ठहरा रियल्टी का बाज़ार | |
सिद्धार्थ कलहंस / 03 03, 2020 | | | | |
उत्तर प्रदेश में जमीन-मकान का बाजार पिछले लंबे अरसे से ठहरा हुआ है। डेवलपर प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत सस्ते मकानों पर ही दांव खेल रहे हैं
पिछले वर्ष लखनऊ विकास प्राधिकरण को अपनी खाली पड़ी संपत्तियों की कीमत दो बार घटानी पड़ीं और प्रदेश के 17 शहरों में मकान बना रही आवास विकास परिषद ने इस जनवरी में अपने खाली पड़े फ्लैट ठीकठाक सस्ते कर दिए। लखनऊ में कीमत 5 से 10 फीसदी कम कर दी गई है। इतना ही नहीं जमीन की कीमत अगले साल बढ़ाई नहीं जाएगी ताकि कम से कम डेढ़-दो साल तक फ्लैटों के दाम नहीं बढ़ें।
निजी क्षेत्र में रियल्टी कंपनियों ने कीमत इसलिए नहीं घटाईं कि सस्ते की जंग शुरू नहीं हो जाए मगर व्यक्तिगत तौर पर खरीदारों को आकर्षक पेशकश की जा रही हैं। नोएडा, ग्रेटर नोएडा, यमुना एक्सप्रेसवे और गाजियाबाद में ही इस समय लाखों की तादाद में फ्लैट बिना बिके हुए खड़े हैं। पांच साल से कीमत नहीं बढ़ीं मगर खरीदार भी नहीं फटक रहे। दशक भर पहले गोरखपुर, बरेली, इलाहाबाद, वाराणसी, मुरादाबाद, झांसी, सहारनपुर, मेरठ जैसे शहरों में शुरू हुआ अपार्टमेंट का चलन बहुत हद तक बंद हो चुका है। प्रदेश का आवास विभाग बता रहा है कि नए टाउनशिप के प्रस्ताव आ ही नहीं रहे हैं।
उत्तर प्रदेश में एक अनूठा चलन यह भी है कि मकान सस्ते बनाने हैं और कम समय में बनाने हैं। पिछले पांच साल से यहां सस्ते मकान बनाने की होड़ दिख रही है। आलम यह है कि बड़े और लक्जरी मकान बनाने वाली ज्यादातर कंपनियां या तो किफायती मकानों का रुख कर चुकी हैं या दौड़ से बाहर हो गई हैं। नोएडा, गाजियाबाद जैसे शहरों से शुरू हुआ किफायती मकानों का चलन अब हर शहर में फैल गया है। लखनऊ में ही एक दर्जन से अधिक कंपनियां सस्ते मकान बना रही हैं। इन मकानों को खरीदार भी मिल जाते हैं। यह देखकर आवास विकास परिषद और विकास प्राधिकरण भी इसी राह पर चल निकले हैं। तीन साल से ये संस्थाएं लक्जरी फ्लैट बना ही नहीं रही हैं। उसके बजाय प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत सस्ते मकान बनाए जा रहे हैं। रेरा लागू होने से शिकायतें कम हुई हैं और मकान जल्दी मिलने लगे हैं।
कम कीमत पर मकान बनाने का सिलसिला प्रदेश में विकास प्राधिकरणों व आवास विकास ने शुरु किया। लेकिन प्रधानमंत्री आवास योजना ने ऐसे मकानों को तेजी दी और इस योजना के तहत उत्तर प्रदेश में केवल दो साल में 10 लाख से ज्यादा मकान बना दिए गए। देश भर में इस योजना के तहत मकान बनाने की फेहरिस्त में उत्तर प्रदेश ही सबसे आगे है। अधिकारियों का कहना है कि 2019-20 खत्म होने तक प्रदेश में इस योजना के तहत 14 लाख मकान बन चुके होंगे। निजी क्षेत्र में इस योजना के तहत 1.40 लाख मकान बने हैं।
रियल एस्टेट में तेजी की बात करें तो नोएडा, ग्रेटर नोएडा, गाजियाबाद और लखनऊ के बाद वाराणसी में ही रफ्तार सबसे अधिक है। लेकिन किसी समय दिल्ली-एनसीआर के बराबर महंगे मकानों वाले इस शहर में अब कम कीमत के फ्लैट ही बनाए जा रहे हैं। लक्जरी फ्लैटों का ठिकाना बने मथुरा, आगरा, मेरठ और कानपुर में भी कीमतें नीचे आ गई हैं और यहां भी किफायती मकानों का दौर है। पूर्वांचल एक्सप्रेसवे और और बाबतपुर हवाई अड्डे की सड़क बनने के बाद वाराणसी में रियल्टी जोर पकड़ रहा है मगर लक्जरी फ्लैटों से दूरी बनी हुई है। राजधानी लखनऊ, गाजियाबाद और एनसीआर के दूसरे इलाकों में मंदी से जूझ रहे बिल्डर सस्ते मकानों के दम पर ही धंधा चला रहे हैं।
अरसे बाद राजधानी लखनऊ में आवास विकास परिषद ने और अब विकास प्राधिकरण ने भूखंड बेचना शुरू किया है। बीते एक दशक में दोनों संस्थाएं फ्लैट पर ही जोर दे रही थीं, लेकिन अब तस्वीर बदली है। दिल्ली से सटे मथुरा में भी कई रियल्टी कंपनियां भूखंड बेचने की योजनाएं ला रही हैं। रियल्टी सेक्टर के विशेषज्ञ अजय प्रकाश का कहना है कि बढ़ती कीमतों के कारण भूखंड लोगों के लिए सपना हो गया था मगर अब दौर बदलेगा। उनका कहना है कि आने वाले दिनों में लक्जरी फ्लैट खरीदने वालों या प्रीमियम ग्राहकों के लिए एक बार फिर भूखंडों की बिक्री का दौर शुरू होगा। वाराणसी में निजी डेवलपर रजत मोहन पाठक का कहना है कि पूंजी निकालने और जल्दी बेचने के हिसाब से भूखंड विकसित करना अच्छा विकल्प हो सकता है क्योंकि उसमें पूंजी फंसने का खटका नहीं के बराबर रहता है।'
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