ताप बिजली संयंत्र की क्षमता का इस्तेमाल 5 साल के निचले स्तर पर | श्रेया जय / नई दिल्ली March 11, 2020 | | | | |
देश की ताप बिजली उत्पादन इकाइयों के औसत प्लांट लोड फैक्टर (पीएलएफ) में गिरावट आई है। जनवरी में पीएलएफ 57.61 प्रतिशत रहा, जो 5 साल का निचला स्तर है। 2019 में ज्यादातर महीनों में पीएलएफ में दो अंकों की गिरावट आई। यह गिरावट बिजली की मांग में आई कमी की वजह से हुई, जो साल में महज 0.28 प्रतिशत बढ़ी है। यह वृद्धि दर 2014 के बाद का निचला स्तर है।
इंडिया रेटिंग ऐंड रिसर्च ने बिजली क्षेत्र के परिदृश्य में बदलाव करते हुए स्थिर से वित्त वर्ष 2020-21 के लिए ऋणात्मक कर दिया है. ऐसा इसलिए हुआ है कि मांग में वृद्धि स्थिर है और वितरण कंपनियों का बगाया बढ़ रहा है। इसकी वजह से वित्तीय पुनर्गठम योजना और उज्ज्वल डिस्कॉम एश्योरेंस योजना (उदय) पेश किए जाने के बाद से कंपनियों की वित्तीय स्थिति में बहुत मामूली सुधार हुआ है।
इंडिया रेटिंग की रिपोर्ट में कहा गया है कि सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर घटने से उपभोक्ताओं की धारणा कमजोर होने से वित्त वर्ष 21 में बिजली की मांग कम रह सकती है। ताप बिजली इकाइयों के पीएलएफ में कई साल से गिरावट की एक वजह कुल बिजली खपत में अक्षय ऊर्जा स्रोतों की हिस्सेदारी बढऩा भी है। अप्रैल दिसंबर 2019 के बीच कुल बिजली में अक्षय ऊर्जा की हिस्सेदारी 13 प्रतिशत है।
विशेषज्ञों का मानना है कि अक्षय ऊर्जा स्रोत बढऩे से बुनियादी कोयला आधारित बिजली को भी समर्थन मिलेगा। बहरहाल ताप बिजली के पीएलएफ में गिरावट से संकेत मिलता है कि मांग में उल्लेखनीय कमी आई है। सौर और पवन ऊर्जा उत्पादन ताप बिजली की तरह पूरे साल चौबीस घंटे नहीं होता है। अगर बिजली की मांग में गिरावट जारी रहती है तो इससे अक्षय ऊर्जा पर बहुत ज्यादा असर पड़ सकता है। इसके मौसमी प्रवृत्ति को देखते हुए दूसरे स्रोत द्वारा इसकी जगह लेना आसान है। पहले के वर्षों में तमाम राज्यों को अक्षय ऊर्जा का समर्थन मिला और उन्हें समय पर पैसे का भुगतान नहीं हुआ। आंध्र प्रदेश सरकार भुगतान को लेकर अक्षय ऊर्जा उत्पादकोंं के साथ कानूनी लड़ाई लड़ रही है। पवन ऊर्जा उत्पादक राज्य आंध्र प्रदेश में अक्षय ऊर्जा इकाइयों के भुगतान में देरी हो रही है।
दिसंबर 2019 में रेटिंग एजेंसी इक्रा ने साल के आखिर में अपने परिदृश्य में बदलाव किया और बिजली क्षेत्र को स्थिर से ऋणात्मक रेटिंग दी। इसकी प्रमुख वजह मांग में बढ़ोतरी सुस्त रहना है। वहीं इसमें कहा गया है किदबाव वाली बिजली कंपनियों की समाधान प्रक्रिया में प्रगति सुस्त है और सरकारी बिजली वितरण कंपनियों की वित्तीय स्थिति में उम्मीद से कम सुधार हुआ है।
|