हाल में नई दिल्ली में उद्योग जगत के लोगों के बीच रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने वर्ष 2018 की रक्षा उत्पादन नीति के कई लक्ष्यों का उल्लेख किया। उन्होंने निजी क्षेत्र से मांग की कि वह सन 2025 तक वार्षिक रक्षा उत्पादन को बढ़ाकर 26 अरब डॉलर तक पहुंचाए। ऐसा करने से उस वर्ष कुल रक्षा विनिर्माण एक लाख करोड़ डॉलर तक पहुंच जाएगा जो सन 2024 तक देश की अर्थव्यवस्था को 5 लाख करोड़ डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने में सहायक होगा।
सिंह ने कहा कि सरकार का इरादा वैमानिकी उद्योग को 2024 तक 30,000 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 60,000 करोड़ रुपये करने का है। इसके लिए वैश्विक वैमानिकी उद्योग को भारत से कलपुर्जे खरीदने के लिए प्रेरित किया जाएगा। वैमानिकी क्षेत्र में एमएसएमई की तादाद दोगुनी करके 16,000 करने का लक्ष्य है।
फिलहाल वार्षिक वैमानिकी उत्पादन 30,000 करोड़ रुपये है। अकेले हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) 20,000 करोड़ रुपये का कारोबार करती है। शेष एक तिहाई हिस्सा टाटा और महिंद्रा समूह जैसी कंपनियों के ऑफसेट उत्पादन और तमाम एमएसएमई द्वारा कलपुर्जों के निर्माण से आता है। एचएएल के उत्पादन बढ़ाने की एक सीमा है क्योंकि यह कंपनी सैन्य विमान बनाती है।
रक्षा क्षेत्र का पूंजी आवंटन एक अंक में बढ़ रहा है ऐसे में आश्चर्य नहीं कि एचएएल का टर्नओवर भी 2018-19 में 7.8 फीसदी की दर से और इस वर्ष महज 4 फीसदी की दर से बढ़ा। कंपनी के लिए नकदी का इंतजाम करने वाले सुखोई-30एमकेआई का उत्पादन अगले वर्ष 222 विमान तैयार होने के साथ बंद हो जाएगा। सुखोई-30 के बाद 126 मीडियम मल्टी रोल कॉम्बैट एयरक्राफ्ट का ऑर्डर मिलना था लेकिन सरकार ने 36 राफेल विमान खरीद लिए जो पूरी तरह फ्रांस में बनेंगे। वायुसेना द्वारा 114 मझोले लड़ाकू विमान खरीदने या नौसेना द्वारा 57 कैरियर डेक आधारित लड़ाकू विमान खरीदने की भी कोई गुंजाइश नहीं दिख रही। हाल में शामिल विमान मसलन सी-130 सुपर हक्र्यूलिस और सी-17 ट्रांसपोर्टर, बोइंग पी-81 पोसेडियन समुद्री विमान, अपाचे, चिनूक और एमएच-60आर हेलीकॉप्टर आदि अमेरिका से तैयार स्थिति में खरीदे गए। एचएएल तेजस फाइटर और रूसी कामोव-226टी, स्वदेशी ध्रुव और रुद्र हेलीकॉप्टर के निर्माण से राहत पा सकता है। हल्के लड़ाकू हेलीकॉप्टर और हल्के यूटिलिटी हेलीकॉप्टर मंजूरी की प्रतीक्षा कर रहे हैं। इन परिस्थितियों में एचएएल को विकास के लिए जबरदस्त समर्थन की जरूरत होगी।
