आर्थिक निराशा के बीच पेश हुए इस बार के बजट ने बाजारों में उत्साह जगाने वाला बड़ा काम नहीं किया, इसलिए सभी की नजरें वैश्विक घटनाक्रम पर टिकी हैं। कोरोनावायरस से जूझ रहा चीन भारतीय कंपनियों के लिए चुनौती है और बाजार के लिए पहेली ...
वित्त वर्ष 2020-21 का केंद्रीय बजट शेयरों में निवेश करने वालों के लिए मिलाजुला रहा। लाभांश वितरण कर (डीडीटी) खत्म करने की कंपनियों की लंबे समय से चली आ रही मांग सरकार ने मान तो ली, लेकिन अब कर का बोझ कंपनियों के बजाय शेयरधारकों को ही उठाना पड़ेगा। सरकार के इस कदम से कंपनियां ज्यादा लाभांश देने के लिए प्रेरित होंगी, लेकिन निवेशकों को ज्यादा फायदा नहीं होगा क्योंकि उन्हें पहले से अधिक कर चुकाना पड़ेगा। दीर्घावधि पूंजीगत लाभ कर (एलटीसीजी) खत्म करने की मांग भी लंबे अरसे से चल रही है मगर बजट में उस पर कुछ भी नहीं किया गया।
इसी तरह व्यक्तिगत आयकर में बदलाव किया गया मगर सरकार ने उसमें भी कुछ पेच जोड़ दिए। जो पेच और नर्ई शर्तें जोड़ी गई हैं, उन्हें देखकर तो ऐसा बिल्कुल नहीं लग रहा कि आयकर नियमों से वित्तीय बचत को किसी तरह का प्रोत्साहन मिलने की संभावना है। इसके अलावा वित्त वर्ष 2021 में 2.1 लाख करोड़ रुपये के भारी भरकम विनिवेश लक्ष्य के कारण निजी क्षेत्र से भी निवेश कम रह जाने का खटका है। ऐसे में फिलहाल उम्मीद की एक ही किरण नजर आ रही है और वह है राजकोषीय घाटे के मामले में सरकार की सख्ती। सरकार चालू वित्त वर्ष में भी राजकोषीय घाटे का आंकड़ा सकल घरेलू उत्पाद के 3.5 फीसदी (वित्त वर्ष में 3.8 फीसदी) पर समेटने की योजना बना रही है।
हालांकि विश्लेषकों ने इस फैसले की प्रशंसा की है और इसे बुद्धिमानी भरा और इस वक्त जरूरी फैसला बताया है, लेकिन उनका यह भी कहना है कि कर राजस्व - खास तौर पर वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) राजस्व के मोर्चे पर मायूसी हाथ लगी तो घाटे का लक्ष्य एक बार फिर हाथ से निकल सकता है। अधिकतर विश्लेषक बजट से उत्साहित नहीं दिख रहे हैं और उन्हें लगता है कि सरकार ने राजकोषीय जोड़घटाव पर जरूरत से ज्यादा ध्यान देने के फेर में सुस्त होती अर्थव्यवस्था को रफ्तार देने का मौका गंवा दिया।
प्रभुदास लीलाधर के विश्लेषकों ने बजट के बाद एक नोट में लिखा, 'वित्त वर्ष 2021 का बजट निराशाजनक रहा है क्योंकि इसने वृद्धि को एक बार फिर तेज करने का अवसर गंवा दिया। जब कॉरपोरेट कर की दरों में कटौती की गई थी, तब हमारा रुख सकारात्मक था। लेकिन अब हमें लग रह है कि यह बड़ी भूल थी। हमें यह भी लगता है कि इतनी कटौती अगर व्यक्तिगत आयकर में की जाती तो अर्थव्यवस्था में मांग को फिर रफ्तार दिलाने में काफी मदद मिल जाती। सरकार के सामने राजकोषीय घाटे में थोड़ी ढील देने और अधिक पूंजीगत व्यय के लिए गुंजाइश तैयार करने के साथ-साथ सुधारों तथा खपत मांग को बल देने के लिए भरपूर मौके थे, लेकिन ऐसा करने का इरादा ही उसके भीतर नजर नहीं आ रहा है।'
अर्थव्यवस्था संभली तो कोरोनावायरस का ग्रहण मंडराने लगा। चीन से गहरे व्यापारिक संबंध होने के कारण यह समस्या भारत को भी आर्थिक झटका देगी
