वीआरएस से हुईं सेवाएं प्रभावित | |
मेघा मनचंदा / नई दिल्ली 02 24, 2020 | | | | |
► बीएसएनएल के 55 फीसदी कर्मचारियों ने लिया वीआरएस
► एमटीएनएल के 75 फीसदी कर्मचारी भी वीआरएस लेकर निकले
► कर्मचारियों की कमी से लैंडलाइन और ब्रॉडबैंड सेवाएं प्रभावित
अहमदाबाद के सेवानिवृत्त बैंक अधिकारी विनोद देसाई अपने खराब पड़े लैंडलाइन टेलीफोन की शिकायत लेकर पिछले दो महीने से हर हफ्ते भारत संचार निगम लिमिटेड (बीएसएनएल) के स्थानीय कार्यालय का चक्कर काट रहे हैं। उनके मुताबिक अधिकारियों का कहना है कि स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति योजना वीआरएस के कारण कर्मचारियों की संख्या कम हो गई है जिससे कामकाज पर असर पड़ा है। देसाई अब निजी सेवा प्रदाता से लैंडलाइन कनेक्शन लेने की योजना बना रहे हैं।
कई वर्षों से बीएसएनएल के समर्पित ग्राहक रहे देसाई अकेले ऐसे व्यक्ति नहीं हैं जिन्हें इस सरकारी कंपनी ने निराश किया है। उनके ही शहर के कारोबारी जियो वर्गीज की भी शिकायत है कि उनके बीएसएनएल ब्रॉडबैंड कनेक्शन स्पीड बहुत धीमी है। कंपनी के करीब 55 फीसदी कर्मचारी वीआरएस ले चुके हैं। बीएसएनएल का लैंडलाइन इस्तेमाल करने वाले हैदराबाद के सुरेश कुमार का कहना है कि कंपनी शिकायतों का निपटारा करने में पहले से कहीं ज्यादा समय ले रही है। बिज़नेस स्टैंडर्ड ने देशभर में बीएसएनएल के कई लैंडलाइन और मोबाइल उपभोक्ताओं से संपर्क किया और उनमें से अधिकांश का ऐसा ही अनुभव था। इसकी वजह वीआरएस है।
देशभर में बीएसएनएल की सेवाओं से लोग परेशान हैं तो दिल्ली और मुंबई में महानगर टेलीफोन निगम लिमिटेड (एमटीएनएल) की सेवाओं की भी कमोबेश यही स्थिति है। मुंबई में एमटीएनएल के एक नाराज उपभोक्ता ने कहा, 'मेरा लैंडलाइन कई हफ्तों से खराब पड़ा है और कई बार शिकायत करने का भी कोई फायदा नहीं हुआ है। मैंने इस बारे में एमटीएनएल के शीर्ष अधिकारियों को भी फोन किया लेकिन इसका भी कोई नतीजा नहीं निकला। ऐसा लगता है कि शिकायतों का समाधान करने के लिए कंपनी के पास कर्मचारी ही नहीं हैं।' मुंबई में लैंडलाइन के चार से छह हफ्ते तक खराब पड़े रहना आम बात है और ब्रॉडबैंड की भी यही स्थिति है। अगर कोई उपभोक्ता अपनी शिकायत लेकर दिल्ली या मुंबई में एमटीएनएल के ऑफिस पहुंचता है तो उसे शायद ही कोई मिलता है। एमटीएनएल के करीब 75 फीसदी कर्मचारी वीआरएस लेकर निकल चुके हैं।
हालांकि नई दिल्ली के जनपथ स्थित बीएसएनएल का भव्य मुख्यालय चौतरफा फैली मायूसी को ठीक से बयां नहीं करता है। बीएसएनएल के चेयरमैन एवं प्रबंध निदेशक पी के पुरवार ने बिज़नेस स्टैंडर्ड से कहा कि मौजूदा कर्मचारियों ने आसन्न चुनौतियों से निपटने की दिशा में अनुकूल रुख दिखाया है। संख्या काफी बड़ी है। बीएसएनएल और एमटीएनएल ने एक झटके में ही स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति योजना (वीआरएस) के जरिये 93,000 कर्मचारियों की छंटनी कर दी है। वीआरएस लेने वालों में बीएसएनएल के 78,569 और एमटीएनएल के 14,300 कर्मचारी शामिल हैं। बीएसएनएल के एक वरिष्ठ अधिकारी कहते हैं कि इस सरकारी कंपनी में कर्मचारी जरूरत से अधिक थे लिहाजा इतनी बड़ी संख्या में वीआरएस लेने के बावजूद कंपनी के कामकाज पर नाममात्र का असर पड़ेगा।
