वृद्धि के अनुमान जल्द आने और कम होने से बढ़ेगा भरोसा | ए के भट्टाचार्य / March 17, 2020 | | | | |
जब केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (सीएसओ) ने जनवरी 2017 में वर्ष 2016-17 के लिए देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर संबंधी अनुमानों की घोषणा की थी तो नरेंद्र मोदी सरकार के आर्थिक नीति-निर्माताओं में निराशा देखी गई थी। जीडीपी वृद्धि दर 7.1 फीसदी रहने का अनुमान था जो सरकार की अपेक्षाओं से काफी कम और 2015-16 की वृद्धि दर से भी कम थी। आलोचकों ने कहा था कि यह आंकड़ा नोटबंदी के दुष्परिणामों का शुरुआती संकेत है। नोटबंदी के दौरान चलन में मौजूद 86 फीसदी बड़े नोटों को निरस्त घोषित कर दिया गया था। इस वजह से अर्थव्यवस्था को गहरे आघात का सामना करना पड़ा था और आर्थिक वृद्धि दर में गिरावट की आशंकाएं बढऩे लगी थीं।
लेकिन वर्ष 2016-17 में देश की आर्थिक वृद्धि को लेकर बनी धारणा दो साल बाद पूरी तरह बदल गई। उस वर्ष के लिए वृद्धि दर को संशोधित कर 8.2 फीसदी कर दिया गया। इसके बाद सरकार के आर्थिक नीति-निर्माता जोर-शोर से कहने लगे कि नोटबंदी के साल में भी वृद्धि दर न केवल मजबूत बनी रही बल्कि एक साल पहले की आठ फीसदी की वृद्धि दर से ऊंची भी रही। वर्ष 2016-17 के बारे में आए एक अन्य संशोधित अनुमान में वृद्धि दर को 8.3 फीसदी कर दिया गया।
दरअसल यह भारत में आर्थिक आंकड़ों में बार-बार किए जाने वाले संशोधनों का नतीजा है। सीएसओ किसी भी वित्त वर्ष के आर्थिक वृद्धि के बारे में कुल छह अनुमान जारी करता है। एक ही वित्त वर्ष के बारे में ये वृद्धि अनुमान तीन साल के दौरान जारी किए जाते हैं।
इस तरह वर्ष 2016-17 में जीडीपी वृद्धि के बारे में पहले अग्रिम अनुमान जनवरी 2017 में जारी किए गए। दूसरा अग्रिम अनुमान इसके एक महीने बाद फरवरी 2017 के आखिर में जारी किया गया। अस्थायी अनुमान कहे जाने वाले तीसरे अनुमान मई 2017 में जारी किए गए। फिर आठ महीनों के लंबे अंतराल पर प्रथम संशोधित अनुमान के रूप में चौथा अनुमान जनवरी 2018 में जारी किया गया। वर्ष 2016-17 की आर्थिक वृद्धि के बारे में दो अन्य अनुमान भी एक-एक साल के अंतराल पर जारी हुए। दूसरा संशोधित अनुमान 31 जनवरी, 2019 को आया जबकि तीसरा संशोधित अनुमान उसके ठीक एक साल बाद 31 जनवरी, 2020 को जारी किया गया।
वर्ष 2016-17 में जीडीपी संबंधी शुरुआती चार अनुमानों में कोई बदलाव नहीं किया गया था और इनमें वृद्धि दर 7.1 फीसदी पर ही थी। लेकिन दूसरे संशोधित अनुमान में इस दर को 8.2 फीसदी कर दिया गया और तीसरे संशोधित अनुमान में यह 8.3 फीसदी कर दी गई।
