तमिलनाडु की राजनीति में असरदार होंगे रजनी-कमल? | आदिति फडणीस / March 20, 2020 | | | | |
अभिनेता से नेता बन चुके रजनीकांत ने 31 दिसंबर, 2017 को घोषणा की थी कि वह राजनीति में कदम रखेंगे। सवाल यह था कि सियासत में उनके प्रवेश का जरिया क्या होगा? अभी तक रजनीकांत अपने प्रशंसकों के क्लबों के लिए एक वेबसाइट एवं मोबाइल ऐप लेकर आए हैं। अभी तक तीन लाख से अधिक लोग इस वेबसाइट पर पंजीकरण करा चुके हैं। कहा जा रहा है कि ये लोग उनके कट्टर समर्थक हैं। रजनीकांत का नारा क्या है? 'अच्छा करो और बोलो, आपके साथ भी अच्छा होगा।' लोग अब भी उनके राजनीतिक दल के सामने आने का इंतजार कर रहे हैं। इस दल का राजनीतिक मकसद क्या है? द्रविड़ मुन्नेत्र कषगम (द्रमुक) को हराना।
यही वजह है कि इस महीने की शुरुआत में रजनीकांत की एक प्रेस सभा को लेकर उनके समर्थकों में खासा उत्साह था। हरेक ने सोचा कि इस सभा में ही वह अपनी पार्टी का ऐलान करने वाले हैं। लेकिन इस संवाददाता सम्मेलन में कुछ खास हुआ नहीं, केवल रोजमर्रा की सियासी बातें होती रहीं। हमें अब यह सुनने को मिल रहा है कि अप्रैल में इस पार्टी का ऐलान होगा।
साफ कहें तो समय बीतता जा रहा है। तमिलनाडु में विधानसभा चुनाव मई 2021 में होने वाले हैं। कमल हासन की मक्कल निधि मैयम (एमएनएम) और टीटीवी दिनकरन की अम्मा मक्कल मुन्नेत्र कषगम (एएमएमके) जैसे नए दल पहले से ही मौजूद हैं। सत्तारूढ़ अन्नाद्रमुक और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के रिश्ते यूं तो सहयोगियों की तरह हैं लेकिन दोनों दलों के शीर्ष नेताओं के एक-दूसरे के खिलाफ विष-वमन से हालात असहज हो चुके हैं। वैसे दोनों दल आधिकारिक तौर पर यही कह रहे हैं कि इन नेताओं की टिप्पणी से उनका सरोकार नहीं है।
एक महीने पहले तमिलनाडु में स्थानीय निकाय चुनावों में भाजपा का प्रदर्शन खराब रहने के बाद राज्य के मंत्री डी जयकुमार ने भाजपा के वरिष्ठ नेता पोन राधाकृष्णन के एक बयान की आलोचना की थी। राधाकृष्णन ने कहा था कि तमिलनाडु-केरल सीमा पर तैनात स्पेशल सब-इंस्पेक्टर वाई विल्सन की संदिग्ध आईएसआईएस तत्त्वों द्वारा की गई हत्या राज्य के एक आतंकी ठिकाना बनने की निशानी है। जयकुमार ने कहा कि पोन राधाकृष्णन ने वाजपेयी सरकार में मंत्री रहते हुए तमिलनाडु के लिए कुछ नहीं किया था। इस तरह दोनों दलों के बीच कहासुनी शुरू हो चुकी है और चतुर दल इसका लाभ उठाने की पूरी कोशिश करेगा।
ऐसे हालात में रजनीकांत को तेजी से कदम उठाने होंगे। अभी तक उन्होंने जातीय एवं नागरिकता से तटस्थ तरीके से अपनी बात रखी है। हालांकि उन्होंने नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के आलोचकों के खिलाफ खुलकर सामने आते हुए कहा था कि यह कानून अल्पसंख्यक-विरोधी नहीं है। लेकिन इसी के साथ उन्होंने इस्लामी समुदाय के नेता के साथ मुलाकात के लिए सहमति जताकर चेन्नई में सीएए प्रदर्शनकारियों को संकेत दे दिया था। वह चाहते हैं कि उनकी पार्टी भ्रष्टाचार खत्म करने और सुशासन के लिए काम करे। जिस राज्य में राजनीति पर दबदबा हिंदी-हिंदू-हिंदुस्तान पर हमला करने वालों का रहा है, रजनीकांत का दखल महज बयानबाजी से अधिक होना होगा।
