ऑनलाइन मार्केटिंग पर बॉलीवुड का जोर | सोहिनी दास / February 28, 2020 | | | | |
पिछले कुछ हफ्ते में शायद ही किसी के डिजिटल मेल बॉक्स में महिलाओं के खिलाफ हिंसा का विरोध करने वाला संदेश न मिला हो। दरअसल यह संदेश फिल्म 'थप्पड़' की अभिनेत्री तापसी पन्नू दे रही हैं जिनकी यह फिल्म इस हफ्ते रिलीज हो गई है। महिलाओं पर होने वाली घरेलू हिंसा फिल्म 'थप्पड़' की मुख्य थीम है। आप इसे फिल्म के प्रचार-प्रसार की मार्केटिंग रणनीति भी कह सकते हैं। तापसी कहती हैं, 'आप मेरे साथ खड़े हो जाइए और दुनिया को बताइए कि एक थप्पड़, बस इतनी सी बात नहीं है।' वह इसी तरह दूसरे ऑनलाइन फॉर्मेट में भी अपनी फिल्म के प्रचार-प्रसार में जुड़ी हुई हैं। आमतौर पर बॉलीवुड में फिल्म की मार्केटिंग करने वाले फिल्म के प्रचार-प्रसार में जितना खर्च करते हैं उसके मुकाबले ऑनलाइन माध्यम के जरिये बेहद कम रकम खर्च की गई है। डिजिटल माध्यम से पेश किए जा रहे इस तरह के संदेश को लेकर लोगों में काफी दिलचस्पी दिखी और इसी वजह से फिल्म को लेकर चर्चा चल रही है।
इसी तरह पिछले हफ्ते रिलीज हुई फिल्म 'शुभ मंगल ज्यादा सावधान' भी ऑनलाइन मंचों पर समलैंगिक अधिकारों से जुड़ी चर्चा का हिस्सा रही जिसने अब तक 32.6 करोड़ रुपये तक कमाए हैं। फिल्म स्टूडियो अपने डिजिटल दायरे का विस्तार करते हुए फिल्म से जुड़े खास पोस्टर, मीम और ट्रेलर रिलीज करते हैं ताकि दर्शकों को प्रभावित किया जा सके। दरअसल ये अपने मार्केटिंग बजट का किफायती तरीके से इस्तेमाल करना सीख रहे हैं ताकि ऑनलाइन चैनलों में इनका दायरा और दबदबा बढ़े।
एक मार्केटिंग अधिकारी कहती हैं कि फिल्म निर्माता अब डिजिटल मार्केटिंग को खर्च के बोझ के तौर पर नहीं देखते हैं। उनका कहना है कि यह एक निवेश है जो कम से कम 2 करोड़ रुपये और अधिकतम 25 करोड़ रुपये तक हो सकता है। उनके मुताबिक डिजिटल मार्केङ्क्षटग में पैसे का इस्तेमाल प्रभावी रूप से किया जा सकता है और खर्च किए गए प्रत्येक रुपये का इस्तेमाल किया जा सकता है। एक डिजिटल एवं सोशल मीडिया मार्केटिंग एजेंसी दि स्मॉल बिग आइडिया (टीएसबीआई) के सीईओ और सह संस्थापक हरिकृष्णनन पिल्लई कहते हैं, 'कुछ साल पहले तक फिल्म मार्केटिंग सितारों तक सीमित रहती थी। एक बड़े अभिनेता के दम पर दर्शकों को जुटाने की कोशिश होती थी लेकिन अब इसमें बदलाव आ चुका है।' वह फिल्म 'बधाई हो' की मिसाल देते हैं जिसकी कहानी बिल्कुल अलग तरह की थी और वह फिल्म हिट रही। इसे महज 29 करोड़ के बजट से बनाया गया था लेकिन इस फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर करीब 140 करोड़ रुपये कमा लिए। इस फिल्म में कोई बड़ा सितारा नहीं था लेकिन मार्केटिंग टीम ने फिल्म की कहानी पर जोर देते हुए फिल्म के ट्रेलर में कुछ ऐसी झलक और संवाद को शामिल किया जिससे दर्शकों में इस फिल्म को देखने की उत्सुकता बढ़ी।
डेटा का इस्तेमाल संदेश के प्रभाव और पहुंच को तय करने के लिए किया जाता है। एक डिजिटल मार्केटिंग एजेंसी मिरम इंडिया के संयुक्त सीईओ (मुख्य कार्याधिकारी) हरीश टिबड़ेवाला का कहना है कि सोशल लिसनिंग टूल ज्यादा लोकप्रिय हैं। फिल्म रिलीज होने से कुछ महीने पहले ही टीम ऐसा टूल लगाती है जिसमें फिल्म से जुड़ी सभी बातों के जिक्र का अंदाजा लगा लिया जाता है और इसे फिर स्टूडियों में चलाया जाता है ताकि मार्केटिंग टीम को बताया जा सके कि किन जगहों पर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है या फिर कोई अलग रणनीति अपनाई जाती है। टिबड़ेवाला का कहना है, 'सामाजिक बातचीत को सुनने में सोशल स्टूडियो जैसे उपकरण का इस्तेमाल शामिल है और यह गूगल की तरह काम करता है। हमने उपकरण में कुछ कीवर्ड सेट किए हैं जो हमारी किसी बातचीत से जुड़ी खास खोज के अनुरूप होता है। इस उपकरण के जरिये सार्वजनिक डिजिटल माध्यम पर चल रही सभी बातचीत पर नजर डाली जाती है और उसे इंटरफेस पर रखा जाता है ताकि एक संवाद को एक वक्त पर देखकर उसकी प्राथमिकता तय की जाए और उसे उपयुक्त तरीके से टैग किया जाए। सोशल मीडिया ने कुछ ऐसी प्रक्रिया तैयार की है जिससे यह प्रक्रिया स्वत: संचालित हो सकती है।' उनकी एजेंसी ने 'ठाकरे' और 'एक्वामैन' जैसी फिल्मों के साथ काम किया है। उनका कहना है, 'हमारे अनुभव के मुताबिक कुल मार्केटिंग खर्च में डिजिटल की हिस्सेदारी करीब 50 फीसदी तक है जबकि प्रिंट, आउटडोर और प्रमोशन की अब भी अहम भूमिका है।'
डिजिटल माध्यम की खास बात यह है कि यहां इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता है कि मार्केटिंग टीम का संदेश कितने लोगों तक पहुंचा है। पिल्लई का कहना है कि मार्केटिंग एजेंसियां ऑनलाइन बुकिंग मंचों (मसलन बुकमाइशो, पेटीएम आदि) को लक्षित करती हैं ताकि मार्केटिंग की कोशिश बेहतर हो सके। डेटा की वजह से समझ बनाने में मदद मिलती है कि कौन से लोग फिल्में देखते हैं, क्या वे अकेले फिल्म देखते हैं या अपने किसी पार्टनर के साथ, इनमें से कितने लोग फिल्म देखने से पहले इसके प्रमोशन (ट्रेलर, गाने से जुड़े क्विज, विज्ञापन अभियान आदि) से जुड़े रहे हैं आदि। इसका मकसद यह है कि दर्शक इनसे इतने प्रेरित हो सकें कि वे फिल्म देखें।
|