चीनी कंपनियों की ओर से दो बार अनुकूल प्रतिक्रिया मिलने में विफल रहने के बाद तेल विपणन कंपनियों (ओएमसी) ने वर्ष 2019-20 के एथनॉल खरीद सत्र के बाकी महीनों के लिए एक बार फिर 2.53 अरब लीटर एथनॉल खरीद के लिए निविदा जारी की है। यह सत्र दिसंबर से नवंबर तक चलता है।
नई निविदा इसलिए मंगाई गई थी क्योंकि पिछले साल अगस्त में जारी 5.11 अरब लीटर एथनॉल की खरीद वाली पहली निविदा में काफी कम बोली मिली थी। ऐसा इसलिए था क्योंकि चीनी मिलों के पास शीरा बनाने के लिए पर्याप्त मात्रा में गन्ना नहीं था। पहली निविदा के जवाब में केवल 1.40 अरब लीटर की पेशकश की गई थी और इसे चीनी कंपनियों तथा पृथक डिस्टिलरियों द्वारा अंतिम रूप दिया गया था।
तेल विपणन कंपनियों ने अपनी आवश्यकता का पुनर्मूल्यांकन करने के बाद जनवरी 2020 में एथनॉल की तीन अरब लीटर से अधिक की शेष मांग के लिए 2.53 अरब लीटर की दूसरी निविदा जारी की थी। दूसरी निविदा में भी चीनी मिलें इस पूरी मात्रा की आपूर्ति की गारंटी नहीं दे पाई थीं और उन्होंने 0.31 अरब लीटर की ही पेशकश की। इसमें से केवल 0.29 अरब लीटर के अनुबंधों को ही अंतिम रूप दिया गया था। दूसरे दौर की दूसरी निविदा के तौर पर पिछले सप्ताह एक बार फिर 2.53 अरब लीटर की यह नई निविदा लाई गई थी। हालांकि चीनी कंपनियों का कहना है कि इसमें भी कई आपूर्तिकर्ताओं की ओर से बोली नहीं आएगी। ऐसा इसलिए है क्योंकि अगले एक साल में पर्याप्त संख्या में क्षमता नहीं जोड़ी जाएगी।
चीनी कंपनियों और पृथक डिस्टिलरियों की ओर से एथनॉल की कम आपूर्ति के कारण वर्ष 2022 तक भारत के 10 प्रतिशत मिश्रण के लक्ष्य पर गंभीर असर पड़ सकता है। वर्ष 2018-19 में भारत ने लगभग पांच प्रतिशत मिश्रण का लक्ष्य हासिल किया है। मौजूदा रुख को देखते वर्ष 2019-20 के चालू सत्र में भी प्रदर्शन में कोई ज्यादा सुधार नहीं होगा।
अनिवार्य एथनॉल मिश्रण कार्यक्रम में देरी से सामान्य गन्ना किसान को चीनी के दामों में अस्थिरता का सामना करना पड़ सकता है। इससे भुगतान में देरी हो सकती है। उद्योग के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि गन्ने की कम उपलब्धता के अलावा तेल विपणन कंपनियों द्वारा जारी की गई खरीद निविदा के लिए खराब प्रतिक्रिया मिलने के पीछे एक और बड़ा कारण यह है कि अनाज आधारित उत्पादकों, पृथक डिस्टिलरी और एकीकृत चीनी मिलों की एथनॉल उत्पादन क्षमता में विस्तार धीमा है।
सूत्रों ने कहा कि एथनॉल उत्पादन क्षमताएं जोडऩे के प्रस्तावों को खाद्य मंत्रालय से शीघ्रतापूर्वक मंजूरी मिलने के बावजूद एथनॉल उत्पादन क्षमताओं में अपेक्षित तेजी नहीं आई है। ऐसा इसलिए है क्योंकि इन चीनी कंपनियों की कमजोर बैलेंस शीट के कारण केंद्र की ब्याज छूट योजना के तहत बैंक इन कंपनियों के एथनॉल विस्तार परियोजनाओं के लिए पैसा नहीं देना चाहते हैं। उद्योग के एक वरिष्ठï अधिकारी ने कहा कि चीनी कारोबार में पिछले नुकसान की वजह से कंपनियों की कमजोर बैलेंस शीट के कारण केंद्र द्वारा विस्तार परियोजना को मंजूर किए जाने के बावजूद बैंक आसान ऋण देने के इच्छुक नहीं हैं। उन्होंने कहा कि खाद्य एवं उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय द्वारा एक साल में मंजूर 362 एथनॉल उत्पादन परियोजनाओं में से केवल तकरीबन 56 (लगभग 16 प्रतिशत) परियोजनाओं को बैंकों से अंतिम मंजूरी मिली है और इसमें से 37 को ही सस्ता कर्ज मिला है।
इसके परिणामस्वरूप अगस्त 2019 में, जब तेल विपणन कंपनियों ने 5.11 अरब लीटर एथनॉल खरीद के लिए पहली निविदा जारी की थी, तब सभी स्रोतों से कुल एथनॉल उत्पादन क्षमता अनुमानित रूप से करीब 3.55 अरब लीटर थी। अब यह बढ़कर 3.8 अरब लीटर हो चुकी है। इस तरह इसमें करीब आठ महीने में केवल 0.25 अरब लीटर का ही इजाफा हुआ है। अगर अगले दो से तीन सालों के दौरान इन सभी 362 परियोजनाओं द्वारा निर्मित की जाने वाली क्षमताएं उपलब्ध हो जाती हैं, तो एथनॉल की कुल उत्पादन क्षमता लगभग 10 अरब लीटर होगी। ऐसा इसलिए है क्योंकि अन्य छह अरब लीटर भी मौजूदा 3.8 अरब लीटर में जोड़ दिया जाएगा।
मार्च 2019 में केंद्र ने एथनॉल मिश्रण कार्यक्रम के तहत डिस्टिलरी स्थापित करने वाली कंपनियों को 3,355 करोड़ रुपये की ब्याज सब्सिडी के साथ 15,000 करोड़ रुपये के आसान ऋण के पैकेज को मंजूरी दी थी।
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