देश में दवाओं की किल्लत पैदा होने की आशंका को देखते हुए एक सरकारी समिति ने 12 ऐक्टिव फार्मास्यूटिकल इन्ग्रेडिएंट्स (एपीआई) और दवाओं के निर्यात पर रोक लगाने की सिफारिश की है। चीन में कोरोनावायरस फैलने के कारण वहां से दवा बनाने में इस्तेमाल होने वाला कच्चा माल नहीं आ पा रहा है, जिससे घरेलू उद्योग के लिए दवा बनाने में अड़चन पैदा हो गई है। चीन से कच्चे माल की आपूर्ति पर नजर रखने के लिए गठित एक सरकारी समिति ने 12 एपीआई और दवाओं के निर्यात पर रोक लगाने की सिफारिश की है। इन एपीआई और दवाओं में सामान्य एंटीबायोटिक्स और विटामिन्स शामिल हैं। विदेश व्यापार महानिदेशालय (डीजीएफटी) को भेजे एक पत्र में रसायन एवं उवर्रक मंत्रालय के उप सचिव एम के भारद्वाज ने 12 एपीआई और दवाओं के निर्यात पर रोक लगाने को कहा है। डीजीएफटी निर्यात से संबंधित मामलों को देखता है। इन 12 एपीआई और दवाओं में प्रोजेस्टेरोन के अलावा क्लोरमफेनिकोल, नियोमाइसीन, मेट्रोनाइडिजोल जैसी एंटीबायोटिक और विटामिन बी1, बी12, बी6 आदि शामिल हैं। चीन से कच्चे माल की आपूर्ति को लेकर अनिश्चितता से देश के घरेलू बाजार बाजार में अड़चनें पैदा होने लगी हैं। छोटी दवा कंपनियां बड़ी मात्रा में कच्चे माल का स्टॉक नहीं रखती हैं ताकि उन्हें कम कार्यशील पूंजी की जरूरत पड़े। इन छोटी दवा कंपनियों का कहना है कि अब उनके पास केवल करीब 15 से 20 दिन का ही कच्चा माल बचा है। ठेके पर दवा बनाने वाली कंपनियों का भी कहना है कि पिछले एक पखवाड़े के दौरान ऑर्डरों में भारी कमी आई है। इसकी वजह यह है कि बड़ी दवा कंपनियां कच्चे माल की कीमतों में बढ़ोतरी के कारण फिलहाल ऑर्डर देने से बच रही हैं। इसके अलावा इस उद्योग के आंकड़े दर्शाते हैं कि पूरे उद्योग में दवा का स्टॉक भी बहुत अधिक नहीं है। गुजरात की एक छोटी सूचीबद्ध कंपनी लिंकन फार्मास्यूटिकल्स के प्रबंध निदेशक (एमडी) महेंद्र पटेल ने कहा कि ज्यादा दवा विनिर्माता कंपनियों के पास कच्चे माल का स्टॉक करीब 15-20 दिन में खत्म हो जाएगा। पटेल ने कहा कि पैरासीटामोल जैसी कुछ अहम दवाओं के ऐक्टिव फार्मास्यूटिकल इन्ग्रेडीएंट्स (एपीआई) भारत में बनते हैं, लेकिन एपीआई बनाने की प्रक्रिया मे इस्तेमाल होने वाली प्रमुख शुरुआती सामग्री (केएसएम) या मध्यवर्ती तत्वों का आयात चीन से होता है। पटेल ने दावा किया, 'चीन से आपूर्ति में अवरोध पैदा होने से पैरासीटामोल की मध्यवर्ती सामग्री की कीमतें पिछले कुछ हफ्तों में करीब 70 फीसदी बढ़ गई हैं। इसके अलावा चीन में हालात सामान्य होने पर भी वहां के वेंडरों की आपूर्ति नियमित होने में कम से कम एक महीना लगेगा। इसके चलते निश्चित रूप से घरेलू बाजार में व्यवधान पैदा होगा।' ठेके पर दवा बनाने वाली कंपनियां भी इस बात से सहमत हैं। उनके ऑर्डरों में पहली ही गिरावट आ चुकी है, लेकिन अब बड़ी कंपनियां ऑर्डर देने से पहले इंतजार कर रही हैं। मुंबई की ठेक पर दवा बनाने वाली एक बड़ी कंपनी ने कहा कि उसके ऑर्डर फरवरी में कम से कम 10 से 15 फीसदी घट चुके हैं। कंपनी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, 'हम कच्चे माल का स्टॉक नहीं करते हैं। जब हमें ऑर्डर मिलता है तो हम उस समय की बाजार कीमतें देखते हैं और उसी के मुताबिक कीमतें बताते हैं। हम आम तौर पर ऑर्डर की डिलिवरी 45 दिन में करते हैं। पिछले कुछ दिनों में अहम एपीआई और अन्य मध्यवर्ती सामग्री की कीमतें बढऩे से दवा कंपनियां ऑर्डर देने में थोड़ी झिझक रही हैं।'उन्होंने कहा कि दवा कंपनियां इतनी ऊंची कीमतों पर कच्चा माल खरीदने से पहले दवाओं के स्टॉक और कच्चे माल के स्टॉक को खत्म करेंगी। उन्होंने कहा, 'दवाओं की खुदरा कीमतें नहीं बढ़ाई जा सकती हैं, इसलिए कच्चे माल की कीमतों में बढ़ोतरी का बोझ विनिर्माताओं को ही वहन करना होगा।' हालांकि बड़ी दवा कंपनियों ने कहा कि यह सही है कि दवा कंपनियां ऊंची कीमतों पर कच्चा माल खरीदने के लिए आगे नहीं आएंगी, लेकिन वे अपने ग्राहक भी नहीं गंवा सकती हैं। देश की एक शीर्ष दवा कंपनी के वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, 'हमने अभी खतरे की घंटी नहीं बजाई है। बाजार में भी अभी दवा की कोई कमी नहीं है। लेकिन यह सही है कि स्टॉक खत्म होता जा रहा है। अभी हमें अगले दो महीनों में प्रमुख दवाओं की किल्लत पैदा होने की आशंका नजर नहीं आ रही है।' दवा उद्योग के लॉबी समूहों ने कहा कि उनके सदस्यों (ज्यादातर बड़ी कंपनियां) के पास डेढ़ महीने का और कच्चा माल है। इसमें दवा आपूर्ति शृंखला में मौजूद दवाओं को शामिल करते हैं तो यह कम से कम दो महीने के लिए काफी है। हालांकि इस समय आपूर्ति शृंखला में स्टॉक बहुत अधिक नहीं है क्योंकि बिकने वाले स्टॉक की आपूर्ति की रफ्तार धीमी पड़ गई है।
