मध्य प्रदेश में अचल संपत्ति का बाजार मंदा है मगर प्रदेश सरकार के सकारात्मक कदमों से और मौजूदा इन्वेंटरी खत्म होने के बाद सुधार की उम्मीद जताई जा रही है। बहरहाल भोपाल की तुलना में इंदौर अब भी बेहतर है
मध्य प्रदेश में अचल संपत्ति क्षेत्र की हालत देश के अन्य हिस्सों से अलग नहीं है। नोटबंदी, रेरा के आगमन और वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) प्रणाली की हड़बड़ाहट ने अचल संपत्ति कारोबारियों को संभलने का मौका ही नहींं दिया। अभी भारी छूट के बाद भी भोपाल, इंदौर समेत तमाम बड़े शहरों में मकान और वाणिज्यिक इमारतें खरीदारों की बाट जोह रही हैं।
नई सरकार से आस
नई सरकार अक्टूबर 2019 में अचल संपत्ति पर नई नीति लाई, जिससे हालात सुधरने की उम्मीद बंध गई। नीति का मकसद इस क्षेत्र में लालफीताशाही कम करना था। प्रदेश के शहरी विकास और आवास मंत्री जयवद्र्घन सिंह ने नीति पेश करते हुए कहा था, 'मध्य प्रदेश रियल एस्टेट नीति 2019 का मकसद रियल एस्टेट डेवलपरों को प्रोत्साहित करना है। अब उन्हें मंजूरी के लिए 27 के बजाय 5 दस्तावेज ही जमा करने पड़ेंगे।'
नई नीति में डेवलपरों पर निम्न आय वर्ग के लिए सस्ते आवास की बंदिश भी नहीं है क्योंकि ऐसे मकान नहीं बिकने पर डेवलपरों को भारी नुकसान उठाना पड़ता था। अब वे तय आश्रय शुल्क देकर पल्ला झाड़ लेंगे और उस शुल्क से सरकार खुद अल्प आय वर्ग के लिए चार वर्ष में छह लाख मकान बनाएगी। प्रदेश सरकार ने जून 2019 में प्रॉपर्टी की कलेक्टर गाइडलाइन दरों में 20 फीसदी की सीधी कटौती की थी। सरकार ने 1,100 रुपये के अतिरिक्त शुल्क पर महिलाओं को संपत्ति का सह-स्वामी बनाने की व्यवस्था की है। मगर प्रदेश सरकार के इन तमाम प्रयासों के बावजूद अचल संपत्ति बाजार में कोई खास सुधार देखने को नहीं मिल रहा है।
कहां करें निवेश?
प्रदेश में रिहाइशी परिसंपत्तियों के मूल्य में पिछले कुछ वर्षों से लगातार गिरावट देखने को मिल रही है ऐसे में बाजार प्रतिभागियों का मानना है कि यह समय घर खरीदने वालों के लिए एकदम उपयुक्त है। वाणिज्यिक परिसंपत्तियों के मूल्य में भी सुधार देखने को मिल रहा है। इसके पीछे अलग-अलग वजह हैं।
उद्योग सूत्रों के मुताबिक बड़े शहरों में रिहाइशी मकान जरूरत पर ही खरीदे जा रहे हैं यानी वे लोग ही मकान खरीद रहे हैं जिन्हें उनमें रहना है। इसमें भी अधेड़ ज्यादा हैं क्योंकि बाजार अध्ययनों के मुताबिक नई उम्र के लोग किराये के मकान में रहना ज्यादा पसंद करते हैं। अच्छा यह है कि वास्तविक खरीदारों को मकान एकदम कम कीमत पर मिल रहे हैं। मकान नहीं बिकने की एक बड़ी वजह बाजार में मंदी के बावजूद कीमतों में ज्यादा कमी नहीं आना है। 