चंदा कोछड़ की याचिका खारिज | सुब्रत पांडा / मुंबई March 05, 2020 | | | | |
बंबई उच्च न्यायालय ने आईसीआईसीआई बैंक की पूर्व प्रबंध निदेशक एवं मुख्य कार्याधिकारी चंदा कोछड़ की इस निजी बैंक के खिलाफ दायर रिट याचिका आज खारिज कर दी। बैंक ने पिछले साल उन्हें बर्खास्त कर दिया था और उन्हें दिया गया बोनस वापस लेने का फैसला किया था। चंदा ने इसे अदालत में चुनौती दी थी। न्यायालय ने बैंक की इस दलील को मान लिया कि चंदा की रिट याचिका सुनवाई के लायक नहीं है। आईसीआईसीआई ने कहा कि वह एक निजी बैंकिंग कंपनी है और रिट याचिका में विशुद्ध रूप से निजी आनुबंधिक शर्तों को चुनौती दी गई है। बैंक ने कहा कि इस याचिका का कोई कानूनी आधार नहीं है।
चंदा ने याचिका में उनकी बर्खास्तगी को अवैध करार देने, समय से पहले सेवानिवृत्ति के लिए उन्हें मिले लाभ और पारितोषिक की वसूली से परहेज करने और स्टॉक ऑप्शंस का इस्तेमाल करने की अनुमति मांगी थी। बैंक ने कहा कि इनमें से कोई भी राहत वैधानिक प्रावधानों के अनुरूप नहीं है। बैंक ने साथ ही कहा था कि चंदा ने अपनी याचिका में जो राहत मांगी थीं, वे विशुद्ध रूप से निजी चरित्र के थे। चंदा का कहना था कि आईसीआईसीआई बैंक को उनकी सेवाएं समाप्त करने से पहले भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की मंजूरी लेनी चाहिए थी। साथ ही उन्होंने अपनी बर्खास्तगी को मंजूरी देने के आरबीआई के फैसले को भी चुनौती दी थी। उनका कहना था कि यह कदम था और इसका कोई कानूनी आधार नहीं था। आईसीआईसीआई बैंक ने 31 जनवरी, 2019 को चंदा को बर्खास्त किया था जिसे केंद्रीय बैंक ने 13 मार्च को मंजूरी दी थी।
चंदा ने अपनी याचिका में कहा था कि आरबीआई ने दिमाग लगाए बिना आईसीआईसीआई के फैसले पर मुहर लगाई थी। यह बैंकिंग नियमन कानून की धारा 35बी (1)(बी) के प्रावधानों के खिलाफ है। बैंकिंग नियमन कानून के मुताबिक किसी बैंक के चेयरमैन या प्रबंध निदेशक के अनुबंध को खत्म करने के लिए आरबीआई की पूर्व अनुमति जरूरी है। उन्होंने कहा कि आरबीआई की पूर्व अनुमति अनिवार्य है और बर्खास्तगी के बाद मंजूरी नहीं ली जा सकती है। इस मामले में ऐसा नहीं किया गया और यह नियमों का उल्लंघन है।
आईसीआईसीआई बैंक ने अपने जवाब में कहा था कि 1949 के बैंकिंग नियमन कानून की धारा 35बी एक नियामकीय प्रावधान है। चंदा इसी प्रावधान के तहत अपनी बर्खास्तगी को रद्द करने की मांग कर रही थीं। बैंक ने साथ ही कहा कि चंदा इस बात से वाकिफ थीं कि धारा 35बी आरबीआई की नियामकीय और निगरानी शक्तियों का हिस्सा है और यह उन्हें कोई अधिकार या संरक्षण नहीं देता है। इसमें बैंक के कर्तव्यों की बात नहीं है बल्कि यह बैंकिंग कंपनी और उसके जमाकर्ताओं के संरक्षण से संबंधित है।
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