असल में, एमटीएनएल और बीएसएनएल दोनों के ही अधिकारियों का दावा है कि उनका परिचालन पहले जैसा ही चल रहा है। वीआरएस लेने वाले बीएसएनएल कर्मचारियों का एक बड़ा हिस्सा यानी 55,000 कर्मचारी निचले स्तर पर तैनात थे। एमटीएनएल के भी मामले में गैर-कार्यकारी श्रेणी वाले कर्मचारी ही वीआरएस लेने में सबसे आगे हैं। इस बारे में पूछे जाने पर पुरवार ने कहा, 'हमारी कंपनी में सभी स्तर के कर्मचारियों ने सेवानिवृत्ति योजना चुनी है। इस योजना का विकल्प रखते समय हमने कोई भी कैडर-आधारित भेद नहीं किया था।' इस योजना की इकलौती शर्त यही थी कि कर्मचारी की उम्र आवेदन करते समय 50 साल से अधिक होनी चाहिए। इसके अलावा किसी भी आवेदन को खारिज नहीं किया गया है।
वैसे राज्य स्तर के अधिकारी वास्तविकता के अधिक करीब नजर आए। मसलन, बीएसएनएल के गुजरात सर्किल में कॉर्पोरेट ऑफिस से मिले निर्देशों के बाद आउटसोर्स साझेदारों की तलाश के लिए निविदा जारी किए जा रहे हैं। गुजरात के करीब 10,000 कर्मचारियों में से 6,468 ने वीआरएस का विकल्प चुना था जिसके बाद सर्किल में महज 3,532 नियमित कर्मचारी ही रह गए हैं।
गुजरात सर्किल के अधिकारी ने कहा, 'हम अपनी सेवाएं बेहतर करने पर ध्यान दे रहे हैं लेकिन भावी निवेश को लेकर कोई भी विवरण उपलब्ध नहीं है। आउटसोर्स किए गए साझेदार लैंडलाइन कनेक्शनों के लिए हमारी कॉपर लाइन को संभालेंगे। इसकी वजह यह है कि वीआरएस लेने वाले अधिकतर कर्मचारी ग्रुप-सी के थे जो इन लाइंस की देखरेख करते थे।' इसके साथ ऑप्टिक फाइबर नेटवर्क का रखरखाव भी आउटसोर्स किया जा सकता है।
कुछ ऐसा ही हाल बीएसएनएल के हैदराबाद स्थित कार्यालयों का है। वीआरएस योजना के बाद कामकाज संभालने में जुटे अधिकारियों ने दफ्तरों में काम करने वाले कर्मचारियों को ग्राहक सेवा कामों में लगा दिया है। वहां के एक अधिकारी कहते हैं, 'ग्राहक सेवा केंद्रों में तैनाती और खामियों को दूर करना हमारी प्राथमिकता है। हमारी कोशिश यह है कि इस मुश्किल वक्त में कम-से-कम गतिरोध पैदा हो। आउटसोर्सिंग के लिए निविदा जारी करने की प्रक्रिया उन्नत चरण में है।'
उधर चेन्नई शहर और आसपास के करीब 200 से अधिक एक्सचेंज में से 33 एक्सचेंज में 1 फरवरी के बाद शायद ही कोई स्टाफ बचा है। राष्ट्रीय दूरसंचार कर्मचारी महासंघ के वरिष्ठ उपाध्यक्ष सी के मथीवनन कहते हैं, 'हमारी यूनियन को कर्मचारियों के लिए तत्काल यहां के प्रबंधन से बात करनी पड़ी ताकि ये एक्सचेंज पूरी तरह बंद न हो जाएं।'
कर्मचारियों की कमी का असर बीएसएनएल की अनुषंगी इकाइयों पर भी देखा जा रहा है। दामोदर घाटी निगम के सेवानिवृत्त अधिकारी भानु किरण चक्रवर्ती कलकत्ता टेलीफोन की सेवा गुणवत्ता में आई गिरावट से खासे परेशान हैं। राष्ट्रीयकृत इकाइयों के पक्षधर रहे चक्रवर्ती इस लैंडलाइन टेलीफोन का इस्तेमाल 1972 से ही कर रहे हैं। लेकिन पिछले दो साल में वॉयस कॉल के साथ ही डेटा स्पीड की गुणवत्ता में भी गिरावट आई है।