2013-14 के बाद से आवासीय परिसंपत्तियों की कीमत में कोई सुधार नहीं हुआ है। बिल्डरों ने कीमतों में सीधी कमी नहीं की है। वे पांच साल पुरानी कीमतों पर ही रियायत दे रहे हैं। रिहाइशी परिसंपत्तियों में बिक्री के लिए पुराने मकान और किराये के मकान भी बहुत अधिक हैं। भोपाल में मौके नहीं मिलने पर युवा बड़े शहरोंं का रुख कर रहे हैं। उनके माता-पिता भी जगह छोड़ देते हैं, जिससे मकानों का ढेर खड़ा हो गया है।
वाणिज्यिक परिसंपत्तियों में सुधार है क्योंकि यह क्षेत्र नए बाजार की जरूरतों के मुताबिक नवाचार कर रहा है। इस क्षेत्र में को-वर्किंग स्पेस जैसे नए विचार लोकप्रिय हो रहे हैं। मध्य प्रदेश का पहला को-वर्किंग स्पेस 'एस पेस' शुरु करने वाले युवा उद्यमी तैतिल सिंह कहते हैं, 'स्टार्टअप उद्यमियों, निवेशकों को लुभाने में लगे उपक्रमों और पूंजी की कमी वाले छोटे उद्यमियों के लिए को वर्किंग स्पेस अच्छा है। उन्हें मामूली किराये पर बना-बनाया दफ्तर मिल जाता है।' वाणिज्यिक क्षेत्र को सरकार के स्तर पर भी काफी सहायता मिल रही है। सरकार गोदाम आदि के निर्माण के लिए आकर्षक सब्सिडी प्रदान कर रही है। रिलायंस इंडस्ट्रीज द्वारा मध्य प्रदेश में लॉजिस्टिक्स केंद्र बनाने की मंशा जताए जाने तथा एमेजॉन और वालमार्ट द्वारा प्रदेश में भंडारण केंद्र बनाने की संभावनाएं तलाशे जाने की खबरों से उत्साह बढ़ा है।
बड़े शहरों का हाल
1. भोपाल है बेहाल
क्रेडाई के मध्य प्रदेश चैप्टर के अध्यक्ष वासिक खान कहते हैं, 'भोपाल में करीब 2,500 मकान बिकने को तैयार हैं मगर ग्राहक नहीं हैं। 8,000 से 10,000 मकान निर्माणाधीन हैं। उद्योग गतिविधियां कम होने से अचल संपत्ति में नया निवेश नहीं आ रहा है।'
2. बेहतर है इंदौर
अंसल हाउसिंग के निदेशक कुशाग्र अंसल कहते हैं कि इंदौर बेहतर है क्योंकि प्रदेश की वाणिज्यिक राजधानी होने के कारण यहां आर्थिक गतिविधियां ज्यादा हैं। दिल्ली-मुंबई औद्योगिक गलियारा बनने से निवेशक इंदौर की ओर ज्यादा आकर्षित हुए हैं।
क्यों लडख़ड़ाया बाजार?
वासिक खान कहते हैं कि अचल संपत्ति क्षेत्र के लिए सबसे बड़ी मुश्किल आर्थिक अनिश्चितता ने पैदा की। रोजगार पर संकट मंडराने से ग्राहक लंबे समय तक आवास ऋण से बंधने में घबरा रहे हैं और किराये के मकान का रुख कर रहे हैं। अपार्टमेंट की ओर बढ़ता रुझान भी एक वजह है। कारोबारियों के अनुसार 2-4 यूनिट बुक होने पर भी पूरा टावर खड़ा करना पड़ता है। आगे बुकिंग नहीं हुई तो घाटा हो जाता है। मकानों की कीमत भी नहीं बढ़ रहीं क्योंकि नोटबंदी के बाद नकद लेनदेन संभव नहीं रह गया। रेरा की सख्ती ने भी हेरफेर रोक दिया है।
आगे होगा सुधार?
