आप को 'आईपैक' की रणनीति का साथ | |
साई मनीष / 02 16, 2020 | | | | |
► प्रशांत किशोर की अगुआई वाली आईपैक ने दिल्ली चुनाव अभियान में अपना काम गत वर्ष जून में ही शुरू कर दिया था
► आईपैक ने आंध्र प्रदेश में सफलतापूर्वक चुनाव अभियान चलाकर अपने ग्राहक जगन मोहन रेड्डी को भारी जीत दिलाने में अहम भूमिका निभाई थी
► किशोर की टीम ने दिसंबर में चुनाव रणनीति तैयार करते समय हरेक विधानसभा में ऐसे 200 लोगों की शिनाख्त की थी जो मतदाताओं को प्रभावित करने की क्षमता रखते थे
दिसंबर 2019 में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने यह घोषणा की थी कि इंडियन पोलिटिकल ऐक्शन कमेटी (आईपैक) के प्रमुख प्रशांत किशोर फरवरी में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए आम आदमी पार्टी के चुनाव अभियान की रणनीति तैयार करेंगे। हालांकि सच तो यह है कि आईपैक ने दिल्ली चुनाव अभियान में अपना काम गत वर्ष जून में ही शुरू कर दिया था। उसके एक महीने पहले ही आईपैक ने आंध्र प्रदेश में सफलतापूर्वक चुनाव अभियान चलाकर अपने ग्राहक जगन मोहन रेड्डी को भारी जीत दिलाने में अहम भूमिका निभाई थी। जगन की पार्टी वाईएसआर कांग्रेस ने 86 करोड़ रुपये के अपने चुनाव व्यय का करीब आधा हिस्सा परामर्श शुल्क के तौर पर आईपैक को दिया था।
आंध्र प्रदेश में सफल अभियान के बाद आईपैक ने दिल्ली पर ध्यान केंद्रित किया और कुछ ही समय में उसके कर्मचारी दिल्ली की सभी 70 विधानसभा सीटों तक फैल गए। इसका मकसद यह था कि उस विधानसभा क्षेत्र के मतदाताओं के बारे में जानकारी जुटाई जाए और उनके मिजाज को अच्छी तरह परखा जा सके। आईपैक की टीम ने केजरीवाल सरकार के कामकाज को लेकर एक-एक विधानसभा के लोगों की राय जानने की कोशिश की। दिल्ली में लगी आईपैक टीम के एक सदस्य ने कहा, 'हमारे सर्वेक्षणों के मुताबिक, दिल्ली के अधिकतर लोगों को यह लग रहा था कि आम आदमी पार्टी ने पिछले पांच साल में उनके लिए काम किया है। आम धारणा यही थी कि केजरीवाल ने पांच साल में कुछ तो काम किया है।'
इस पहल का ही नतीजा रहा कि केजरीवाल ने आईपैक के साथ गठजोड़ की दिसंबर में आधिकारिक घोषणा की। हालांकि यह साफ नहीं है कि खुद प्रशांत किशोर ने आप की जीत की संभावना देखते हुए केजरीवाल से संपर्क साधा था या फिर इसका उलटा हुआ था। लेकिन चुनाव के दो महीने पहले चुनावी रणनीति बनाने का जिम्मा मिलने के बाद आईपैक ने बारीक चुनाव रणनीति तैयार की और आप के जमीनी कार्यकर्ताओं ने उसे पूरी क्षमता से उसे लागू किया। इस बारे में टिप्पणी के लिए जब प्रशांत किशोर से संपर्क साधने की कोशिश की गई तो वह उपलब्ध नहीं थे।
आप के सह-संस्थापक राहुल मेहरा कहते हैं, 'इस बार के चुनाव में दो बातें अलग थीं। सोशल मीडिया अभियान नए तरह के संदेशों से भरा था जो न केवल आप के समर्थकों बल्कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के समर्थकों की भी सोच को प्रभावित कर रहा था। दूसरा, अभियान में एक फील-गुड वाला पहलू भी था क्योंकि इसमें केवल इस पर जोर था कि पिछले पांच वर्षों में आप ने क्या किया है और दोबारा चुने जाने पर वह क्या-क्या करेगी? केजरीवाल ने भाजपा की विभाजनकारी तरकीबों में उलझने से परहेज किया और अपनी चुनावी रणनीति पर ही टिके रहे।'
किशोर की टीम ने दिसंबर में चुनाव रणनीति तैयार करते समय हरेक विधानसभा में ऐसे 200 लोगों की शिनाख्त की थी जो मतदाताओं को प्रभावित करने की क्षमता रखते थे। इन असरदार लोगों का समर्थन हासिल करने पर पार्टी ने ध्यान केंद्रित किया। ये लोग अतीत में किसी राजनीतिक दल से नहीं जुड़े थे और अपने इलाके में सामाजिक कार्यों में उनकी संलिप्तता के आधार पर उन्हें इस काम के लिए चुना गया था। ऐसे करीब 15,000 असरदार लोगों की पहचान की गई और उन्हें अपने-अपने इलाकों में मतदाताओं के संपर्क में रहते हुए केजरीवाल के काम एवं सोच का प्रचार-प्रसार करने का काम सौंपा गया।