तो ऐसे में आखिर क्या होगा? ठंडे बजट और हांफती अर्थव्यवस्था के बीच अगले एक साल में बाजार की राह किस तरह की रहेगी? विश्लेषक इस मामले में चौकन्ने नजर आ रहे हैं। उनकी सलाह है कि बजट में जिन प्रस्तावों का ऐलान किया गया है, उनका और विशेष रूप से विनिवेश से जुड़े प्रस्तावों का क्रियान्वयन ही आगे की राह का खुलासा करेगा। मगर उन्हें इस बात का भी पूरा खयाल है कि भारतीय बाजारों की कीमत इस वक्त बहुत ऊंची चल रही है। साथ ही वैश्विक आर्थिक वृद्धि को पटरी से उतारने का जोखिम पैदा कर रहे कोरोनावायरस जैसे खतरों के बाद दुनिया भर में दिख रही कमजोरी से भी बाजार को निपटना होगा।
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने फरवरी में मौद्रिक नीति की जो समीक्षा सामने रखी, उसमें कहा गया कि इस जानलेवा वायरस के प्रकोप से पर्यटकों की आमद और वैश्विक व्यापार पर असर पड़ सकता है। केंद्रीय बैंक ने कहा, 'चीन में कोरोनावायरस जन स्वास्थ्य के लिए बड़ी समस्या बन गया है। इस वायरस का सबसे अधिक प्रकोप वुहान में है और कई कंपनियों ने वुहान में और उसके आसपास स्थित अपने कारखाने कुछ समय के लिए बंद कर दिए हैं। इससे समूचे क्षेत्र में आपूर्ति प्रभावित हो सकती है और यह दिक्कत भारत के सामने भी आएगी।'
जियोजित फाइनैंशियल सर्विसेज में अर्थशास्त्री दीप्ति मैरी मैथ्यू ने कहा, 'अमेरिका और चीन के बीच आंशिक व्यापार समझौता होने और ब्रेक्जिट के मामले में अनिश्चितताएं खत्म होने से वैश्विक आर्थिक तस्वीर सकारात्मक लगने लगी थी। लेकिन कोरोनावायरस का प्रकोप फैलने से हालात एक बार फिर खराब होते दिख रहे हैं। चीन में मंदी आई तो वैश्विक आर्थिक वृद्धि में गिरावट आ सकती है। चीन का वैश्विक कारोबार में अहम योगदान है, इसलिए वहां वायरस फैलने के कारण वैश्विक आपूर्ति शृंखला पूरी तरह बिगड़ गई है। चीन कच्चे तेल का सबसे बड़ा आयातक भी है, इसलिए वहां मंदी का खटका देखकर कच्चे तेल की वैश्विक कीमतों में भी कमी आने लगी है। ऐसे में वैश्विक जीडीपी की वृद्धि दर के अनुमान में कमी किए जाने के आसार हैं।'
बहुत से उद्योग कच्चे माल और तैयार उत्पादों के लिए चीन से आयात पर निर्भर हैं। चीन से मुख्य रूप से इलेक्ट्रॉनिक सामग्री, इंजीनियरिंग सामान, इलेक्ट्रिकल मशीनरी और कपड़े का आयात होता है। इसी तरह भारतीय बाजार के लिए भी चीन प्रमुख निर्यात बाजार है। पिछले छह महीनों से भारत के निर्यात में वृद्धि की दर ऋणात्मक रही है यानी निर्यात में कमी आई है। यदि चीन में मंदी आई तो भारतीय निर्यात क्षेत्र के लिए स्थितियां और भी खराब हो सकती हैं।
यूबीएस में आर्थिक शोध के वैश्विक प्रमुख एरेंड कपटीन के मुताबिक मंदी की सूरत में वैश्विक जीडीपी पर भारी चोट पड़ेगी और यह कैलेंडर वर्ष 2020 की पहली तिमाही में घटकर 0.7 फीसदी ही रह जाएगी, जो 2019 की चौथी तिमाही में 3.2 फीसदी थी। हालांकि उनका अनुमान है कि अप्रैल-जून 2020 तिमाही में वृद्धि सुधरेगी, लेकिन पूरे घटनाक्रम के प्रभाव से वर्ष 2020 की जीडीपी वृद्धि दर 20 आधार अंक घटकर 2.9 फीसदी पर अटक सकती है।
आर्थिक गिरावट थमने की बात सभी मान रहे हैं, लेकिन अब बहुत कुछ चीन के हालात पर निर्भर करता है, जहां कोरोनावायरस ने कोहराम मचा रखा है