क्रेडाई मध्य प्रदेश के प्रवक्ता मनोज सिंह मीक कहते हैं कि अचल संपत्ति बाजार में मंदी का दौर समाप्त होगा। मौजूदा इन्वेंटरी समाप्त होने पर नए मकानों की जरूरत महसूस होगी। जरूरत आधारित मांग होने के कारण हो सकता है बाजार में बहुत अधिक तेजी न आए लेकिन फिर भी परिस्थितियों में सुधार अवश्य होगा।
कुशाग्र अंसल कहते हैं, 'भोपाल-इंदौर जैसे शहरों में अगले एक वर्ष में कम कीमत वाले मकानों और वाणिज्यिक को-वर्किंग स्पेस का बाजार तेजी से बढ़ेगा। सरकार द्वारा नई नीति पेश करने के बाद निवेशकों की ओर से भी बाजार को सहयोग मिलेगा। वृद्धि धीमी लेकिन स्थायित्व भरी होगी। मांग बढऩे पर नकदी की कमी भी दूर होगी और कुल मिलाकर एक सकारात्मक चक्रीय प्रभाव देखने को मिलेगा।'
कुल मिलाकर अचल संपत्ति क्षेत्र के कारोबारी यह मानते हैं कि इस क्षेत्र में सुधार आएगा लेकिन ऐसा कब होगा इसका किसी को कोई अंदाजा नहीं है। कारोबारी यह भी मानते हैं कि यह सुधार धीमी लेकिन स्थिर गति से होगा।'
'रियल्टी अब छोटी अवधि नहीं बल्कि लंबे समय के लिए निवेश का बाज़ार है'
रियल्टी उद्योग पिछले कुछ अरसे से कई झटके झेलता आ रहा है। इस बजट में भी उद्योग के लिए बहुत उत्साहजनक घोषणाएं नहीं दिखी हैं। मगर रियल एस्टेट कंपनियों के संगठन नारडेको के वाइस चेयरमैन प्रवीण जैन ने ऋषभ कृष्ण सक्सेना से कहा कि अनबिके मकान खत्म होने और परियोजनाओं को एनपीए घोषित करने में अधिक सख्ती नहीं होने से कुछ समय में ही बाजार फिर चढऩे लगा। उन्हें अटकी परियोजनाओं के लिए सरकार से कोष की भी उम्मीद है। बातचीत के अंश:
रियल्टी का बाजार आपको कैसा नजर आ रहा है?
बाजार का रुख अब बदल गया है। डेवलपर नई परियोजनाएं लाने के बजाय अब मकान बनाकर चाबियां खरीदार के हाथ में देने पर जोर दे रहे हैं। इसी वजह से प्रमुख शहरों में अनबिके मकानों का अंबार कम भी हो रहा है। एकाध साल में पहले से बने हुए मकान लगभग खत्म हो जाएंगे, जिसके बाद बाजार रफ्तार पकड़ेगा। हां, अगर बैंक आवास ऋण पर ब्याज दर और घटा देते हैं तो रियल एस्टेट के बाजार में अच्छी खासी उछाल आ सकती है।
बजट में रियल्टी के लिए कुछ खास मिला या नहीं?
रियल्टी परियोजनाओं को गैर निष्पादित संपत्ति (एनपीए) करार देने के मामले में बैंकों पर जो सख्ती बरती गई थी, उससे उद्योग को अच्छी खासी राहत मिल गई थी। अब सरकार को रियल्टी के लिए उस कोष में जल्द ही तेजी लानी चाहिए, जिससे अटकी परियोजनाएं पूरी करने में डेवलपरों को मदद मिले। इससे कंपनियों का भी भला होगा और ग्राहकों का भी।
क्या बाजार में निवेशकों के लिए भी कुछ मौका है?
यह बिल्कुल है। मगर निवेशक को लंबे समय के लिए निवेश करना होगा। रियल्टी का बाजार अब साल-छह महीने के लिए निवेश का बाजार नहीं रह गया है। कम से कम ढाई-तीन साल के लिए निवेश किया जाए तो 15-17 फीसदी प्रतिफल मिलने के पूरे आसार हैं। कई डेवलपर निर्माणाधीन परियोजनाओं में तैयार परियोजनाओं के मुकाबले 20 फीसदी कम दाम पर फ्लैट दे रहे हैं। वहां रकम लगाने से मुनाफा होगा। निवेशकों को ध्यान इस बात का रखना है कि रकम अच्छी परियोजना में ही लगाएं।'
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