रवनीत गिल : गलत बैंक पर लगाया बड़ा दांव | देव चटर्जी / मुंबई March 06, 2020 | | | | |
पिछले साल मार्च में जब 56 वर्षीय रवनीत गिल को मुश्किल में फंसे येस बैंक का प्रमुख नियुक्त किया गया था तब शायद उन्हें अहसास नहीं था कि एक साल के भीतर वह न सिर्फ बेरोजगार हो जाएंगे बल्कि देश के चौथे सबसे बड़े निजी बैंक की अगुआई से लेकर रोक लगाने के आरबीआई के आदेश से उनकी साख भी सवालों के घेरे में आ जाएगी। 1985 में हिंदू कॉलेज से राजनीति विज्ञान में स्नातकोत्तर की डिग्री हासिल करने वाले गिल का पहला काम अपने पूर्ववर्ती राणा कपूर की तरफ से कॉरपोरेट लोन पोर्टफोलियो में इकट्ठा किए गए भारी भरकम फंसे कर्ज की पहचान करना था। जेपी मॉर्गन के अनुमान के मुताबिक, फंसा कर्ज 45,000 करोड़ रुपये का है और गुरुवार को उसके इक्विटी शेयर का मूल्यांकन एक रुपये प्रति शेयर किया गया।
येस बैंक के साथ जुडऩे के तुरंत बाद गिल ने संस्थागत निवेशकों से रकम जुटाने का फैसला लिया और पिछले अगस्त में 2,000 करोड़ रुपये हासिल करने में कामयाब रहे। येस बैंक के पूर्व अधिकारी ने कहा, लेकिन यह काफी कम और काफी देर से मिली रकम का मामला था। बैंक को बड़ी पूंजी की दरकार थी और किसी निवेशक से यह नहीं मिल पा रहा था। बैंक का निदेशक मंडल भी कपूर के समर्थक और विरोधियों के बीच बंट गया। गिल के पास बैंकिंग क्षेत्र में करीब 33 साल का विशाल अनुभव है। डॉयचे बैंक के प्राइवेट वेल्थ मैनेजमेंट से वह 1991 मेंं जुड़े और कॉरपोरेट बैंक में 1993 में पहुंचे। साल 2003 में वह कॉरपोरेट बैंकिंग के प्रमुख बने और दिसंबर 2008 तक इस पद पर रहे जब उन्हें वैश्विक बाजारों के लिए हेड ऑफ कवरेज नियुक्त किया गया। वह साल 2012 में डॉयचे बैंक के भारतीय सीईओ बने। गिल को डैमलर इंडिया लिमिटेड और आईपीएल फ्रैंचाइजी राजस्थान रॉयल्स के सलाहकार बोर्ड में भी नियुक्त किया गया। एक साक्षात्कार में गिल ने कहा, वह आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन के साथ टेनिस खेलते रहे हैं और उनके करीबी रहे हैं।
आकर्षक सीवी और अच्छे संबंधों के बावजूद गिल को निदेशक मंडल और बैंक के आला प्रबंधन के विरोध का सामना करना पड़ रहा था। कार्यभार संभालने के ठीक बाद व्हिसलब्लोअर ने निदेशक मंडल और आरबीआई को पत्र लिखा, जिसमें कहा गया था कि कैसे गिल ने कलात्मक चीजें खरीदने और मुंबई के इंडियाबुल्स टावर में सीईओ कार्यालय की दोबारा डिजाइनिंग में काफी रकम खर्च की। साथ ही उन्होंने आला अधिकारियों को नौकरी से निकाला। गिल ने इन आरोपों से इनकार किया जबकि बैंक के कई आला अधिकारियों ने इस्तीफा दिया।
बैंक की पूंजी लगातार घटती रही और चिंताजनक स्तर पर आ गई, लिहाजा गिल ने माइक्रोसॉफ्ट और पेटीएम समेत वित्तीय क्षेत्र की बड़ी कंपनियों से संपर्क कर बैंक की हिस्सेदारी लेने पर बातचीत की, लेकिन किसी ने भी निवेश नहीं किया। पिछले साल अक्टूबर में उस घोषणा से शेयर बाजार चौंक गया था कि उसे एक निवेशक से बाध्यकारी पेशकश मिली है। उस समय निवेशक का नाम बताए बिना शेयर बाजारों को इस निवेश की सूचना दी गई थी। जब निवेशक का नाम सामने नहीं आया (इरविन सिंह ब्राइच और सिटैक्स) तो शेयर बाजार को झटका लगा क्योंकि ब्राइच का इतिहास उतारचढ़ाव वाला रहा है और विगत में वह दिवालिया के लिए आवेदन कर चुके हैं और सिटेक्स की वित्तीय स्थिति उत्साहजक नहीं थी।
अच्छे निवेशकों के आने की लगातार घोषणा से संस्थागत निवेशक व पूर्व प्रवर्तक कपूर को शेयर बाजार में अपना शेयर बेचने के लिए पर्याप्त वक्त दे दिया। कई खुदरा निवेशकों से इस उम्मीद में शेयर खरीदे कि कोई देवदूत आएगा और बैंक को उबार देगा। इस साल जनवरी में स्वतंत्र निदेशक उत्तम प्रकाश अग्रवाल ने निदेशक मंडल से इस्तीफा दे दिया और आरोप लगाया, बैंक ने यह सूचना छुपाई कि फिक्स्ड डिपॉजिट में उसने 1 लाख करोड़ रुपये गंवाए और कॉरपोरेट गवर्नेंस के मोर्चे पर विफल रहा। येस बैंक के अधिकारी अग्रवाल के आरोपों को आधारहीन बताया और कहा कि वह अपना पद संभालने के लिए आरबीआई के मानक के मुताबिक नहीं थे। यह गिल की अगुआई वाले बोर्ड की तरफ से शेयरधारकों के सामने निदेशक के तौर पर अग्रवाल के नाम की सिफारिश पांच साल के लिए करने की मंजूरी के कुछ ही महीने के भीतर हुई। वास्तविकता यह है कि अग्रवाल बैंक की अंकेक्षण समिति के प्रमुख थे और आरोप लगाया कि कॉरपोरेट गवर्नेंस में बैंक की नाकामी गंभीर है, जिससे गिल ने इनकार किया।
जेपी मॉर्गन के मुताबिक, बैंक का दबाव वाला कर्ज मुख्य रूप से चार प्रमुख खातों में है : एस्सेल समूह, अनिल अंबानी समूह, वोडाफोन आइडिया और एक बड़ी वाणिज्यिक रियल एस्टेट कंपनी। खाते में दबाव का स्तर 10 फीसदी मानते हुए वोडाफोन आइडिया को 4,000 करोड़ रुपये उधारी और उसे पिछली बैलेंस शीट में जोड़ें तो हम करीब 40,000 करोड़ रुपये के स्तर पर पहुंचते हैं। बैलेंस शीट में शामिल अघोषित दबाव वाले 5,000 करोड़ रुपये को जोड़ें तो संकीर्ण नजरिये से आंकड़ा 45,000 करोड़ रुपये पर पहुंचता है। गुरुवार को जेपी मॉर्गन के विश्लेषक एच डब्ल्यू मोदी ने ये बातें कही। 2020 के शुरुआती दिनों में गिल को पता था कि 45,000 करोड़ रुपये की बड़ी खाई को पाटना आसान नहीं है और आरबीआई ने अंतत: कदम बढ़ाने का फैसला लिया और गुरुवार को आदेश जारी किया।
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