विश्लेषकों का खयाल है कि ऐसी स्थिति में अगले एक साल में प्रमुख सूचकांकों में एक हद तक ही बढ़त दिखेगी। उन्हें लगता है कि मिड और स्मॉल-कैप श्रेणियों में बेहतर प्रदर्शन नजर आ सकता है, जो पिछले कुछ वर्षों से कमजोर बनी हुई हैं। इसके अलावा बाजारों की कंपनियों के अच्छे नतीजों पर नजर रहेगी, इसलिए कुछ शेयरों में खरीद-फरोख्त जारी रहेगी। मोतीलाल ओसवाल फाइनैंशियल सर्विसेज के उपाध्यक्ष और खुदरा अनुसंधान प्रमुख सिद्धार्थ खेमका ने कहा, 'मिड-कैप क्षेत्र पिछले करीब दो वर्ष में मजबूत हुआ है, इसलिए यह श्रेणी आगे बेहतर प्रदर्शन कर सकती है। अच्छे कारोबार, कुशल प्रबंधन और लगातार अच्छे नतीजे देने वाली कंपनियों के शेयर निश्चित रूप से बेहतर प्रदर्शन करेंगे।'
इस साल अब तक एसऐंडपी बीएसई मिडकैप सूचकांक 11 फीसदी चढ़ा है, जबकि एसऐंडपी बीएसई स्मॉल-कैप सूचकांक 8.5 फीसदी उछला है। इसकी तुलना में बेंचमार्क एसऐंडपी बीएसई सेंसेक्स इस अवधि में 12.5 फीसदी चढ़ा है।
ध्यान रखने वाली बात यह भी है कि करीब तीन लाख करोड़ रुपये का राजस्व घाटा होने के कारण और भारत पेट्रोलियम कॉरपोरेशन लिमिटेड (बीपीसीएल) तथा कंटेनर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (कॉनकॉर) जैसे बड़े विनिवेश प्रयासों में नाकामी मिलने के कारण हालत बहुत अच्छी नहीं है और बजट ऐसी हालत में ही पेश किया गया है। इस कारण विश्लेषकों को लग रहा है कि खपत और मांग में धीरे-धीरे सुधार आएगा। उन्हें यह भी लग रहा है कि पिछले कुछ समय में बुरी तरह कमजोर हुई आर्थिक वृद्धि अब पतन के गर्त से बाहर निकल आई है। खेमका ने कहा, 'हमारा अनुमान है कि यह 4.5 फीसदी से धीरे-धीरे बढ़ेगी। हमें यह भी लग रहा है कि वित्त वर्ष 2021 में वृद्धि दर 5 .5 से 6 फीसदी रहेगी। अलबत्ता वृद्धि में तेजी से सुधार नहीं आएगा।'
कंपनियों की आमदनी कमजोर रही है। सितंबर, 2019 तिमाही पिछली कई तिमाहियों में सबसे सुस्त रही। वित्तीय और तेल एवं गैस कंपनियों को छोड़कर (जिनकी आमदनी अस्थिर है) शेष सूचीबद्ध कंपनियों को 2019-20 की दूसरी तिमाही में 16,000 करोड़ रुपये का शुद्ध घाटा हुआ, जबकि 2018-19 की इसी तिमाही में उन्हें 73,000 करोड़ रुपये का शुद्ध लाभ हुआ था। कई वर्षों में पहली बार कंपनियों (ऊर्जा एवं वित्तीय कंपनियों को छोड़कर) ने किसी तिमाही में संयुक्त रूप से घाटा उठाया। उनका संयुक्त रूप से कर पूर्व लाभ (पीबीटी) सालाना आधार पर 71 फीसदी घटकर 32,000 करोड़ रुपये रहा, जो एक साल पहले 1.13 लाख करोड़ रुपये था।
वित्तीय एवं तेल कंपनियों को छोड़कर अन्य कंपनियों की संयुक्त रूप से शुद्ध बिक्री वित्त वर्ष 2019-20 की दूसरी तिमाही में सालाना आधार पर 0.4 फीसदी घटी, जो कम से कम तीन साल की सबसे खराब तिमाही थी। इसकी तुलना में वित्त वर्ष 2018-19 की दूसरी तिमाही में उनकी कुल आमदनी सालाना आधार पर 13.1 फीसदी और अप्रैल-जून 2019 तिमाही में 4.7 फीसदी बढ़ी थी। चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में दूरसंचार कंपनियों को छोड़कर भारतीय कंपनियों का संयुक्त पीबीटी सालाना आधार पर 11.1 फीसदी घटकर 1.04 लाख करोड़ रुपये रहा, जो पिछले वित्त वर्ष की इसी तिमाही में 1.18 लाख करोड़ रुपये था। इससे कमजोर आर्थिक माहौल का संकेत मिलता है। हालांकि दूसरी तिमाही में संयुक्त रूप से शुद्ध लाभ सालाना आधार पर 15.5 फीसदी बढ़कर 89,000 करोड़ रुपये रहा, जो मुख्य रूप से करों में बदलाव की बदौलत था।
हालांकि वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही अब तक अनुमानों के मुताबिक ही रही है और इसमें सामान्य वृद्धि नजर आ रही है। कर के बाद लाभ (पीएटी) में वृद्धि को मुख्य रूप से कर में कटौती का सहारा मिला है। इस तरह ज्यादातर विश्लेषक अर्थव्यवस्था में धीरे-धीरे सुधार का अनुमान जता रहे हैं। आमदनी में सुधार भी धीरे-धीरे ही होगा।
