भारत को मिलीं यूएसएफडीए की कम चेतावनी | सोहिनी दास / मुंबई February 27, 2020 | | | | |
अमेरिकी दवा विनियामक द्वारा भारतीय फार्मा के लिए विनियामकीय जांच कड़ी करना उद्योग के लिए चिंता की बात है। हालांकि दीर्घकालिक आंकड़े बताते हैं कि भारतीय इकाइयों को चीन और अमेरिका की तुलना में अमेरिकी विनियामक से कम संख्या में चेतावनी-पत्र प्राप्त हुए हैं। वित्त वर्ष 15 से 19 के बीच भारत में स्थित इकाइयों को अमेरिकी खाद्य एवं औषधि प्रशासन (यूएसएफडीए) से 66 चेतावनी-पत्र मिले हैं, जबकि चीन में स्थित इकाइयों को 73 चेतावनी-पत्र और अमेरिका की इकाइयों को 97 चेतावनी-पत्र मिले हैं। यूएसएफडीए के अनुपालन कार्यालय के विनिर्माण गुणवत्ता निदेशक फ्रांसिस गॉडविन द्वारा यहां आयोजित एक कार्यक्रम में साझा किए गए आंकड़े बताते हैं कि भारत ने अपने पड़ोसी देश चीन से बेहतर प्रदर्शन किया है, जबकि अमेरिका को फॉम्र्युलेशन और थोक दवा आपूर्ति में उसकी बड़ी हिस्सेदारी रहती है।
यूएसएफडीए के अनुसार अमेरिका द्वारा प्राप्त की जाने वाले एक्टिव फार्मास्युटिकल इंग्रडिऐंट्स (एपीआई) में भारत का योगदान करीब 18 प्रतिशत रहता है, जबकि चीन का योगदान 13 प्रतिशत होता है। यूरोपीय संघ की करीब 26 प्रतिशत हिस्सेदारी थी, जबकि अमेरिका आधारित केंद्रों का योगदान 28 प्रतिशत था। अमेरिकी बाजार में आपूर्ति की जाने वाले तैयार दवा में भारत का योगदान 11 प्रतिशत है, जबकि चीन का योगदान केवल सात प्रतिशत, यूरोपीय संघ का योगदान 18 प्रतिशत और शेष विश्व में 13 प्रतिशत रहता है। इस तरह अमेरिकी फार्मा बाजार में आपूर्ति के मामले में भारत का योगदान बहुत अधिक है। वित्त वर्ष 2019 में भारतीय इकाइयों को अमेरिका से 17 चेतावनी-पत्र मिले थे, जबकि चीन को 14 और अमेरिकी इकाइयों को 54 चेतावनी-पत्र मिले थे।
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