जीडीपी वृद्धि अनुमानों में बड़े फेरबदल का यह सिलसिला वर्ष 2017-18 और 2018-19 में भी थोड़े-बहुत बदलावों के साथ जारी रहा। वर्ष 2017-18 के लिए पहला अग्रिम अनुमान 6.5 फीसदी वृद्धि का था जिसे दूसरे अग्रिम अनुमान में बढ़ाकर 6.6 फीसदी कर दिया गया। अस्थायी अनुमान में इसे फिर से बढ़ाकर 6.7 फीसदी कर दिया गया। जनवरी 2019 में जारी पहले संशोधित अनुमान में यह 7.2 फीसदी और उसके एक साल बाद जारी दूसरे संशोधित अनुमान में हल्की गिरावट के साथ सात फीसदी कर दी गई। तीसरा संशोधित अनुमान अगले साल जनवरी में जारी किया जाएगा और तब संभवत: एक और नया आंकड़ा सामने आएगा।
जहां तक वर्ष 2018-19 का सवाल है तो अभी तक इसके बारे में पहले चार अनुमान ही सामने आए हैं लेकिन इन सभी में चार अलग-अलग आंकड़े देखे गए हैं। जनवरी 2019 में जारी पहले अग्रिम अनुमान में वृद्धि दर 7.2 फीसदी बताई गई थी जो फरवरी 2019 में जारी दूसरे अग्रिम अनुमान में सात फीसदी, मई 2019 में 6.8 फीसदी और जनवरी 2020 में संशोधित कर 6.1 फीसदी कर दी गई। इसके पहले के दो वित्त वर्षों के उलट 2018-19 के सभी अनुमानों में वृद्धि दर लगातार नीचे की ओर संशोधित की गई है। चालू वित्त वर्ष 2019-20 के बारे में पहले दो अनुमान सामने आ चुके हैं जिनमें बिना किसी बदलाव के वृद्धि दर पांच फीसदी रहने की बात कही गई है।
सकल मूल्य-वद्र्धन, निजी अंतिम उपभोग व्यय, सरकारी अंतिम उपभोग व्यय और सकल निर्धारित पूंजी सृजन जैसे अन्य मानकों में भी आंकड़े बदलते रहे हैं। आर्थिक वृद्धि के आंकड़े अर्थव्यवस्था की हालत जांचने और जरूरी उपाय सुझाने के लिए नीति-निर्माताओं के पास एक अहम साधन है। अगर ये आंकड़े इतना बदलते रहते हैं तो इससे किसी भी नीतिगत पहल की प्रभावोत्पादकता प्रभावित होगी। करीब तीन साल की लंबी अवधि में इसे अंजाम दिए जाने का भी असर पड़ता है। इन छह अनुमानों में से जब भी कोई फेरबदल होता है तो उसके अगले साल के अनुमानों में भी संशोधन होना जरूरी हो जाएगा।
सीएसओ हर बार यह बताता है कि नए अनुमान में फेरबदल हुआ है। लेकिन इससे नीति-निर्माताओं की चुनौतियां कम नहीं हो जाती हैं। ऐसे बदलाव आंकड़ा जारी करने वाली व्यवस्था को राजनीतिक दबाव के लिहाज से असुरक्षित बना देता है ताकि एक खास राजनीतिक धारणा को पसंद आने वाले आंकड़े ही पेश किए जाएं। सीएसओ को तमाम अनुमानों तक पहुंचने की कार्य-पद्धति पर गौर करने के साथ ही व्यवस्था को अधिक मजबूत बनाने के लिए जरूरी उपचारात्मक कदमों का परीक्षण भी करना चाहिए। इसके साथ सीएसओ को एक ही वित्त वर्ष की जीडीपी वृद्धि के बारे में तीन वर्षों के भीतर छह अलग अनुमान जारी करने की जरूरत को भी परखना चाहिए। साफ तौर पर वृद्धि अनुमान जारी करने की मियाद और उनकी संख्या में कटौती करने से आंकड़ों की विश्वसनीयता और राजनीतिक दबावों के प्रति उनकी असुरक्षा से जुड़ी चिंताएं भी दूर की जा सकेंगी।
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