वस्तु एवं सेवा कर की दुविधा | पार्थसारथि शोम / March 24, 2020 | | | | |
जीएसटी के डिजाइन का ढांचा और कर वंचना प्रतिकूल चुनौतियां पेश करते हैं। इस संबंध में विस्तार से जानकारी प्रदान कर रहे हैं पार्थसारथि शोम
वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) की जमीनी हकीकत यह है कि एक ओर तो कर वंचना हो रही है, वहीं दूसरी ओर प्रशासनिक चुनौतियां मौजूद हैं। पहली बात तो यह कि कर प्रशासन कर वंचना समाप्त करने के लिए सख्त बुनियादी ढांचा मुहैया कराने का वादा नहीं निभा पाया। दूसरा, प्रशासन और करदाताओं को नीति निर्माताओं द्वारा जीएसटी दरों में निरंतर बदलाव से तालमेल बिठाना पड़ता है। तीसरा, अन्य क्षेत्रों के नए कानून जीएसटी क्रियान्वयन से टकराहट वाले रहे हैं। चौथा, बड़े कारोबार भी कर वंचना को लेकर उतने ही जोखिम में होते हैं जितने कि छोटे, इससे करों को लेकर एक किस्म का विरोधाभास उत्पन्न होता है। पांचवां, व्यवस्थित कर्मियों का परीक्षण करने और उनमें उचित सुधार की कमी है।
शायद प्रशासनिक दृष्टि से सबसे बड़ी चुनौती एक कर स्वरूप से दूसरे में सूचनाओं का स्वत: संचार नहीं हो पाना भी है, हालांकि यह सफलता के लिए आवश्यक है। तकनीकी ब्योरों के अभाव में मोटे तौर पर जीएसटी के तीन स्वरूप हैं- 1एम, 2ए और 3बी। इन्हें हम अपनी सुविधा के लिए 1, 2 और 3 पुकारेंगे। करदाताओं को अपनी बिक्री का ब्योरा फॉर्म 1 में देना होता है जहां हर पंक्ति एक बिक्री दर्शाती है। इस फॉर्म में शामिल कॉलम जीएसटी क्रमांक, जारी इनवॉइस के ब्योरों, लागू जीएसटी दर, केंद्रीय जीएसटी मूल्य/राशि, राज्य जीएसटी मूल्य/राशि आदि को दर्शाते हैं। जब सीजीएसटी और एसजीएसटी को समेकित किया जाता है तो उक्त करदाता द्वारा केंद्र या राज्य के लिए जुटाया गया कुल कर संग्रह सामने आता है।
फॉर्म 2 करदाता द्वारा की गई खरीदारी दर्शाता है। यहां भी हर पंक्ति एक खरीद का प्रतिनिधित्व करती है और कॉलम जीएसटी क्रमांक, प्राप्त इनवॉइस की विस्तृत जानकारी, चुकता कर की दर और चुकता सीजीएसटी और एसजीएसटी का मूल्य दर्शाता है। सीजीएसटी और एसजीएसटी कॉलम के प्रतिफल को एक साथ मिलाने से करदाताओं द्वारा खरीद पर चुकता सीजीएसटी या एसजीएसटी का मोल सामने आता है। अहम बात यह है कि इस राशि में इनपुट टैक्स क्रेडिट (आईटीसी) शामिल होता है जिसे कर चुकाने वाले वापस प्राप्त कर सकते हैं।
फॉर्म 3 जीएसटी रिटर्न से संबंधित है। यह कॉलम कर जवाबदेही दर्शाता है, यह कुल बिक्री से हासिल कर में से खरीद पर चुकता कर को घटाकर हासिल होती है। अतिरिक्त कॉलम दर्शाता है कि कितना कर नकदी के रूप में जमा किया गया और कितना समेकित क्रेडिट (ऐसी) के रूप में। ऐसी को एक अलग इलेक्ट्रॉनिक लेजर में दर्शाया जाता है जो यह बताता है कि कितना कर नकदी में चुकाया गया और कितना आईटीसी के माध्यम से।
जीएसटी की दुविधा
यदि उत्पादन मूल्य कच्चे माल की लागत से अधिक है (जैसा कि अक्सर होता है) तो यह आशा की जा सकती है कि कच्चे माल पर चुकता कर, उत्पादन पर चुकाए जाने वाले कर से कम होगा। परंतु हमेशा ऐसा नहीं होता। उत्पादन पर लगने वाले जीएसटी की दर कच्चे माल से कम भी हो सकती है। एक बड़ी कमी यह है कि फॉर्म 1, 2 और तीन को इलेक्ट्रॉनिक तौर पर जोड़ा जाना था लेकिन ऐसा नहीं हुआ। फॉर्म 3 को उसी समय इलेक्ट्रॉनिक ढंग से स्वचालित हो जाना था जब किसी कर दाता का जीएसटी नंबर फॉर्म 1 या फॉर्म 2 में डाला जाता। आदर्श रूप में देखा जाए तो एक करदाता के लिए तीन अलग-अलग फॉर्म में जानकारी देने की कोई आवश्यकता नहीं होनी चाहिए। परंतु निजी-सार्वजनिक भागीदारी के द्वारा भी यही हो रहा है। फिलहाल इसके द्वारा सूचना प्रौद्योगिकी का ध्यान रखा जा रहा है। अपेक्षा थी कि उसे ऐसे तैयार किया जाएगा कि वह फॉर्म के इलेक्ट्रॉनिक अंत: संबंधों का ध्यान रखेगा। इस बुनियादी जुड़ाव वाले ढांचे के जीएसटी लागू करना अब कर वंचना से जूझने की वजह बन रहा है।
