष पहले समाप्त हो गई होतीं लेकिन हकीकत में ऐसा हुआ नहीं। इसके बावजूद जब कोविड-19 हमारे सामने है तो निजी कारोबारियों के साथ अनुबंध हमारी आवश्यकता है। हमें इन सवालों का जवाब तलाश करना होगा। निजी क्षेत्र कौन है? किन स्थानों पर उसकी क्या क्षमताएं हैं? उससे जुड़े क्रय को बेहतर कैसे बनाया जा सकता है? मरीजों, फर्म और अधिकारियों को कैसे बचाया जाए? सरकारी फंडिंग वाली आयुष्मान भारत जैसी स्वास्थ्य बीमा योजनाओं ने यह जानकारी पैदा की है कि निजी क्षेत्र का साथ कैसे लिया जाए। इस दिशा में आगे प्रयास होने चाहिए।