मोतीलाल ओसवाल के विश्लेषकों ने हाल में एक रिपोर्ट में लिखा, 'हमारा अनुमान है कि वित्त वर्ष 2020 में निफ्टी की आमदनी में वृद्धि 10 फीसदी होगी। निफ्टी की प्रति शेयर आमदनी (ईपीएस) वित्त वर्ष 2020 के लिए 540 रुपये और वित्त वर्ष 2021 के लिए 680 रुपये यानी 27 फीसदी अधिक है। इस वृद्धि में ज्यादातर योगदान वित्तीय शेयर देंगे और वित्तीय शेयरों में भी कॉरपोरेट बैंक वृद्धि में 80 फीसदी योगदान देंगे। हालांकि इस तरह के अनुमान में गिरावट आने का जोखिम बना हुआ है क्योंकि बजट में ज्यादा राजकोषीय प्रोत्साहन मुहैया नहीं कराया गया और सुधार धीरे-धीरे ही आने के आसार हैं।'
मोतीलाल ओसवाल के विश्लेषकों ने कहा, 'इस समय निफ्टी वित्त वर्ष 2021 की आमदनी के 18 गुना स्तर पर बना हुआ है, जो लंबी अïवधि (10 साल) के 17.5 गुना के औसत स्तर के काफी नजदीक है। इसलिए बाजार में बड़ी उछाल का अनुमान लगाने की गुंजाइश इस समय नहीं लग रही। उचित मूल्यांकन और आमदनी वृद्धि के लिए आमदनी वृद्धि के लिए उच्च दर को मद्देनजर रखते हुए निफ्टी अगले एक साल में 10 फीसदी प्रतिफल दे सकता है। हमें इससे अधिक बढ़ोतरी के आसार नजर नहीं आ रहे हैं। हमारा अनुमान है कि शेयर बाजार अगले 12 महीनों के दौरान सीमित दायरे में ही उठता-गिरता रहेगा।'
सबसे बड़ी पहेली यही होती है कि निवेश करने का सबसे सही ठिकाना कौन सा है। ज्यादातर ब्रोकरेज फर्मों की मानें तो मौजूदा परिस्थितियों में सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी), वाहन एवं वित्तीय शेयरों के साथ-साथ रोजमर्रा खपत की सामग्री (एफएमसीजी), मीडिया और मनोरंजन क्षेत्र के शेयरों को पसंद किया जा रहा है।
एडलवाइस के विश्लेषकों ने कहा, 'भारतीय बाजारों में तेजी अच्छी रही है, लेकिन वैश्विक स्तर पर कोरोनावायरस फैलने, बजट को राजकोषीय उपायों पर केंद्रित रखे जाने और बाजार का उचित मूल्यांकन स्तर निफ्टी पर 12,300 (5 फीसदी अधिक हो सकता है) होने के हमारे अनुमान से बाजार में नरमी के आसार हैं। हमारा जोर बैंकिंग उद्योग, धातु, दूरसंचार, रियल एस्टेट और आईटी शेयरों पर है।'
कोटक सिक्योरिटीज के विश्लेषकों को लाभांश वितरण कर (डीडीटी) के बारे में सरकार का फैसला सकारात्मक लग रहा है। उन्होंने कहा कि लाभांश वितरण कर खत्म होना सभी आईटी कंपनियों के लिए सकारात्मक है क्योंकि इससे शेयरधारकों के लिए पूंजी पर प्रतिफल आसान हो गया है। उन्होंने कहा, 'इससे शेयरधारकों के हाथ में 20 फीसदी अधिक रकम (कर से पहले) आएगी। लाभांश वितरण कर खत्म होने के बाद लाभांश भविष्य में भुगतान का पसंदीदा जरिया बनेगा।' वाहन क्षेत्र अच्छा प्रदर्शन कर सकता है। पिछले कुछ महीनों से बिक्री में लगातार गिरावट की मार झेल रहा यात्री वाहन क्षेत्र खास तौर पर अपने प्रदर्शन से चौंका सकता है। पिछले कुछ समय से हर महीने बिक्री में पहले के मुकाबले सुधार लगातार दिखता आ रहा है।