इसके समानांतर एक और रोचक घटनाक्रम है। तमिलसाई सुंदरराजन को छह महीने पहले तेलंगाना का राज्यपाल नियुक्त किए जाने के बाद एल मुरुगन को तमिलनाडु में भाजपा का नया अध्यक्ष नियुक्त किया गया है। पेशे से वकील और आरएसएस के सक्रिय सदस्य मुरुगन इसके पहले राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के उपाध्यक्ष थे। वह अरुंधतीयार समुदाय से ताल्लुक रखते हैं जो तमिलनाडु की आबादी में महज 3.7 फीसदी हिस्सेदारी होने के बावजूद राजनीतिक रूप से असरदार है। मुरुगन के पास दोहरा नुकसान है। वह ऐसे राज्य में एक दलित राजनीतिक नेता हैं जिसमें बेहद सक्रिय दलित नेता रहे हैं। इसके अलावा वह एक ऐसी पार्टी के दलित नेता हैं जो राज्य की परंपरागत तौर पर हिंदू-विरोधी रहने वाली राजनीति में खुद को स्थापित भी नहीं कर पाई है।
तमिलनाडु की राजनीति में मुरुगन की नियुक्ति का फौरन पडऩे वाले असर को लेकर अंदाजा लगा पाना मुश्किल है। लेकिन इससे तमिलनाडु में भाजपा की भावी दिशा का अंदाजा जरूर लगता है। मसलन, क्या योगी आदित्यनाथ के चुनावी अभियानों के लिए यह राज्य तैयार है? भाजपा और रजनीकांत के बीच किस तरह का रिश्ता होगा? अगर रजनीकांत की सियासत का मकसद आगे भी द्रमुक को हराना ही रहता है तो इसके लिए सबसे अच्छा दांव अन्नाद्रमुक ही होगी। लेकिन रजनी तो अन्नाद्रमुक को भी हराना चाहते हैं।
यह बात रजनीकांत को भाजपा के लिए स्वाभाविक रूप से कारगर बना देती है। लेकिन भाजपा ने एक ऐसे व्यक्ति को मुखिया बनाया है जिसका राजनीतिक संवाद-कौशल अभी तक परखा ही नहीं गया है। दो बातें संभव हैं: मुरुगन गंभीर कार्यों का रिकॉर्ड रखने के बावजूद महज नाममात्र के नेता ही बनकर रह जाएं और तमिलनाडु में भाजपा के विकास से जुड़े फैसले कहीं और लिए जाएं। या फिर द्रमुक-विरोधी रुझान की स्थिति में मत भाजपा एवं अन्नाद्रमुक के बीच बंटने के बजाय तीन या चार हिस्सों में बंट जाएं।
आर के नगर विधानसभा सीट के उपचुनाव में भाजपा उम्मीदवार को नोटा श्रेणी को मिले मत से थोड़े ही ज्यादा मत मिले थे। अक्टूबर 2019 में हुए दो विधानसभा सीटों के उपचुनाव में तो भाजपा खड़ी ही नहीं हुई थी। क्या तमिलनाडु राजनीति में द्रविड़-पश्चात दौर की तरफ बढ़ रहा है जहां रजनीकांत राजनीति में अध्यात्म की बातें कर रहे हैं और अच्छा बोलने एवं करने से अच्छा होने की धारणा में यकीन कर रहे हैं? वहीं भाजपा जमीनी स्तर पर काम करने में जुटी हुई है।
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