उच्चतम न्यायालय ने आज एक बार फिर दूरसंचार विभाग को कड़ी फटकार लगाई। विभाग ने दूरसंचार कंपनियों को समायोजित सकल राजस्व (एजीआर) से जुड़े बकाये के भुगतान में राहत देने के लिए याचिका दायर की थी। विभाग ने दूरसंचार कंपनियों को 20 साल में किस्तों में भुगतान करने और जुर्माना तथा ब्याज माफ करने का प्रस्ताव दिया था।
न्यायालय ने साथ ही दूरसंचार कंपनियों और मीडिया को भी आड़े हाथ लिया। न्यायालय ने कहा कि कंपनियां भुगतान से बचने की कोशिश कर रही हैं और मीडिया तथ्यों की सही जानकारी नहीं दे रहा है। शीर्ष न्यायालय ने कंपनियों को दूरसंचार विभाग के आंकलन के मुताबिक पूरे बकाये का भुगतान करने का आदेश दिया। न्यायालय ने इस बात पर भी सवाल उठाए कि कंपनियां किस आधार पर अपने एजीआर बकाये का स्वआकलन कर सकती हैं।
न्यायालय ने कहा, 'न्यायालय की मंजूरी के बिना आपको स्व-आकलन की अनुमति किसने दी।' न्यायालय ने कहा कि बकाया राशि पर अब और कोई आपत्ति स्वीकार नहीं की जाएगी। दूरसंचार विभाग ने कंपनियों पर जो बकाया निर्धारित किया था, न्यायालय ने उसकी पुष्टि कर दी है।
विभाग कई बार कह चुका है कि भारती एयरटेल, वोडाफोन आइडिया और टाटा टेलीसर्विसेज पर उसका 1.02 लाख करोड़ रुपये बकाया है। न्यायालय ने कहा कि उसके आदेश में साफतौर पर बकाये की व्याख्या की गई है। 8-10 महीने में स्वआकलित बकाये के अनुमोदन की अनुमति नहीं दी जा सकती है। न्यायालय ने कहा कि कंपनियों ने उसके पिछले साल 24 अक्टूबर के आदेश के मुताबिक भुगतान करना होगा। न्यायालय ने एजीआर के मुद्दे पर लेख प्रकाशित करने के लिए मीडिया को भी आड़े हाथ लिया और कहा कि अगर भविष्य में अखबारों में ऐसे लेख आए तो इसके लिए दूरसंचार कंपनियों के प्रबंध निदेशक व्यक्तिगत तौर पर जिम्मेदार माने जाएंगे और उन पर अदालत की अवमानना करने पर कार्रवाई होगी।
न्यायालय ने दूरसंचार कंपनियों को 20 साल में एजीआर बकाये के भुगतान की अनुमति का अनुरोध करने वाली याचिका पर सुनवाई से इनकार कर दिया और कहा कि इस पर दो हफ्ते बाद सुनवाई होगी। न्यायालय ने कहा कि सभी अखबार अदालतों को प्रभावित करने की कोशिश कर रहे हैं और सभी कंपनियां मीडिया के जरिये उच्चतम न्यायालय को प्रभावित करने की कोशिश कर रही हैं। उच्चतम न्यायालय ने यहां तक कह डाला कि अगर केंद्र ने इस मामले को हल्के में लिया और न्यायालय से अपने फैसले की समीक्षा की मांग की तो वह खुद को इस मामले से अलग कर देगा।
न्यायालय ने कहा कि दूरसंचार विभाग कंपनियों को स्वआकलन की अनुमति कैसे दे सकता है? कंपनियों ने सरकारी पैसों को अपनी जेब में रख लिया है और उसका भुगतान नहीं कर रही हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने स्व-आकलन के लिए जिम्मेदार दूरसंचार विभाग के अधिकारियों को समन किया है। अदालत ने दूरसंचार विभाग को आदेश दिया कि वह बकाये के स्व-आकलन की अनुमति को तत्काल वापस ले। अदालत ने कहा कि कंपनियां हमें धोखा नहीं दे सकतीं और अगर जरूरी हुआ तो दूरसंचार कंपनियों के प्रबंध निदेशकों को समन किया जाएगा और उन्हें जेल भी भेजा जा सकता है।
अदालत ने कहा, 'मीडिया भी अदालत की अवमानना कर रहा है। मीडिया हमारे फैसले पर देश को भ्रमित कर रहा है।' दूरसंचार विभाग ने अदालत में याचिका दायर की जिसमें दूरसंचार कंपनियों के लिए रियायत की मांग की गई थी। विभाग ने ऑपरेटरों के लिए 20 साल में बकाये का भुगतान करने और ब्याज तथा जुर्माना माफ करने की अनुमति की अपील की थी। वोडाफोन आइडिया ने 6 मार्च को सरकार को बताया कि उसका कुल बकाया 21,533 करोड़ रुपये बनता है जबकि दूरसंचार विभाग का अनुमान 58,254 करोड़ रुपये का है।
कंपनी ने सोमवार को कहा था कि उसने 3,354 करोड़ रुपये का भुगतान कर दिया है। इससे पहले उसने 3,500 करोड़ रुपये का भुगतान किया था। स्व-आकलन के तहत भारती एयरटेल ने दो किस्तों में 13,004 करोड़ रुपये का भुगतान किया है। इसके साथ ही उसने 5,000 करोड़ रुपये अतिरिक्त जमा कराया है। लेकिन विभाग के अनुसार भारती पर 43,980 करोड़ रुपये की देनदारी बनती है। इसी तरह टाटा टेलीसर्विसेज ने एजीआर बकाया मद में 2,197 करोड़ रुपये का भुगतान किया है और अंतर की भरपाई के लिए अतिरिक्त 2,000 करोड़ रुपये जमा कराए हैं।
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