पिछले सप्ताह 5 प्रतिशत की गिरावट और प्रमुख सूचकांकों के गिरकर वर्ष 2014-15 के स्तरों पर पहुंचने से निवेशकों में खरीदारी की दिलचस्पी बढऩे लगी है। वह इस पर गंभीरता से सोच रहे हैं कि क्या अब बड़े शेयरों पर दांव लगाने का सही समय आ गया है? अबेकस ऐसेट मैनेजमेंट के संस्थापक सुनील सिंघानिया कहते हैं, 'भारतीय बाजार वैश्विक तौर पर हो रहे घटनाक्रम पर प्रतिक्रिया दे रहे हैं और कुछ शेयर गिरावट के बाद भी आकर्षक दिख रहे हैं, लेकिन यह भविष्यवाणी करना अभी जल्दबाजी होगी कि क्या इक्विटी में कमजोरी पूरी तरह से आ चुकी है या इसमें अभी और गिरावट देखी जा सकती है।' उनके लिए इसे लेकर कुछ और स्पष्टïता की जरूरत है कि बाजार में गिरावट का चरण पूरा हो चुका है।
16 गुना के 12 महीने की पिछली कीमत-आय (पीई) पर, नवंबर 2019 के 26.3 गुना के ऊंचे मूल्यांकन के बाद से 36 प्रतिशत की गिरावट आई है जिससे बाजार पिछले 6 वर्षों में सबसे ज्यादा आकर्षक दिख रहा है। लेकिन अभी भी बाजार में अवसर मौजूद हैं। भारत समेत वैश्विक अर्थव्यवस्थाएं मंदी की ओर बढ़ सकती है और यदि ऐसा हुआ जो निफ्टी 2008-09 के वैश्विक वित्तीय संकट (जीएफसी) के मुकाबले ऊंचे मूल्यांकन पर कारोबार कर सकता है।
जब एक दशक पहले बाजार बड़े वित्तीय संस्थानों में सुस्ती की वजह से मंदी के चरण में आ गए थे तब पर्याप्त नकदी व्यवस्था काफी पर्याप्त और अच्छा समाधान था। लेकिन इस बार समस्याएं अलग हैं। आदित्य बिड़ला सन लाइफ म्युचुअल फंड के मुख्य निवेश अधिकारी (इक्विटी) महेश पाटिल का कहना है, '2008 में, बाजार में गिरावट से पहले, अर्थव्यवस्था अपने चरम पर थी। मौजूदा गिरावट के समय में कई आर्थिक कारक दब गए हैं।' मैक्स लाइफ इंश्योरेंस के निदेशक एवं मुख्य निवेश अधिकारी मिहिर वोरा का मानना है कि जीएफसी पश्चिम में वित्तीय क्षेत्र पर दबाव का मामला था और इससे पश्चिम क्षेत्र में अर्थव्यवस्था प्रभावित हुई थी। उन्होंने कहा, 'मौजूदा समय में, जबरन आर्थिक बंदी वित्तीय बाजारों को प्रभावित कर रही है। अनिश्चितताएं दीर्घकालीन संभावनाओं को प्रभावित कर रही हैं, मौजूदा हालात जीएफसी के समय से अलग हैं।'
विश्लेषक मान रहे हैं कि भारतीय उद्योग जगत की आय मार्च 2020 से दो तिमाहियों के लिए दबाव की चपेट में आ सकती है। जब इस संदर्भ में विस्तार से देखा जाए तो पता चलता है कि टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज, टाइटन, एशियन पेंटï्स, डाबर, ब्रिटानिया और हैवेल्स जैसे शेयरों का मूल्यांकन गिरावट के बावजूद निवेशकों के लिए महंगा बना हुआ है। इसकी मुख्य वजह यह है कि मांग और मुनाफे के मोर्चे पर अनिश्चितताएं बढ़ रही हैं। हालांकि एचडीएफसी, एचडीएफसी बैंक, एलऐंडटी, और रिलायंस इंडस्ट्रीज का मूल्यांकन जीएफसी स्तरों के नजदीक है, लेकिन वे अभी भी पूरी तरह से सस्ते नहीं हैं।
जेएसडब्ल्यू स्टील, अदाणी पोटï्र्स, महिंद्रा ऐंड महिंद्रा, हिंडाल्को और मदरसन सूमी जैसी कंपनियों को मांग और आपूर्ति संबंधित बड़ी अवरोध का सामना करना पड़ा है और वृद्घि पर दो-तीन तिमाहियों से दबाव देखा जा रहा है। ये शेयर अब सस्ते हो गए हैं। आईटीसी, इंडियन ऑयल, ओएनजीसी, भारत पेट्रोलियम, बजाज ऑटो, सिप्ला, और अरविंदो फार्मा उन शेयरों में शामिल हैं जो अपने जीएफसी मूल्यांकन स्तरों से नीचे कारोबार कर रहे हैं।
यही वजह है कि घरेलू फंड प्रबंधक निवेशकों को मौजूदा मंदी में इक्विटी से पूरी तरह परहेज नहीं करने की सलाह दे रहे हैं। वोरा का कहना है, 'बाजार एक दिन गिरावट से उबर सकता है, लेकिन सभी शेयर एक साथ इससे नहीं उबरेंगे। निवेशक शेयरों की सूची तैयार रखना चाहेंगे।' इसके अलावा, बजाज आलियांज लाइफ इंश्योरेंस के मुख्य निवेश अधिकारी संपत रेड्डी का कहना है कि समझदारी की बात यह है कि कारोबार को लेकर संयम बरते और बिकवाली के लिए आक्रामकता न दिखाएं। वह कहते हैं, 'ऐतिहासिक आंकड़े से पता चला है कि चुनौतीपूर्ण/उतार-चढ़ाव के समय में हुए निवेश ने निवेशकों को मध्यावधि से दीर्घावधि के दौरान अच्छा प्रदर्शन किया।'
इसलिए, जहां लार्ज-कैप शेयर पूरी तरह आकर्षक नहीं हो सकते, लेकिन व्यक्तिगत जोखिम प्रोफाइल के आधार पर मौजूदा बाजार हालात ने इनमें से कुछ शेयरों को खरीदने का अवसर दिया है, हालांकि अभी बड़ी मात्रा में इनकी खरीदारी से परहेज किया जा सकता है।
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