इसी साल अप्रैल से वाहन क्षेत्र में एक बड़ा बदलाव हो जाएगा। इंजन के उत्सर्जन मानकों में तब्दीली होगी और बीएस-4 की जगह बीएस-6 मानक लागू हो जाएंगे। फिलहाल इस बदलाव को ही इस क्षेत्र के लिए अंतिम बाधा माना जा रहा है। इसके बाद बिक्री में बढ़ोतरी की संभावना है, जिससे इस क्षेत्र को रफ्तार मिलेगी। ज्यादातर विश्लेेषक वाणिज्यिक वाहनों और दोपहिया वाहनों के मुकाबले चारपहिया वाहनों को तरजीह दे रहे हैं। इसकी वजह यह है कि चारपहिया वाहनों में पुराना स्टॉक कम है और बीएस-6 नियमों से इसी श्रेणी को अपेक्षाकृत कम झटका लगा है।
ज्यादातर ब्रोकरेज एक अन्य क्षेत्र के बारे में भी काफी उत्साह भरा नजरिया रख रहे हैं और वह क्षेत्र कृषि तथा उससे संबंधित गतिविधियों का है। ग्लोबल कैपिटल के विश्लेषकों का मानना है कि कृषि एवं संबंधित गतिविधियों के लिए 2.83 लाख करोड़ रुपये के आवंटन, वर्ष 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने के लक्ष्य, पानी की किल्लत वाले 100 जिलों के लिए व्यापक उपाय, 20 लाख किसानों को एकल सौर पंप मुहैया कराने और अन्य 15 लाख किसानों को अपना पावर ग्रिड सौर ऊर्जा से जोडऩे में मदद करने जैसे बहुत से प्रस्तावों का इस क्षेत्र पर सकारात्मक असर पड़ेगा।
इनके अलावा एफएमसीजी (दिग्गज कंपनी आईटीसी को छोड़कर), विमानन, शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्रों को लेकर भी ब्रोकरेज का सकारात्मक रुख है। केंद्रीय बजट में स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए 69,000 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया है। इसमें से 6,400 करोड़ रुपये आयुष्मान भारत योजना के लिए स्वीकृत किए जाएंगे। केंद्र सरकार की महत्त्वाकांक्षी आयुष्मान भारत योजना के तहत प्रत्येक परिवार को पांच लाख रुपये का स्वास्थ्य बीमा मुहैया कराया गया है। इस योजना के दायरे में 10 करोड़ गरीब परिवारों को लाने का लक्ष्य तय किया गया है। इस तरह के प्रस्तावों से स्वास्थ्य क्षेत्र से जुड़े विभिन्न शेयरों को फायदा मिलने की संभावना नजर आ रही है।
प्रभुदास लीलाधर ने कहा, 'हमें लग रहा है कि बाजारों का झुकाव खपत से जुड़े क्षेत्रों, आईटी, बैंकिंग, वित्त एवं बीमा (बीएफएसआई) और तेल तथा गैस उद्योगों से जुड़े शेयरों की तरफ रहेगा। लेकिन हमारी राय यही है कि हरेक शेयर को ठीक से जांचने के बाद ही उस पर फैसला लें। बुनियादी कारकों को जांचने के बाद उन मजबूत कंपनियों पर जोर दें, जिनकी नकदी आवक और कंपनी प्रशासन अच्छा रहने के आसार हैं। हम यह भी मानते हैं कि मौजूदा माहौल में आईटी जैसे क्षेत्रों को मजबूती मिलेगी। हमारा अनुमान उन्हें लेकर सुधर रहा है, लेकिन अब भी उन्हें लेकर हमारा रुख नकारात्मक है। बुनियादी ढांचे और पूंजीगत वस्तु क्षेत्र को लेकर हमारा रुख सकारात्मक है और हमारा मानना है कि बुनियादी ढांचे पर जोर देने का लंबी अवधि में फायदा मिलेगा।'
आईसीआईसीआई सिक्योरिटीज का पेंट, सीमेंट, निर्माण सामग्री (पाइप समेत), तेल एïवं गैस, कृषि, प्रिंट मीडिया, दूरसंचार, फुटवियर, बैंक और पूंजीगत वस्तु क्षेत्र को लेकर सकारात्मक नजरिया है। जमाकर्ताओं के लिए बैंक खाते में जमा राशि पर बीमा की सीमा एक लाख रुपये से बढ़ाकर पांच लाख रुपये करने, कृषि ऋण को बढ़ाकर 15 लाख करोड़ रुपये तक पहुंचाने और गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) के लिए सरफेसी अधिनियम 2002 के तहत कर्ज वसूली की पात्रता सीमा 500 करोड़ रुपये से घटाकर 100 करोड़ रुपये और प्रबंधनाधीन संपत्तियां (एयूएम) या ऋण एक करोड़ रुपये से घटाकर 50 लाख रुपये करने के कदम बैंकों और एनबीएफसी के लिए सकारात्मक नजर आ रहे हैं।