इस परियोजना पर काम कर रहे आईपैक के हरेक सदस्य को दो-दो विधानसभा क्षेत्रों की रणनीति बनाने का काम सौंपा गया था। हरेक विधानसभा के सभी वार्डों को पांच मोहल्लों में बांटा गया और फिर उसके हिसाब से आईपैक को लोगों की उम्मीदों के मुताबिक रणनीति बनाने को कहा गया। दिल्ली चुनाव में काम कर चुके एक आईपैक कर्मचारी कहते हैं, 'हम दिसंबर से ही रोजाना करीब 15-16 घंटे काम कर रहे थे। इस दौरान हम हर दिन सैकड़ों लोगों से मिलकर अपनी रिपोर्ट तैयार करते थे।' लोगों की आकांक्षाओं पर आधारित इन रिपोर्टों को ही आधार बनाते हुए केजरीवाल की शख्सियत को केंद्र में रखते हुए चुनाव अभियान की रणनीति एवं नारों को गढ़ा गया। लोगों की राय के ही आधार पर पार्टी ने जनवरी के मध्य में 'लगे रहो केजरीवाल' का चुनावी नारा दिया था।
प्रशांत किशोर की अगुआई वाले आईपैक के रचनात्मक प्रमुखों ने यह गाना लिखा था और बॉलीवुड के मशहूर संगीतकार एवं आप समर्थक विशाल ददलानी ने इसका संगीत तैयार करने के साथ इसे गाया भी था। चुनाव अभियान के जोर पकडऩे के साथ ही यह गाना समूची दिल्ली में गूंजने लगा। ऐसे में मतदान के महज दस दिन पहले आईपैक ने एक और जिंगल 'अच्छे थे पांच साल, लगे रहो केजरीवाल' जारी किया। इसके पीछे रणनीतिकारों की सोच यह थी कि दिल्ली के मतदाता केजरीवाल के पिछले काम को देखते हुए उन्हें इनाम के तौर पर एक और कार्यकाल के लिए चुनें।
केजरीवाल की तरफ से जारी गारंटी कार्ड और पॉकेट कैलेंडर को दिल्ली के लाखों घरों में बांटा गया। आप ने वर्ष 2017 के गोवा विधानसभा चुनाव में भी हर घर तक गारंटी कार्ड पहुंचाने की रणनीति अपनाई थी लेकिन वह एक भी सीट नहीं जीत पाई थी। बहरहाल दिल्ली के गारंटी कार्ड में आप ने लोगों से 10 वादे किए हैं जिनमें मुफ्त बिजली एवं पानी देना जारी रखने को कहा गया है। आईपैक के एक कर्मचारी कहते हैं, 'दिल्ली और अन्य राज्यों के चुनाव की हमारी रणनीति में फर्क यह रहा है कि यहां पर आप कार्यकर्ताओं ने ही हमारी तरफ से तैयार योजना को अमलीजामा पहनाया जबकि बाकी जगहों पर हमें वालंटियरों की सेवाएं लेनी पड़ती थीं।'
दिल्ली चुनाव में आप को मिली शानदार कामयाबी में आईपैक जैसी सलाहकार कंपनी की भूमिका काफी अहम रही है। हालांकि राजनीतिक विश्लेषक के नागेश्वर का मानना है कि कोई भी सलाहकार फर्म जमीनी हकीकत को नहीं बदल सकती है। वह कहते हैं, 'हालांकि ऐसी राजनीतिक सलाहकार फर्म कड़े मुकाबलों में अपने ग्राहकों के लिए फर्क पैदा कर सकती हैं। प्रचार एवं संचार की विशिष्ट रणनीति का असर पड़ता है। लेकिन दिल्ली में आप और भाजपा के बीच मत हिस्सेदारी में 15 फीसदी से भी अधिक का फासला था। इस तरह आप की बड़ी जीत में आईपैक की भूमिका उतनी अहम नहीं है।' नागेश्वर का मानना है कि जमीनी कार्यकर्ताओं से मिलने वाले फीडबैक के बावजूद दल ऐसी सलाहकार फर्मों का इस्तेमाल कर रहे हैं। वह कहते हैं, 'जनता के मिजाज के बारे में दलों का अंदरूनी फीडबैक अक्सर पक्षपातपूर्ण होता है और पार्टी के भीतर सत्ता के भूखे नेता इसका बेजा इस्तेमाल अपने फायदे के लिए कर सकते हैं। ऐसी स्थिति में आईपैक जैसी फर्म से मिला स्वतंत्र फीडबैक अहम हो जाता है।'
प्रशांत किशोर की अगुआई वाली राजनीतिक सलाहकार फर्म आईपैक दिल्ली का किला फतह करने के बाद अब अपना ध्यान पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु पर लगाने जा रही है। अगले साल की गर्मियों में इन दोनों राज्यों में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी जहां लगातार तीसरी बार सत्ता में आने के लिए किशोर की सेवाएं ले रहीं हैं वहीं द्रमुक प्रमुख एम के स्टालिन ने तमिलनाडु की सत्ता पर काबिज होने के लिए आईपैक से संपर्क साधा है।
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