अनिवार्य तौर पर बिना लिंकेज के नवाचार के जीएसटी की व्यवस्था देश की पिछली अप्रत्यक्ष कर व्यवस्था से बहुत अलग नहीं थी। इसी प्रकार जीएसटी के अधीन भी कर वंचना की प्रक्रिया जारी रही। कर वंचना का एक तरीका रहा ऐसी के माध्यम से भारी भरकम कर भुगतान राशि का दावा करना। बिना जमीनी जांच के यह पता लगाने का कोई तरीका नहीं है कि इस बारे में सही दावा किया जा रहा है अथवा नहीं। लातिन अमेरिका के एक वित्त मंत्री ने एक बार मेरे समक्ष यह स्वीकार किया था कि उनके देश में अनेक हाथी चूहों के पीछे छिपे हुए हैं। जाहिर है कई बड़ी कंपनियां ऐसे ऐसी तैयार करती हैं जिनके जरिये कर चुकाया जाता है। इनमें से कुछ वैध हो सकती हैं जो दर्शाता है कि जीएसटी में ढांचागत कमियां हैं। परंतु पूरी कहानी यहीं समाप्त नहीं होती।
दूसरा तरीका है व्यापक और गलत टर्नओवर दर्शाने का तथा इसके साथ व्यापक इनपुट कॉस्ट जोडऩे का। इससे तीन काम सिद्ध होते हैं: पहला अंशधारकों को संतुष्ट करना, दूसरा बड़े ऋण चाहने वाले कर्जदारों को संतुष्ट करना और कागज पर ऐसी तैयार करना। ऐसा तब जबकि वास्तविक खरीद-बिक्री अत्यंत कम होती है। गलत ऐसी जीएसटी के नकद राजस्व संग्रह को सीमित कर देता है। इससे सरकारी व्यय वितरण में बाधा उत्पन्न होती है और कर संग्राहकों पर संग्रह का दबाव बढ़ता है। इससे ईमानदार करदाताओं के वैध आईटीसी दावों पर सवाल उठता है।
कुछ ब्रोकरों द्वारा फर्जी इनवॉइस का इस्तेमाल भी किया गया। इनका इस्तेमाल कंपनियों के अधिकारियों द्वारा विभिन्न क्षेत्रों में किया जाता है। ये ब्रोकर कंपनी की जानकारी के बिना उन कारोबारों से पैसे कमाते हैं जिनकी उन्हें सेवा करनी होती है। दिवालिया संहिता से भी मदद नहीं मिली। यह करदाताओं को गैर निष्पादित परिसंपत्तियों के मामले में अनुच्छेद 13 का लाभ लेने का अवसर देता है। एक बार इसकी इजाजत मिल जाने के बाद जीएसटी के अधीन कर जवाबदेही हाशिये पर चली जाती है।
दूसरी ओर, जीएसटी वेबसाइट में अपलोडिंग के दौरान निरंतर समस्याएं आती रही हैं। यदि अच्छे करदाताओं से अनुपालन की अपेक्षा है तो इन कमियों को तत्काल दूर करना होगा। किसी आपूर्तिकर्ता के बाहर जाने पर जीएसटी पंजीयन को स्वत: समाप्त करने पर भी विचार किया जाना चाहिए। इसके अलावा भी कई ऐसी समस्याएं हैं जो अच्छे जीएसटी करदाताओं की राह में बाधा उत्पन्न करती हैं। अंतत: जीएसटी का प्रदर्शन इस बात पर निर्भर करता है कि कर चुकाने को लेकर भारतीय करदाताओं का रुख कैसा है। परंतु अनुपूरक नीति और प्रशासनिक कदमों की भी आवश्यकता है। नीति निर्माताओं को एक निरंतरतापूर्ण और स्थायी कर ढांचा बनाना चाहिए। बिना किसी देरी के फॉर्मों के लिए पीपीपी मॉडल लागू किया जाना चाहिए और प्रशासन द्वारा रीफंड सुविधा प्रदान की जानी चाहिए। प्रशासन को राजस्व लक्ष्य पूरा करने के लिए पंजीयन समाप्त करने तथा अन्य कदमों से बचना चाहिए। केवल तभी जीएसटी को सफल माना जा सकता है।
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