जीवन बीमा कंपनियां स्वास्थ्य पॉलिसी बेचें तो फायदा | सुब्रत पांडा / मुंबई February 27, 2020 | | | | |
जीवन बीमा कंपनियों को मुआवजा आधारित स्वास्थ्य बीमा पॉलिसी बेचने की मंजूरी देने की व्यवहार्यता का अध्ययन करने के लिए समिति गठित करने के बीमा नियामक के कदम से बीमा उद्योग में एक बड़ी बहस शुरू हो गई है। इस क्षेत्र से जुड़े ज्यादातर लोगों का मानना है कि अगर नियामक अपने इस कदम पर आगे बढ़ता है तो इससे उन स्वास्थ्य बीमा कंपनियों को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचेगा, जिनकी केवल इसी क्षेत्र में मौजूदगी है। गैर-जीवन बीमा कंपनियां बुरी तरह प्रभावित नहीं होंगी क्योंकि उनके पास ऐसे कई खंड हैं, जिन पर वे ध्यान दे सकती हैं। इसके अलावा वे स्वास्थ्य खंड में भी ज्यादा मुनाफे वाली पॉलिसी बेचने में संभावनाएं तलाश सकती हैं, जिसका अभी तक उनके कुल स्वास्थ्य कारोबार में मामूली हिस्सा है।
एसबीआई जनरल इंश्योरेंस के प्रमुख (अंडरराइटिंग और रीइंश्योरेंस) सुब्रमण्यम ब्रह्मजोयसुला ने कहा, 'इससे केवल स्वास्थ्य खंड में मौजूदगी रखने वाली कंपनियों को कई खंडों में मौजूदगी रखने वाली बीमा कंपनियों की तुलना में ज्यादा नुकसान होगा। कई खंडों में मौजूदगी रखने वाली कंपनियां बाजार में कई तरह की योजनाएं बेच सकती हैं।' उन्होंने कहा, 'हालांकि जीवन बीमा कंपनियों का बेहतर वितरण नेटवर्क है। लेकिन यह चीज भी ध्यान में रखी जानी चाहिए कि स्वास्थ्य बीमा मुआवजा पॉलिसी थोड़ी जटिल हो सकती हैं और ग्राहकों को उचित सलाह देने के लिए पॉलिसी का गहरा ज्ञान होना जरूरी है। यह ऐसा क्षेत्र है, जिनमें शुरुआती दौर में गैर जीवन बीमा कंपनियां बढ़त में रह सकती हैं।'
ज्यादातर जानकारों का मानना है कि बीमा नियामक के इस कदम से भारत में स्वास्थ्य बीमा का प्रसार बढ़ेगा क्योंकि जीवन बीमा कंपनियों का वितरण नेटवर्क अच्छा है। इस वजह से वे स्वास्थ्य बीमा क्षेत्र का दायरा सुधारने में गैर-जीवन बीमा कंपनियों की तुलना में बेहतर स्थिति में होंगी। वर्ष 2015 से पहले जीवन बीमा कंपनियों को मुआवजा आधारित पॉलिसी और लाभ आधारित पॉलिसी बेचने की मंजूरी थी। लेकिन 2015 में नियामक ने फैसला किया कि जीवन बीमा कंपनियां को मुआवजा आधारित पॉलिसी बेचने की मंजूरी नहीं होगी, वे केवल लाभ आधारित पॉलिसी ही बेच पाएंगी।
उद्योग के विशेषज्ञों ने कहा कि स्वास्थ्य बीमा क्षेत्र में हमेशा गैर-जीवन बीमा कंपनियों का दबदबा रहा है। लेकिन अंडरराइटिंग और दावों के प्रबंधन में क्षमता बनाना महंगा है। इसके चलते एकल स्वास्थ्य बीमा कंपनियां और सामान्य बीमा कंपनियां अपने पोर्टफोलियो को बड़ा और लाभकारी बनाने में कड़ी जद्दोजहद कर रही हैं। जीवन बीमा कंपनियों के मुताबिक मानव बीमारी और मानव की मौत में संबंध है। वहीं मोटर से नुकसान और मानव बीमारी एवं मृत्यु में कोई संबंध नहीं है। इस वजह से जीवन बीमा कंपनियों का मुआवजा आधारित स्वास्थ्य बीमा पॉलिसी बेचना ज्यादा तर्कसंगत है।
