देश में दूरसंचार क्षेत्र की गाथा एक दारुण अंत की ओर बढ़ रही है। सर्वोच्च न्यायालय ने दूरसंचार कंपनियों के समायोजित सकल राजस्व (एजीआर) के नए सिरे से आकलन के दूरसंचार विभाग के प्रयास को लेकर बुधवार को उससे नाखुशी जाहिर की। अदालत ने कहा कि कंपनियों को स्व आकलन की अनुमति देना उसके आदेश का स्पष्ट उल्लंघन है बल्कि यह आदेश के साथ धोखा है। अक्टूबर 2019 में अपने पिछले आदेश में सर्वोच्च न्यायालय ने दूरसंचार कंपनियों के एजीआर की सरकार की परिभाषा को बरकरार रखा था। इसके मुताबिक दूरसंचार सेवा प्रदाताओं को सरकार को करीब 1.47 लाख करोड़ रुपये की राशि चुकानी है।
यह मामला सन 1999 का है। उस वक्त दूरसंचार सेवा प्रदाताओं को तयशुदा लाइसेंस व्यवस्था से राजस्व साझेदारी वाली व्यवस्था में स्थानांतरित किया गया था। सन 2003 से एजीआर का मसला विभिन्न अदालतों और पंचाटों में गया है और उसे लेकर अनुकूल निर्णय दिए गए हैं। सरकार अपनी परिभाषा पर अड़ी रही और सर्वोच्च न्यायालय ने भी इसे बरकरार रखा। भारी कर्ज वाले कारोबारियों को इसे चुकता करने में मुश्किल हो रही है। कम से कम एक कंपनी ने कहा है कि वह शायद कारोबार में बनी नहीं रह सके। ऐसा नतीजा कई चिंताओं को जन्म देता है। सरकार अब विलंबित चरणबद्ध भुगतान की अनुमति चाहती है तो प्रश्न यह है कि विपरीत निर्णयों के बावजूद वह अपनी परिभाषा पर टिकी हुई क्यों है। जबकि उसे अच्छी तरह मालूम है कि यह इस क्षेत्र की वित्तीय स्थिति को प्रभावित करने वाली बात है?
एक संभावना राजस्व चिंता हो सकती है। बहरहाल, घटी हुई प्रतिस्पर्धा और इस क्षेत्र में बढ़ा हुआ तनाव लंबी अवधि में राजस्व को प्रभावित करेगा। इसके अलावा, दूरसंचार क्षेत्र में दिवालिया होने की घटनाएं बैंकिंग तंत्र पर दबाव डालेंगी जो पहले ही गहन दबाव में है। इसका असर उनकी ऋण देने की क्षमता पर पड़ेगा जो आर्थिक गतिविधियों और वृद्धि को प्रभावित करेगा। इसके राजकोषीय प्रभाव हो सकते हैं क्योंकि सरकार को सरकारी बैंकों में और अधिक पूंजी निवेश करना पड़ सकता है। यदि भविष्य में कोई दूरसंचार सेवा प्रदाता दिवालिया होता है या उसका कर्ज बढ़ता है तो यह न केवल निवेश बल्कि उपभोक्ता सेवा को भी प्रभावित करेगा। इस क्षेत्र की सरकारी कंपनियां इस स्थिति में नहीं हैं कि वे व्यापक उपभोक्ता आधार की सेवा कर सकें। ऐसे में भारत पीछे छूट जाएगा क्योंकि शेष विश्व तकनीकी क्षेत्र में नए दौर में प्रवेश कर रहा है। यह सरकार की डिजिटल पहलों को सीधे प्रभावित करेगा। इतना ही नहीं इस क्षेत्र को देश के आर्थिक सुधारों और उदारीकरण का चमकदार उदाहरण माना जाता था। ऐसे में यह निवेश के केंद्र के रूप में देश की छवि को नुकसान पहुंचाएगा।
आज जैसे हालात हैं, उसके आधार पर कह सकते हैं कि सरकार नुकसान में रह सकती है। हो सकता है उसे वैसा राजस्व नहीं मिले जैसी कि आशा थी। इसलिए क्योंकि सेवा प्रदाता राशि चुकाने की स्थिति में नहीं हैं। दूसरी ओर, बैंकिंग तंत्र प्रभावित होगा, दूरसंचार सेवाओं पर दबाव बढ़ेगा और बड़े पैमाने पर रोजगार का नुकसान होगा। यह आत्मघाती है। पूरी समस्या सरकार द्वारा खड़ी की गई है और यदि एजीआर बकाये के भुगतान को शिथिल नहीं किया गया तो इस क्षेत्र को बचाने के लिए तरीके तलाशने होंगे। इसमें कानून में बदलाव भी शामिल हैं। न्यायिक अति सक्रियता की बहस तो जारी रहेगी लेकिन सरकार को इस क्षेत्र को और अधिक दबाव में नहीं आने देना चाहिए क्योंकि यह देश की आर्थिक संभावनाओं को सीधे प्रभावित करेगा। सरकार ने ही यह समस्या खड़ी की और इसलिए उसे ही इसे खत्म करने का दायित्व भी लेना चाहिए।
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