कोविड-19 के प्रसार को रोकने के लिए देशव्यापी लॉकडाउन (बंदी) को अनिवार्य बताते हुए इसकी सराहना की जा रही है। ऐसा इसलिए जरूरी था क्योंकि देश में संक्रमण के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं और स्वास्थ्य सेवाओं की सीमा है। परंतु तीन सप्ताह के लॉकडाउन को हर उस चीज का विकल्प नहीं बनाया जा सकता जो सरकार को करना चाहिए या जो उसे अब तक कर लेना चाहिए था। देश में प्रति 10 लाख लोगों में 12 की जांच की जा रही है। चीन में यह आंकड़ा प्रति 10 लाख पर 221 है और अन्य देशों ने तो प्रति 10 लाख में हजारों लोगों की भी जांच की है। देश में आम व्यवस्था/उत्पादन/आपूर्ति क्षमता (उदाहरण के लिए हमारे यहां प्रति 11,600 लोगों पर एक चिकित्सक है) की दयनीय दशा हमें काफी कुछ बताती है और गाल बजाने के मौजूदा सिलसिले को ध्वस्त करने वाली है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मुताबिक हर देश को अपने जीडीपी का करीब 4-5 फीसदी हिस्सा स्वास्थ्य पर खर्च करना चाहिए। एक ऐसी सक्रिय सरकार जिसने देशव्यापी लॉकडाउन लागू करने के लिए केवल चार घंटे का वक्त दिया, उसने आम बजट में स्वास्थ्य के लिए जीडीपी का केवल 1.6 फीसदी हिस्सा निर्धारित किया है।
दूसरा बड़ा मसला यह है कि इस लंबे लॉकडाउन की आर्थिक कीमत क्या होगी? खासतौर पर गरीबों पर इसका अप्रत्याशित असर होगा जिसका अनुमान भी नहीं लगाया जा सकता। अनिवार्य सेवाओं और आपूर्ति के रखरखाव में भी बहुत अधिक दिक्कत आएगी जो एक हद तक अपरिहार्य है। इन तमाम बातों के बावजूद वित्त मंत्री कुछ बुनियादी घोषणाएं तक नहीं कर पा रही हैं जो अनिवार्य हैं। मसलन बेरोजगार/ असंगठित क्षेत्र के लोगों के लिए आय समर्थन की घोषणा, छोटे और मझोले कारोबारियों के लिए नकदी प्रवाह सुनिश्चित करना वगैरह। ऐसी खबरें आ रही हैं कि सरकार 15 लाख करोड़ रुपये के पैकेज पर काम कर रही है लेकिन अब तक कोई आधिकारिक घोषणा नहीं की गई है। यह समझना मुश्किल है कि घोषणा में देर क्यों की जा रही है। इससे अनिश्चितता और तनाव बढ़ रहा है। खासतौर पर आबादी के वंचित वर्ग के लोगों के बीच। देश की श्रम शक्ति का अधिकांश हिस्सा असंगठित क्षेत्र में काम कर रहा है और उसे आय का नुकसान होगा। कम से कम आने वाले सप्ताहों के दौरान ऐसा होना तय है। सरकार ने कहा है कि वेतन-भत्तों में कटौती नहीं की जानी चाहिए लेकिन इसका प्रवर्तन मुश्किल होगा। छोटे कारोबार जोखिम में हैं और शायद वे अपने कर्मचारियों को भुगतान करने की स्थिति में न रहें। हकीकत में छोटे कारोबारों को बचाना आवश्यक है और ऐसे में नियामकीय निगरानी से परे जाकर हस्तक्षेप करने होंगे। जो कर्मचारी दैनिक वेतन पर निर्भर हैं उन पर सबसे बुरा असर होगा क्योंकि उनके पास कोई बचत नहीं होती।
प्रमाण बताते हैं कि कई राज्य केंद्र से भी ज्यादा कदम उठा रहे हैं। उदाहरण के लिए केरल ने इस संकट से निपटने के लिए 20,000 करोड़ रुपये का पैकेज घोषित किया है। उत्तर प्रदेश ने दैनिक मजदूरों के खातों में पैसे डालने की पहल की है। गरीबों को राहत देने के लिए केंद्र सरकार का राज्यों के साथ मिलकर काम करना जरूरी है। उदाहरण के लिए देश में करीब 18 लाख बेघर लोग हैं जिन्हें आने वाले दिनों में राज्य सरकारों की मदद की जरूरत पड़ेगी। इसके अलावा केंद्र और राज्य दोनों के लिए यह सुनिश्चित करना अहम होगा कि अनिवार्य वस्तुएं और सेवाएं उन्हें मिलती रहें क्योंकि लॉकडाउन उत्पादन और आपूर्ति को प्रभावित कर रहा है। यदि खेतों से निकली ताजा उपज की बिक्री नहीं होती है तो इससे ग्रामीण क्षेत्रों की आय प्रभावित होगी और आर्थिक समस्या बढ़ेगी।
Business Standard Private Ltd. Copyright & Disclaimer feedback@business-standard.com
This site is best viewed with Internet Explorer 6.0 or higher; Firefox 2.0 or higher at a minimum screen resolution of 1024x768
* Stock quotes delayed by 10 minutes or more. All information provided is on
"as is" basis and for information purposes only. Kindly consult your
financial advisor or stock broker to verify the accuracy and recency of all
the information prior to taking any investment decision.
While due diligence is done and care taken prior to uploading the stock
price data, neither Business Standard Private Limited, www.business-standard.com nor any
independent service provider is/are liable for any information errors,
incompleteness, or delays, or for any actions taken in reliance on
information contained herein.