बिज़नेस स्टैंडर्ड इंश्योरेंस राउंडटेबल 2020 में आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल लाइफ इंश्योरेंस के एमडी और सीईओ एनएस कन्नन ने कहा, 'जीवन बीमा उद्योग का नेटवर्क व्यापक है। अगर आप एलआईसी को देखें तो उनके पास 12 लाख एजेंट हैं। वहीं अन्य सभी कंपनियों के करीब 10 लाख एजेंट हैं। इसलिए 22 लाख एजेंट स्वास्थ्य बीमा पॉलिसी बेचेंगे, जिनका प्रसार जीवन बीमा से भी बहुत कम है। यह न केवल एलआईसी बल्कि उद्योग एवं देश के लिए बहुत बदलावकारी साबित होगा।' अश्विन पारेेख एडवाइजरी सर्विसेज के प्रबंध निदेशक अश्विन पारेख के मुताबिक, 'शुरुआत में चार दशक पहले स्वास्थ्य बीमा को एक क्षेत्र के रूप में सामान्य बीमा के तहत रखा गया था, जबकि दुनियाभर में इसे जीवन बीमा का ही विस्तार और और जीवन बीमा के ज्यादा नजदीक माना जाता है। उसके बाद सरकारी क्षेत्र की चार सामान्य बीमा कंपनियों ने मेडिक्लेम पॉलिसी शुरू कीं, जो केवल बड़ी बीमारियों के मुआवजे की जरूरत ही पूरी करती हैं।' हालांकि उन्होंने कहा कि ये पॉलिसी प्राथमिक और द्वितीयक चिकित्सा के लिए कोई कवर नहीं मुहैया कराती हैं।
एक सामान्य बीमा कंपनी के सीईओ ने कहा कि अगर सामान्य बीमा कंपनियों के कुछ खंडों को खोला जाता है तो जीवन बीमा के कुछ खंडों को भी खोला जाएगा। जीवन बीमा खंड अपने आप में बढ़ता क्षेत्र है। अगर ज्यादा कंपनियां जागरूकता फैलाएंगी तो वे इसका ज्यादा फायदा उठा सकती हैं। इसलिए विशेषज्ञों ने कहा कि इसे विकासात्मक लक्ष्य के रूप में देखा जाना चाहिए। देश में स्वास्थ्य बीमा क्षेत्र का दायरा बहुत सीमित है, इसलिए बीमा कंपनियां इस प्रतिस्पर्धा का स्वागत कर रही हैं और इस क्षेत्र में जीवन और गैर-जीवन बीमा कंपनियों के पास बढऩे के बहुत मौके हैं। एचडीएफसी लाइफ के कार्यकारी निदेशक सुरेश बादामी ने बिज़नेस स्टैंडर्ड राउंडटेबल 2020 में कहा कि अगर स्वास्थ्य खर्च पर 100 रुपये खर्च होते हैं तो इसमें से 62 रुपये व्यक्ति की जेब से निकलते हैं।
पॉलिसी बाजार डॉट कॉम के मुख्य कारोबार अधिकारी (जीवन बीमा) संतोष अग्रवाल ने कहा, 'प्रारुपित नियमनों के जरिये जीवन बीमा कंपनियां एक्चुरियल मॉडलों को लागू कर सकती हैं और समय-समय कीमतों की समीक्षा कर सकती हैं। इस कदम से ग्राहकों को तगड़ा फायदा होगा क्योंकि इससे उनके और उनके परिवार के लिए सुरक्षित रहने के विकल्प बढ़ जाएंगे।'
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