'विवाद से विश्वास' करदाताओं के लिए हो सकती है निराशाजनक | दिल्ली डायरी | | ए के भट्टाचार्य / February 19, 2020 | | | | |
प्रत्यक्ष कर संबंधी विवादों से जुड़ी मुकदमेबाजी में कमी लाने के लिए नरेंद्र मोदी सरकार की नई पहल ने करदाताओं के बीच उम्मीद जगाई है। तमाम अदालतों और अपील अधिकरणों में ऐसे करीब 4.83 लाख मुकदमे लंबित चल रहे हैं। लेकिन 'विवाद से विश्वास' नाम की यह योजना ऐसे तमाम करदाताओं के बीच बड़ी निराशा का सबब बन सकती है। अगर कोई करदाता अपना मुकदमा हार चुका है और उसने अपील की हुई है तो इस योजना के तहत वह विवादित राशि का 100 फीसदी (जुर्माना एवं ब्याज छोड़कर) चुका कर मामले का निपटारा कर सकता है। इस तरह यह योजना कई करदाताओं के लिए विवाद को खत्म कर कर विभाग से मुक्ति का रास्ता दिखा सकती है। इसका मतलब है कि विवाद से विश्वास की तरफ बढ़ा जा सकता है।
लेकिन अगर कोई करदाता मुकदमा जीत चुका है और उसके खिलाफ कर विभाग ने अपील की हुई है तो इस योजना के तहत वह विवादित रकम का 50 फीसदी (जुर्माने एवं ब्याज के बगैर) भुगतान कर विवाद का निपटान करा सकता है। इस तरह की स्थिति में कई समस्याएं पैदा हो सकती हैं। आखिर निचली अदालत में मुकदमा जीत चुके करदाता को विवादित रकम का आधा हिस्सा चुकाने को क्यों तैयार होना चाहिए? कर विभाग इस बात के लिए खासा चर्चित है कि किसी भी तरह के कर विवाद में वह हार मिलने पर अपील में चला जाता है। लिहाजा मुकदमे का सामना कर रहे व्यक्ति को यह देखना होगा कि अपील पर लंबे समय तक खिंचने वाली अदालती कार्यवाही का सामना करने से कहीं बेहतर आधी रकम चुकाना है या नहीं। यह बात हालात को अधिक जटिल बना देती है कि कर विभाग के जिम्मे अब चालू वित्त वर्ष के बाकी बचे हफ्तों में बड़ा राजस्व संग्रह लक्ष्य को पूरा करना है। डर है कि इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए कर विभाग कहीं करदाताओं पर यह अवांछित दबाव न डालने लगे कि वे इस योजना के तहत लंबित मामलों का निपटारा करें। इस तरह सरकार को वांछित अतिरिक्त राजस्व मिल जाएगा और विवाद से विश्वास योजना भी सफल हो जाएगी।
लेकिन इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि यह कर विवादों की बड़ी समस्या को खत्म कर देगा जिससे बकाया कर संग्रह बढ़ेगा। पिछले 10 वर्षों में बकाये कर की समस्या बिगड़ती चली गई है। वित्त वर्ष 2009-10 में विवादित कर मामलों एवं गैर-विवादित कर मामलों को मिलाकर प्रत्यक्ष कर बकाये का कुल मूल्य 1.1 लाख करोड़ रुपये ही था जो केंद्र के 6.24 लाख करोड़ रुपये के सकल कर संकलन का महज 17.5 फीसदी है। वर्ष 2018-19 में सकल कर संग्रह में ऐसे बकाया कर की हिस्सेदारी तीव्र वृद्धि के साथ 45 फीसदी बढ़ गई। कुल 20.8 लाख करोड़ रुपये के सकल कर संग्रह में प्रत्यक्ष कर बकाया करीब 9.4 लाख करोड़ रुपये रहा।
कर बकाया का बढ़ता बोझ
यह एक ऐसी समस्या है जिसके लिए मनमोहन सिंह और नरेंद्र मोदी दोनों की सरकारों को जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए। मनमोहन सरकार ने प्रत्यक्ष कर के मद में बकाये को अपने शासन के अंतिम वर्ष में बढ़कर 42 फीसदी तक बढऩे दिया जबकि वर्ष 2004-05 में यह सकल कर संग्रह का 17.5 फीसदी ही था। मोदी सरकार के आने के बाद कर बकाये की बढ़त पर लगाम लगी लेकिन इसने उसे नीचे लाने की खास कोशिश नहीं की। यह 2015-16 में 45 फीसदी से भी अधिक बढ़ गया। निश्चित रूप से, कुछ कदमों से बकाया कर में 2016-17 के दौरान 43 फीसदी और 2017-18 में 38 फीसदी की तीव्र गिरावट आई थी लेकिन 2018-19 में यह एक बार फिर से 45 फीसदी से अधिक बढ़ गया।
हमें ध्यान रखना होगा कि इस बकाये कर का बड़ा हिस्सा प्रत्यक्ष कर विवादों की वजह से है। सकल कर संग्रह में गैर-विवादित प्रत्यक्ष कर मामलों के चलते बकाये कर का हिस्सा पिछले 10 वर्षों में कमोबेश अपरिवर्तित रहा है। वर्ष 2009-10 में यह 6.88 फीसदी था जबकि 2018-19 में यह 6.66 फीसदी रहा। यह समस्या खड़ी होने की मुख्य वजह यह रही है कि सकल कर संग्रह में विवादित कर मामलों का हिस्सा इस दौरान 11 फीसदी से बढ़कर 39 फीसदी बढ़ गया। हालांकि कर विभाग को एक ऐसी व्यवस्था कायम करने पर ध्यान देना चाहिए जो विवाद न खड़े करती हो और मौजूदा विवादों को कई वर्षों तक लटकाने की इजाजत न दे। 'विवाद से विश्वास' योजना से सरकार को एकबारगी कर राजस्व का पुलिंदा मिल सकता है। लेकिन महज एक बार होने वाले विनिवेश प्राप्तियों की तरह यह लाभ भी तब तक कायम नहीं रहेगा जब तक कराधान प्रणाली में टिकाऊ सुधार नहीं लागू किए जाते हैं और विवादों का जल्द समाधान नहीं तलाशा जाता है।
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