रेलिगेयर ब्रोकिंग के विश्लेषकों ने कहा, 'बजट में देश में मोबाइल फोन कनेक्टिविटी, इलेक्ट्रॉनिक्स उपकरण एवं सेमीकंडक्टर के विनिर्माण को प्रोत्साहन देने के उपाय करने और कृषि, सिंचाई और ग्रामीण को बढ़ावा दिए जाने तथा मनरेगा के तहत 61,500 करोड़ रुपये के आवंटन से एफएमसीजी और टिकाऊ उपभोक्ता कंपनियों को अच्छा खासा फायदा मिलने की संभावना नजर आ रही है।' एमके ग्लोबल फाइनैंशियल सर्विसेज के विश्लेषकों ने कहा कि बाजार फंडामेंटल और मूल्यांकन पर ध्यान देना शुरू करेंगे। वे वाहन एवं उपभोग क्षेत्रों को तरजीह दे रहे हैं, जबकि उद्योग एवं वित्तीय क्षेत्रों को लेकर रुझान कमजोर है।
'अर्थव्यवस्था के सुधार पर अभी कुछ कहना जल्दबाज़ी'
एनपी पारिबा वरिष्ठ फंड प्रबंधक (इक्विटी) कार्तिकराज लक्ष्मणन ने चिरंजीवी थापा से कहा कि भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआईसी) की सूचीबद्धता निवेशकों के लिए बड़ा मौका होगा। उन्होंने कहा कि सरकार को अन्य बड़ी गैर-सूचीबद्ध कंपनियों के लिए भी यही कदम उठाने पर विचार करना चाहिए, जिससे सभी भागीदारों को फायदा मिलेगा। बातचीत के अंश:
आप बजट प्रस्तावों को किस तरह देखते हैं?
बजट को सितंबर 2019 में कॉरपोरेट कर कटौती से लेकर अब तक के कदमों से जोड़कर देखना चाहिए। सरकार कर प्रणाली को आसान बनाने की दिशा में बढ़ती लग रही है। वह घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देकर आयात के विकल्प तलाशने पर जोर दे रही है। सरकार ऐसे क्षेत्रों में घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा दे रही है, जिनमें आर्थिक गतिविधियां बढऩे के आसार हैं। वह पूंजीगत निवेश को बढ़ावा भी दे रही है, जिसके लिए कॉरपोरेट कर में कटौती की गई और पूंजीगत लाभ को कर के लिहाज से आसान बनाया गया है। ऐसे में देश में प्रतिस्पद्र्घी लागत और मजबूत बैलेंस शीट पर आधारित कारोबार खड़ा करने की इच्छुक कंपनी को मध्यम से लंंबी अवधि में फायदा मिलेगा।
ऐसे में प्रस्तावों पर आपका आकलन?
निम्न मध्य वर्ग के लिए नियम सरल बनाना और ज्यादा लाभ देना अच्छी पहल हैं। कर ढांचा सरल बनाने से विसंगतियां दूर करने में मदद मिलेगी और उपभोग या बचत के लिए ज्यादा विकल्प मिलेंगे। मगर ध्यान रहे कि देश बचत की आदत की अपनी ताकत न गंवा दे। उधर मुश्किलों से गुजर रहे रियल एस्टेट या गैर-बैंकिंग वित्तीय (एनबीएफसी) क्षेत्रों की वित्तीय सेहत दुरुस्त करने की योजनाओं की उम्मीद पूरी नहीं हुई।
बाजारों पर निकट भविष्य का नजरिया क्या है? मार्च तक निफ्टी कहां होगा?
हम अल्प अवधि का अनुमान नहीं लगाते। म्युचुअल फंड खासकर इक्विटी फंडों में जोखिम होता है, इसलिए निवेशक लंबी अवधि के लिए रकम लगाएं। बाजार लंबी अवधि में नकदी की आवक देखते हैं और यही चलता रहेगा। पिछले साल माल बेचने, एनबीएफसी संकट और व्यापार तनाव से पनपी वैश्विक अनिश्चितता सुस्ती लाई थी मगर अब अधिकतर अड़चनें खत्म हो रही हैं, इसलिए आर्थिक स्थितियां सुधरने के संकेत मिल रहे हैं, जो अच्छा है। इस समय वित्तीय क्षेत्र की कंपनियों में कमजोरी और मांग बढ़ाने वाले कारकों का अभाव प्रमुख अड़चन है। इस बात पर भी पसोपेश है कि कोरोनावायरस आर्थिक गतिविधियों को कब तक प्रभावित करता रहेगा।
एलआईसी में हिस्सेदारी घटाने के सरकार के फैसले पर आपका क्या नजरिया है?