ऐसे में 60,000 करोड़ रुपये के वैमानिकी उत्पादन लक्ष्य को हासिल करने में एमएसएमई मददगार हो सकती हैं जो वैश्विक आपूर्ति शृंखला के लिए उत्पादन कर रही हैं। सरकार को इनकी पूरी मदद करनी चाहिए। सबसे पहले, उसे यह मानना चाहिए कि वैश्विक ऑर्डर के लिए प्रतिस्पर्धा कर रही हमारी कंपनियों का मुकाबला ऐसे प्रतिस्पर्धियों से है जिन्हें उनकी सरकारें कर और निर्यात प्रोत्साहन के रूप में काफी समर्थन देती हैं। हमारी सरकार को भी अपनी विमानन कंपनियों को बेहतर कारोबारी माहौल मुहैया कराना चाहिए। हमारी कंपनियों के सामने सबसे बड़ी चुनौती पूंजी की लागत और फंड तक पहुंच न होना है। कई मामलों में भारतीय एमएसएमई ने वैश्विक आपूर्ति शृंंखलाओं का ऑर्डर इसलिए ठुकरा दिया क्योंकि उनके पास जरूरी पूंजी नहीं थी। इससे कारोबार का नुकसान तो हुआ ही, रोजगार तैयार करने के अवसर भी हाथ से गए। सरकार को एक विशिष्ट फंड तैयार करना चाहिए ताकि एमएसएमई को शीघ्र पूंजी मुहैया कराई जा सके।
यदि सरकार वैमानिक विनिर्माण दोगुना करने को लेकर गंभीर है तो उसे एमएसएमई को विदेश जाने वाले प्रतिनिधिमंडलों में शामिल करना चाहिए। विदेशी कारोबारियों को आश्वस्त करना चाहिए कि सरकार इन एमएसएमई के साथ है। सरकार को वैश्विक कंपनियों को कर प्रोत्साहन देना चाहिए ताकि वे भारतीय एमएसएमई के साथ काम करें। एमएसएमई के निर्धारण मानक बदल कर 10 करोड़ रुपये के संयंत्र और मशीनरी के बजाय इसे सालाना राजस्व से परिभाषित किया जाना चाहिए। इसके लिए 500 करोड़ रुपये की सीमा निर्धारित की जानी चाहिए।
दूसरा, सरकार को कौशल विकास में गुणवत्ता पर जोर देना होगा। इसके लिए अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद को औद्योगिक भागीदारी की इजाजत देनी होगी। पाठ्यक्रम और प्रशिक्षण के बुनियादी ढांचे को औद्योगिक आवश्यकता के अनुरूप बनाना होगा। पहले ही कई कंपनियां अपना प्रशिक्षण पाठ्यक्रम चला रही हैं। सरकार को बौद्धिक संपदा निर्माण, पेटेंट और अन्य अविष्कारों के लिए एक कानूनी बौद्धिक संपदा संरक्षण तंत्र विकसित करना होगा जो वैश्विक मानकों के अनुरूप हों। वैश्विक कंपनियों को प्रोत्साहित करना होगा ताकि वे सीखने में निवेश करें।
तीसरा, कोरोनावायरस की महामारी जिस नाटकीय तेजी से फैल रही है, उसे देखते हुए एक सुरक्षित कारोबारी माहौल में ही नतीजे हासिल होंगे। जेफ बेजोस जैसे उद्योगपतियों के प्रति हाल के रवैये ने इन आशंकाओं को बढ़ाया है।
कारोबारी पैसे कमाना चाहते हैं लेकिन उन्हें कारोबार और खुशी को साथ रखना अच्छा लगता है। आश्चर्य नहीं कि अमेरिका के सबसे रहने लायक शहरों में से एक सिएटल देश के विमानन उद्योग का गढ़ है। इसी तरह विदेशी उद्योगपति बेंगलूरु की संस्कृति के कारण आकर्षित होते हैं। ऐसे में जैसा कि सरकार कह रही है यदि उत्तर प्रदेश में अधिग्रहण एवं विकास कॉरिडोर विकसित किया गया तो उसमें विदेशी उद्यमी रुचि नहीं लेंगे। रक्षा मंत्री ने विमानन उत्पादन के लक्ष्य तय करते समय उन सीमाओं का ध्यान नहीं रखा जो राह रोकती हैं: निराशाजनक बुनियादी ढांचा, कानून व्यवस्था की कमजोरी, खराब सामाजिक माहौल, कौशल की कमी, फंड तक कमजोर पहुंच आदि। इन चीजों को दुरुस्त करना प्राथमिक आवश्यकता है।