अनिश्चितता का अंत | संपादकीय / March 04, 2020 | | | | |
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बुधवार को 10 सरकारी बैंकों का चार बैंकों में विलय करने की मंजूरी दे दी। इसके साथ ही इस कवायद से जुड़ी लंबी अनिश्चितता का अंत हो गया है। गत माह मंत्रिमंडल की तीन बैठकों में इसे मंजूरी नहीं मिलने से विलय की तारीख में देरी होने की अटकल लगने लगी थीं। हालांकि वित्त मंत्री ने इस विलय की घोषणा गत वर्ष 30 अगस्त को की थी। इस प्रक्रिया में शामिल बैंकर चिंतित थे क्योंकि अधिसूचना के बाद आमतौर पर प्रक्रिया पूरी करने में 40-45 दिन का समय लगता है। अब इस काम को तेजी से अंजाम देना होगा क्योंकि बैलेंस शीट और शेयरों के एकीकरण के लिए 1 अप्रैल से पहले 30 दिन से भी कम समय बचा है। मंत्रिमंडल की मंजूरी में देरी संभवत: इसलिए हुई क्योंकि बैंक ऑफ बड़ौदा में विजया बैंक और देना बैंक का विलय होने के बाद उसके वित्तीय नतीजे अच्छे नहीं रहे। चालू वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही में इस संयुक्त उपक्रम को 1,407 करोड़ रुपये का नुकसान उठाना पड़ा। ऐसा मुख्यतौर पर अधिक प्रोविजनिंग की वजह से हुआ। अब बैंक की दिक्कतें और बढ़ गई हैं क्योंकि 10,387 करोड़ रुपये की राशि फंसे कर्ज में तब्दील हो गई है।
वित्त मंत्रालय ने विलय के लिए बैंकों का चयन किस आधार पर किया इसके पीछे कोई दलील मौजूद नहीं है। जाहिर है तीन कमजोर बैंक मिलकर एक मजबूत बैंक नहीं बन सकते। दरअसल सरकार ने घोषणा कर दी थी और अब उसके पास वापसी का रास्ता नहीं था। इन बैंकों के अंशधारकों को भी आगे की राह के लिए कुछ निश्चितता की आवश्यकता थी। अब जबकि निर्णय लिया जा चुका है तो सरकार के लिए अच्छा यही होगा कि वह सरकारी बैंकों के लिए आवश्यक वास्तविक सुधारों पर काम करे। ऐसे समय पर इसकी खास आवश्यकता है जबकि चरणबद्घ जमा में उनकी हिस्सेदारी लगातार कम हो रही है। हाल के वर्षों में सरकारी बैंकों में अंशधारक की संपत्ति का नुकसान दर्शाता है कि ये बैंक राह भटक गए हैं। उदाहरण के लिए एयू स्मॉल फाइनैंस बैंक जिसे सूचीबद्घ हुए तीन साल से भी कम वक्त हुआ है, वह बाजार पूंजीकरण में पंजाब नैशनल बैंक (पीएनबी) को पीछे छोड़ चुका है। जबकि परिसंपत्ति खाते और कुल जमा के मामले में पीएनबी उससे बहुत आगे है। बैंक ऑफ बड़ौदा का बाजार पूंजीकरण भी कमोबेश उतना ही है जितना कि एयू स्मॉल फाइनैंस बैंक का।
सरकारी बैंकों के सुधार के लिए अभी नहीं या कभी नहीं जैसे हालात बन गए हैं। जिन सुधारों को अंजाम देना जरूरी है उनमें स्वामित्व ढांचा और वरिष्ठ प्रबंधन के वेतन भत्ते शामिल हैं। लक्ष्य यह होना चाहिए कि बैंको को सरकारी स्वामित्व से मुक्त किया जाए। इसमें कम वेतन, राजनीतिक हस्तक्षेप और जांच एजेंसियों के शिकंजे की आशंका शामिल है। सरकार को इन बैंकों के स्वामित्व को एक होल्डिंग कंपनी में विभाजित करना चाहिए जिसके बोर्ड द्वारा अलग-अलग बैंकों के बोर्ड की नियुक्ति करनी चाहिए।
होल्डिंग कंपनी अपनी पूंजी का इस्तेमाल इन बैंकों के पूंजीकरण के लिए कर सकती है। उसे इन बैंकों की निर्णय प्रक्रिया राजनेताओं और नौकरशाहों से बचाना चाहिए। उसे एक ऐसा वेतन ढांचा तैयार करना चाहिए जो बैंकरों को प्रदर्शन के आधार पर पुरस्कृत करे। इसे परिसंपत्ति के प्रदर्शन से जोड़ा जाना चाहिए। पीजे नायक समिति ने आवश्यक सुधारों का क्रम और तरीका सुझाया है। बहरहाल, सरकार ने उक्त अनुशंसाओं की पृष्ठभूमि को समझने का प्रयास किए बिना ही प्रावधानों का इस्तेमाल करना तय किया है।
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