आम तौर पर माना जाता है कि सिस्टेमैटिक इन्वेस्टमेंट प्लान (एसआईपी) के जरिये किए गए निवेश पर नुकसान (नेगेटिव रिटर्न) नहीं होता है, लेकिन बिगड़ते हालात कुछ दूसरी कहानी ही बयां कर रहे हैं। विभिन्न बाजार पूंजीकरण और निवेश अवधि वाले डाइवर्सिफाइड इक्विटी फंडों में निवेश फिलहाल नुकसान में चल रहे हैं। इस समय एसीआईपी योजनाओं पर प्रतिफल भी पिछले आंकड़ों के मुकाबले कमजोर दिख रहे हैं।
बाजार में मचा हाहाकार इन दोनों बातों की मुख्य वजह है। प्राइमइन्वेस्टर के सह-संस्थापक विद्या बाला कहती हैं, 'एसआईपी उस समय अधिक कारगर होता है जब बाजार नीचे जाकर दोबारा वापसी करता है। हरेक किस्त में निवेशक सस्ती दरों पर म्युचुअल फंड यूनिट खरीदते हैं। जब बाजार ऊपर भागता है तो इसका लाभ निवेशकों को मिलता है। जब उल्टी बयार बहती है (जब यूनिट महंगे दाम में खरीदी जाती है और अचानक बाजार फिसल जाता है) तो एसआईपी निवेश नुकसान में चला जाता है।' इससे पहले भी एसआईपी पर नुकसान हुआ है, लेकिन ऐसा वाकया कभी-कभार देखने को ही मिलता है। कई निवेशकों को इस बात को लेकर हताशा हो सकती है कि पांच वर्षों तक निवेश बनाए रखने के बाद भी उन्हें मुनाफा हाथ नहीं लगा है। बाला कहती हैं,'जोखिम से सुरक्षा के लिए ही निवेशकों को दीर्घ अवधि के लिए निवेश करने पर भी कुछ रकम डेट योजनाओं में लगाने की सलाह दी जाती है।'
पिछले एक वर्ष के दौरान मझोले एवं छोटे फंडों के मुकाबले बड़े फंडों में तेज गिरावट आई है। अमूमन निवेशक बड़े फंडों को स्थिरता एवं मजबूती से जोड़कर देखते हैं। प्लटस कैपिटल के संस्थापक एवं प्रबंध निदेशक अंकुर कपूर कहते हैं, '2019 में बड़े शेयरों में तेजी रही है। 2018 के शुरू से अब तक मझोले एवं छोटे शेयरों का प्रदर्शन शायद ही अच्छा रहा है। सितंबर 2019 से उनके प्रदर्शन में थोड़ा सुधार हुआ है। चूंकि, बड़े शेयरों में अधिक तेजी आई है, इसलिए उनमें गिरावट भी अधिक रही है।' तेज गिरावट से मोटे तौर पर यह सबक मिला है कि छोटी अवधि के किए गए निवेश शेयरों से निकाल लिए जाएं तो बेहतर रहेगा।
पर्सनलफाइनैंसप्लान डॉट इन के संस्थापक दीपेश राघव कहते हैं,'लक्ष्य के नजदीक पहुंचते ही शेयरों में निवेश कम करना शुरू कर दें। लक्ष्य के लिए आवश्यक रकम दो से तीन वर्ष पहले से फिक्स्ड इनकम इंस्ट्रमेंट में रखना चाहिए।'
अपना एसीआईपी बंद करने के लिए मौजूदा आंकड़ों पर निर्भर नहीं रहें। मौजूदा समय ऐसा है जब एसीआईपी की रकम सस्ते भाव में यूनिट खरीदेगी और बाजार में तेजी आने पर यह निवेशकों के लिए फायदेमंद रहेगा। अक्सर ऐसा होता भी है। अपने दिमाग में यह बात हमेशा रखें कि 2008 में सेंसेक्स में 52 प्रतिशत गिरावट आई थी, लेकिन 2009 में इसमें 81 प्रतिशत की उछाल आई। जिस फंड में आपने निवेश किया है, उसमें उसके श्रेणी औसत से अधिक गिरावट आई है तो जल्दबाजी में कोई निर्णय लेने से बचें। कुछ फंडों को कम नुकसान होता है, क्योंकि वे नकदी या इसके समतूल्य योजनाओं में निवेश करने लगते हैं।
बाजार में जब तक गिरावट रहती है तब तक यह अच्छा लगता है, लेकिन बाजार में जबरदस्त तेजी आने पर यह नीति उल्टी साबित हो सकती है। जिस फंड में आपने निवेश किया है अगर उसका दीर्घ अवधि के प्रदर्शन का रिकॉर्ड अच्छा रहा है तो इसे सुधरने का मौका जरूर दें। कुछ फंडों में मंदी के समय अधिक गिरावट आती है, लेकिन हालात तेजी होने पर उसी रफ्तार से वे वापसी भी करते हैं। हालांकि अगर फंड लंबे समय से, मिसाल के तौर पर छह महीने से पीछे चल रहा है तो आप इसे निकलकर लगातार बेहतर प्रदर्शन करने वाले फंड में रकम लगा सकते हैं।
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