एलआईसी एक शानदार कंपनी है। हर निवेशक इसके शेयर खरीदकर लंबे समय तक रखना चाहेगा। सरकार ने इसे सूचीबद्ध कराया तो निवेशकों को बहुत फायदा होगा। एलआईसी सूचीबद्ध होगी तो गैर-सूचीबद्ध क्षेत्र की बड़ी कंपनियां भी सूचीबद्ध होने के बारे में सोचेंगी। आंकड़े बताते हैं कि पिछले एक दशक में कंपनी गतिविधियों और लाभ में गैर-सूचीबद्ध क्षेत्र का बड़ा हिस्सा रहा है। इस वजह से भारत के व्यापक सूचकांक देश की आर्थिक गतिविधियों के उचित प्रतिनिधि नहीं रहे हैं। इसलिए बड़ी कंपनियों को सूचीबद्ध कराने की जरूरत है। इससे बाजारों का दायरा बढ़ेगा, कंपनियां आसानी से पूंजी जुटा पाएंगी, भागीदारों के लिए पारदर्शिता बढ़ेगी और कर्मचारियों व प्रवर्तकों के लिए मूल्य सृजन होगा।
उम्मीदों के विपरीत एलटीसीजी कर बरकरार रखा जाना कितना बड़ा झटका है?
यह बहस का मुद्दा है। सरकार को देश चलाने के लिए राजस्व चाहिए और हर बात आंकड़ों से नहीं आंकी जा सकती। सरकारी व्यय में सामाजिक क्षेत्र का बड़ा हिस्सा हो, जिसके लिए वृद्धि का ज्यादा संतुलित तरीका अपनाया जाए। राजकोषीय अड़चनों को देखते हुए शायद इसी वजह से एलटीसीजी कर बरकरार रखा गया है।
छूट खत्म करने के साथ ही आयकर दर कम की गई हैं। इससे उपभोग में बढ़ोतरी होगी?
इससे कम आय वाले करदाताओं के हाथ में ज्यादा खर्च योग्य आमदनी बचने और उपभोग में कुछ इजाफा होने की उम्मीद है। लेकिन आमदनी पूरे साल में बंटने से औसत असर ही होगा।
डीटीटी खत्म किया गया है, लेकिन क्या इससे खुदरा निवेशकों पर दबाव बढ़ेगा? इसका म्युचुअल फंड उद्योग पर क्या असर पड़ेगा?
व्यावहारिक नजरिये से देखें तो इससे लाभांश आय दिखाने और इस पर उचित कर भुगतान करने का काम बढ़ेगा।
दिसंबर, 2019 तिमाही में भारतीय कंपनियों के प्रदर्शन को आप किस तरह आंकते हैं?
साफ तौर पर दिसंबर तिमाही के आंकड़े कुल आमदनी के लिहाज से कमजोर रहे हैं, जो पहले ही माना जा रहा था। अलग-अलग क्षेत्रों और कंपनियों में शुद्ध मुनाफा अलग-अलग रहा है। लेकिन कॉरपोरेट कर की कम दरों, बेहतर लागत प्रबंधन और बैंकों के कम कर्ज फंसने से लाभ में बढ़ोतरी हुई है। इस नजरिये से यह तिमाही अनुमानों के मुताबिक ही रही है।
क्या आपको भारतीय अर्थव्यवस्था में सुधार के संकेत नजर आ रहे हैं?
अर्थव्यवस्था में सुधार के बारे में अभी कुछ कहना जल्दबाजी होगी। लेकिन हम देख रहे हैं कि पीएमआई में सुधार हुआ है, दिसंबर 2019 में जीएसटी संग्रह बेहतर रहा है, पांच महीनों के बाद बिजली की मांग बेहतर रही है और निर्माण गतिविधियां सुधरी हैं। हालांकि इनमें से कुछ में सीजन की वजह से सुधार आया है। इसलिए हम इतना कह सकते हैं कि आर्थिक गतिविधियों में धीरे-धीरे सुधार आ रहा है, लेकिन हम इसे पूर्ण सुधार नहीं कह सकते।
'लार्ज कैप से बेहतर प्रदर्शन करेंगे मिड और स्मॉल कैप'
जियोजित फाइनैंशियल सर्विसेज के मुख्य निवेश रणनीतिकार वीके विजय कुमार ने चिरंजीवी थापा से कहा कि बजट के बाद वैश्विक संकेत ही बाजारों को दिशा दिखाएंगे। अमेरिका में महंगाई का फिर मुंह फाड़ना और अमेरिकी फेडरल रिजर्व का ब्याज दरों में बढ़ाना उन्हें बड़ी चुनौती लगती हैं। प्रमुख अंश:
अगले एक साल में बाजारों पर आपका क्या नजरिया है? लार्ज कैप मजबूत होंगे और मिड तथा स्मॉल कैप आगे निकलेंगे?