उत्तर प्रदेश (जहां कुछ सेवाओं को आउटसोर्स करने का निर्णय लिया गया) में बीएसएनएल के एक अधिकारी ने कहा कि श्रम संकट गंभीर था। उन्होंने कहा कि बीएसएनएल के शेष स्टाफ को अब एक बड़ी जिम्मेदारी निभानी है। राज्य में दो सर्किलों - उत्तर प्रदेश (पूर्व) और उत्तर प्रदेश (पश्चिम) में कर्मचारियों की संख्या 6,900 से घटकर लगभग 3,300 रह गई है और वहां मोबाइल फोन आधार 1.6 करोड़ पर अनुमानित है। वीआरएस के बाद भी उत्तर प्रदेश में जहां मोबाइल ग्राहक आधार बना हुआ है, वहीं लैंडलाइन सेवाओं को कर्मियों की संख्या में अचानक कमी होने सक दबाव का सामना करना पड़ रहा है।
हालांकि कुछ केंद्र संविदा कर्मचारियों की संभावना तलाश रहे हैं, लेकिन बीएसएनएल और एमटीएनएल के लिए इस प्रक्रिया में समय लगेगा। इन दोनों कंपनियों के विलय की कोशिश लंबे समय से हो रही है, लेकिन कर्मचारी यूनियनों के विरोध की वजह से इस दिशा में सफलता नहीं मिली है।
अक्टूबर 2019 में दीवाली से कुछ दिन पहले केंद्रीय मंत्रिमंडल ने विलय के बाद बीएसएनएल और एमटीएनएल के लिए करीब 70,000 करोड़ रुपये के राहत पैकेज को मंजूरी दी थी। इस पैकेज में 15,000 करोड़ रुपये का सॉवरिन बॉन्ड भी शामिल था। इस बॉन्ड के लिए ब्याज चुकाने की जिम्मेदारी इन दोनों सरकारी दूरसंचार कंपनियों की थी। बीएसएनएल और एमटीएनएल को 2016 की नीलामी मूल्य पर 4जी स्पेक्ट्रम का आवंटन होगा और इन दोनों कंपनियों की रियल एस्टेट संपत्तियों को भुनाया जाएगा। इस योजना के विस्तृत ब्योरे को दोनों कंपनियां अंतिम रूप देंगी। संपत्ति का मुद्रीकरण और 4जी स्पेक्ट्रम की प्रक्रिया अभी शुरू होनी बाकी है।
वीआरएस पैकेज में सरकार ने 17,169 करोड़ रुपये को मुआवजे के तौर पर और 12,768 करोड़ रुपये पेंशनरों के लाभ के लिए मंजूर किए हैं। सरकार की योजना एमटीएनएल और बीएसएनएल की 37,500 करोड़ रुपये की परिसंपत्तियां का मुद्रीकरण तीन वर्षों में करने की है ताकि बकाया चुकाने, बॉन्ड का ब्याज देने, नेटवर्क का उन्नयन, विस्तार और परिचालन से जुड़े खर्चों को पूरा करने के लिए संसाधन जुटाया जा सके। इन संपत्तियों में जमीन, भवन का किराया और पट्टा शामिल हैं। अकेले दिल्ली में एमटीएनएल के करीब 29 खुदरा आउटलेट हैं।
वास्तविकता यह है कि ऐतिहासिक तौर पर निजी दूरसंचार कंपनियां अपने कर्मचारियों पर कुल खर्च का करीब 5 से 10 फीसदी रकम खर्च करती रही हैं जबकि बीएसएनएल और एमटीएनएल के मामले में यह आंकड़ा करीब 70 फीसदी है। ऐसे में इन दोनों सरकारी दूरसंचार कंपनियों पर वीआरएस से उल्लेखनीय प्रभाव पड़ेगा। बीएसएनएल और एमटीएनएल के कर्मचारियों की संख्या कुछ महीने पहले 1,98,000 थी जो घटकर अब लगभग आधी रह गई है।
(साथ में अहमदाबाद से विनय उमरजी, कोलकाता से अभिषेक रक्षित, चेन्नई से गिरीश बाबू, हैदराबाद से दशरथ रेड्डी और लखनऊ से वीरेंद्र रावत)
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