दुनिया भर में तेजी से फैल रहा कोविड-19 न केवल लोगों के स्वास्थ्य के लिए बड़ा संकट है बल्कि इसके व्यापक आर्थिक प्रभाव भी हो सकते हैं। इसकी एक झलक हमें गत सप्ताह देखने को मिली जब वैश्विक वित्तीय बाजारों में भारी अस्थिरता उत्पन्न हो गई और लोग अपनी पूंजी को सुरक्षित करने की कोशिश में लग गए। इसके चलते अमेरिकी सरकार का बॉन्ड प्रतिफल रिकॉर्ड स्तर तक गिर गया। भारतीय बाजारों में भारी अस्थिरता आई। हालांकि फिलहाल पूरा ध्यान कोविड-19 के प्रसार को रोकने पर होना चाहिए लेकिन यह भी जरूरी है कि इस वायरस के आर्थिक असर को यथासंभव सीमित किया जाए। मौजूदा हालात की तुलना वर्ष 2008 के वित्तीय संकट से की जा रही है। यह बात पूरी तरह सही नहीं है। न केवल इस समस्या की प्रकृति पूरी तरह अलग है बल्कि मौजूदा दौर में वित्तीय और आर्थिक क्षेत्र में इससे निपटने की नीतिगत गुंजाइश भी बहुत सीमित है।
अन्य केंद्रीय बैंकों के साथ अमेरिकी केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व ने भी नीतिगत दरों में कटौती की है। आगे और कटौती संभव है लेकिन यह जल्दी ही शून्य हो जाएगी जो एक अलग समस्या है। अन्य केंद्रीय बैंक मसलन यूरोपियन सेंट्रल बैंक और बैंक ऑफ जापान की नीतिगत दरें पहले ही ऋणात्मक हैं। संकट की प्रकृति को देखते हुए फेडरल रिजर्व तथा अन्य केंद्रीय बैंकों द्वारा दी जा रही मौद्रिक शिथिलता ऋण की स्थिति सुधारने और नुकसान को सीमित करने में मदद करेगी।
फेडरल रिजर्व बाजार को अल्पावधि का मौद्रिक समर्थन भी दे रहा है। बहरहाल, यदि समस्या बरकरार रहती है और इसके चलते गहन वित्तीय संकट उत्पन्न होता है (यह संभव है) तब मौद्रिक नीति के प्रभाव की असल परीक्षा होगी। हो सकता है उस स्थिति में उच्च सार्वजनिक ऋण के बावजूद व्यापक राजकोषीय हस्तक्षेप की आवश्यकता पड़े। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के अनुसार दुनिया की 90 फीसदी विकसित अर्थव्यवस्थाओं में सार्वजनिक ऋण का स्तर सन 2008 के स्तर से अधिक है। ऐसे हालात में आर्थिक नीति ऐसी हो सकती है जहां अप्रभावी मौद्रिक नीति, तेजी से बढ़ता सार्वजनिक ऋण और अनिश्चित नतीजे देखने को मिल सकते हैं। ऐसे में यह अहम है कि मौजूदा नीतिगत गुंजाइश का सावधानीपूर्वक इस्तेमाल किया जाए। वैश्विक स्तर पर वित्तीय बाजारों का सहज कामकाज सुनिश्चित करना शीर्ष प्राथमिकता होनी चाहिए। जोखिम से बचाव ऋण की परिस्थितियों को कठिन बना सकती है। इसके व्यापक आर्थिक प्रभाव हो सकते हैं। इसके अलावा राजकोषीय गुंजाइश का लक्षित तरीके से इस्तेमाल करना चाहिए।
भारत में जहां सरकार के पास अर्थव्यवस्था की सहायता करने की नीतिगत गुंजाइश नहीं है, वहीं केंद्रीय बैंक ने मुद्रा बाजार में सक्रिय हस्तक्षेप करके अच्छा किया है। विदेशी विनिमय बाजार में नकदी सुनिश्चित करने के लिए खरीद बिक्री की घोषणा के अलावा उसने विदेशी बाजारों में भी हस्तक्षेप किया है। हालांकि मुद्रा अवमूल्यन कारोबारी क्षेत्रों में मददगार साबित होगा लेकिन अत्यधिक अस्थिरता से बचना ही बेहतर होगा। कई बाजार प्रतिभागियों को यह भी अपेक्षा है कि आरबीआई नीतिगत दरों में कटौती करेगा। आने वाले महीनों में मुद्रास्फीति में कमी आने की संभावना है लेकिन आपूर्ति शृंखला में उथलपुथल इस मोर्चे पर भी अनिश्चितता बढ़ा सकती है। इसके अलावा वित्तीय तंत्र की स्थिति भी लाभ को सीमित करेगा। दरें तय करने वाली समिति का निर्णय आज से लेकर 3 अप्रैल तक घटित होने वाली वैश्विक घटनाओं से प्रभावित होगा। इस बीच सरकार ने पेट्रोल और डीजल पर कर बढ़ाकर अच्छा किया है। इससे राजकोषीय घाटा कम करने में मदद मिलेगी। वायरस की रोकथाम के लिए सतर्कता बरतना समझदारी होगी। सरकार को संक्रमित लोगों के इलाज के लिए क्षमता विस्तार जारी रखना होगा। इससे आर्थिक स्थिति को संभालने में मदद मिलेगी।
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