हमें लगता है कि बाजार अगले एक साल में 10-12 फीसदी का सामान्य प्रतिफल देंगे। लार्ज-कैप क्षेत्र में मूल्यांकनों में बड़ा अंतर है। अच्छी आमदनी की संभावना वाले आकर्षक लार्ज-कैप का मूल्यांकन काफी ऊंचा है। उपभोक्ता खंड में बहुत से शेयरों की कीमत वहां पहुंच गई है, जहां से बड़ी गिरावट आ सकती है। इसलिए निवेशकों को ऐसे शेयर खरीदने में सावधानी बरतनी होगी। लेकिन वाहन और पूंजीगत वस्तु क्षेत्र जैसे कम लुभावने क्षेत्रों में कुछ लार्ज-कैप शेयरों की कीमत बहुत आकर्षक है। इन क्षेत्रों में हालात बदलेंगे तो ये शेयर अच्छा प्रदर्शन कर सकते हैं। हमारा अनुमान है कि इस साल लार्ज कैप की तुलना में मिड और स्मॉल-कैप बेहतर प्रदर्शन करेंगे।
निकट भविष्य में भारतीय बाजारों के लिए क्या जोखिम है और क्या सकारात्मक?
पिछले तीन वर्षों की तरह इस साल भी बाजार वैश्विक घटनाक्रम पर चलेंगे। 2017 में नकदी के कारण वैश्विक बाजारों में तेजी थी। 2018 में फेडरल रिजर्व ने ब्याज दरें बढ़ाईं तो डॉलर चढ़ा और वैश्विक बाजार मंदडिय़ा हो गया। 2019 में फेड के नरम रुख से नकदी ने दुनिया भर के बाजार चढ़ा दिए। इसलिए वैश्विक घटना अहम हैं। अमेरिका में महंगाई फिर बढऩा और उसके कारण फेड का ब्याज दरों में सख्ती अपनाना बड़ी बाधा हैं। कोरोनावायरस का डर वृद्धि पर असर कर रहा है।
बजट 2020 पर आपके विचार? सरकार की राजकोषीय सीमा को देखते हुए क्या बजट से उम्मीद लगाना सही नहीं था?
बजट औसत है। लाभांश वितरण कर खत्म करना स्वागत योग्य है मगर लाभांश पर आयकर श्रेणी के अनुसार कर वसूलना गलत है। 3.5 फीसदी राजकोषीय घाटे का लक्ष्य लगभग नामुमकिन है क्योंकि 2.1 लाख करोड़ रुपये का विनिवेश लक्ष्य पूरा होने के आसार नहीं हैं। नई आयकर व्यवस्था से बचत घटेगी और पूंजी निर्माण एवं आर्थिक वृद्धि पर प्रतिकूल असर होगा। बॉन्ड बाजार को मजबूत बनाने की पहल सकारात्मक पहलू है।
बजट का बुनियादी ढांचा क्षेत्र पर बड़ा जोर रहा है। आपके मुताबिक इस पर कितनी जल्दी काम शुरू होगा?
बुनियादी ढांचे पर जोर देना अच्छी पहल है। इसे क्रियान्वित करने में समय लगेगा क्योंकि संसाधन जुटाने में अड़चन आएगी। क्षमता के उपयोग का स्तर अब भी कम है, इसलिए निजी पूंजीगत खर्च बढऩे में समय लगेगा।
भारतीय अर्थव्यवस्था का 2020 में कैसा हाल रहेगा? क्या उबरना शुरू हो चुका है?
अर्थव्यवस्था मंदी से उबर चुकी है। विनिर्माण एवं सेवा पीएमआई के आंकड़े यही बताते हैं। नए वित्त वर्ष में 6 से 6.5 जीडीपी वृद्धि दर संभव है। निजी क्षेत्र में बैंकिंग, वाहन, सीमेंट, पूंजीगत वस्तु और दवा क्षेत्र अच्छा प्रदर्शन कर सकते हैं।
वित्त वर्ष 2021 में कंपनियों की आय वृद्धि और उम्मीद से बेहतर प्रदर्शन पर अनुमान?
आमदनी में करीब 15 फीसदी वृद्धि की संभावना है। वाहन और सीमेंट चौंका सकते हैं।
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