कारोबार में नुकसान पर 'फोर्स मैजर' के सहारे न बांधे उम्मीद | सुदीप्त दे / March 15, 2020 | | | | |
देश की अर्थव्यवस्था पर कोरोनावायरस के असर के चलते कारोबारी गतिविधियों के ठहरने की स्थिति में भारतीय कारोबारी समुदाय 'फोर्स मैजर' (अप्रत्याशित घटना) प्रावधान पर उम्मीद लगा रहा है लेकिन कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि सभी मामलों में यह प्रावधान कारगर नहीं होगा।
इंडिया इंक पर इस संकट के कानूनी प्रभाव का आकलन करते हुए कानूनी फर्म सिरिल अमरचंद मंगलदास द्वारा अपने ग्राहकों के लिए तैयार नोट में कहा, 'सभी अनुबंधों तथा प्रत्येक परिस्थिति में कोविड-19 के चलते पैदा स्थिति में फोर्स मैजर के सुरक्षात्मक उपाय प्रभावी नहीं हो सकेंगे क्योंकि विभिन्न अनुबंध तथा अलग-अलग कानूनी स्थितियां विभिन्न आवश्यकताओं को निर्धारित करती हैं।'
इस नोट में कंपनियों के लिए संबंधित कानूनी जोखिम को नियमित रूप से प्रबंधित करने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया है और सावधानीपूर्वक बताया गया है कि ब्रेकडाउन के चलते किस पक्ष को वित्तीय हानि का सामना करना पड़ेगा।
कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि दूसरे देशों से अलग, भारत में 'फोर्स मैजर' कानून के तहत प्रदत्त अधिकार के बजाय एक संविदात्मक अधिकार है। डीएसके लीगल में पार्टनर ऋषि आनंद कहते हैं, 'अनुबंध में शामिल होने के कारण इसमें अंतर्निहित सीमाओं को देखते हुए इस अवधारणा की व्याख्या तथा गुंजाइश संबंधित अनुबंध एवं न्यायिक क्षेत्र में इसकी सटीक शब्दावलियों के अधीन है।' भारत में अलग से किसी तरह के फोर्स मैजर कानून के अभाव में विशेषज्ञों को भय है कि कोविड-19 के कारण भारतीय न्यायालयों पर अनुबंध संबंधी विवादों का बोझ बढ़ सकता है।
आनंद कहते हैं, 'यह संभवतया भारतीय नीति निर्माताओं के लिए अनुबंध संबंधी कानूनों पर पुनर्विचार का समय है जिसमें फोर्स मैजर संबंधी घटनाएं होने पर संबंधित पक्षों के लिए जरूरी सुरक्षा मुहैया कराई जाए।' विशेषज्ञों का कहना है कि संबंधित प्रावधान के तहत सुरक्षा के बारे में विचार कर रहे कारोबारियों को अपने अनुबंध में लिखित प्रावधान को बारीकी से पढऩा चाहिए। सबसे पहले यह पता लगाना जरूरी है कि क्या फोर्स मेजर एक अनुबंधात्मक अधिकार है या कानूनी अधिकार।
विशेषज्ञों ने कहा कि कारोबारियों को इस बात पर भी गौर करना होगा कि क्या फोर्स मैजर प्रावधान का दावा करने से अनुबंध समाप्त तो नहीं हो जाएगा। अगर दोनों पक्षों के बीच हुए अनुबंध में फोर्स मैजर प्रावधान शामिल नहीं है फिर भी प्रभावित कंपनी या पक्ष भारतीय अनुबंध अधिनियम की धारा 56 के तहत डॉक्ट्रिन ऑफ फ्रस्ट्रेशन का सहारा ले सकते हैं। सिरिल अमरचंद मंगलदास ने कहा, 'हालांकि डॉक्ट्रिन ऑफ फ्रस्ट्रेशन के तहत दावा करते समय यह दिखाया जाए कि अनुबंध के तहत कार्य पूरी तरह असंभव है और अनुबंध को लागू करने के समय तथा परिस्थिति से अलग हो चुका है।'
विशेषज्ञों का कहना है कि हालिया विलय तथा अधिग्रहणों पर कोरोनावायरस का गंभीर असर होगा। सिरिल के नोट में कहा गया, 'विलय तथा अधिग्रहण करने वाली कंपनियों को अपने दस्तावेजों की गहन समीक्षा करनी चाहिए और कोविड-19 के कारण पडऩे वाले प्रभाव के लिए अपने साझेदारों से राय लेनी चाहिए।' आनंद कहते हैं, 'अंत में, दोनों पक्षों के बीच साझा कारोबारी विचारों को सबसे आगे रखा जाना चाहिए, जिसे विवादों के बजाय संवाद द्वारा ही प्राप्त किया जा सकता है।'
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