कोरोनावायरस के माहौल में निवेश में इजाफा बेहतर कदम | पुनीत वाधवा / February 16, 2020 | | | | |
चीन में पिछले कुछ हफ्तों में कोरोनावायरस के प्रकोप से विश्व व्यापार प्रभावित हुआ है और उसने वैश्विक वित्तीय बाजार को चोट पहुंचाई है। लंदन के अशमोर ग्रुप के शोध प्रमुख जॉन डेन ने पुनीत वाधवा को दिए साक्षात्कार में कहा कि निवेशकों को इस स्थिति का इस्तेमाल एशियाई इक्विटी में अपनी पोजीशन में इजाफे के लिए करना चाहिए। पेश हैं बातचीत के मुख्य अंश...
क्या आप कोरोनावायरस के कारण इक्विटी में आई गिरावट का इस्तेमाल उनमें अपना आवंटन मजबूत बनाने में कर रहे हैं?
हम कोरोनावायरस के डर का इस्तेमाल पोजीशन बढ़ाने में कर रहे हैं। यह वायरस फैलेगा, सर्वोच्च स्तर पर पहुंचेगा और फिर नीचे आ जाएगा। इस क्रम में हालांकि घबराहट का माहौल होगा, अनावश्यक बिकवाली होगी और परिसंपत्तियों की कीमत उनकी उचित कीमत से नीचे आ जाएगी। इनमें तब खरीदारी होगी जब वायरस पर लगाम कसी जाएगी। प्रोफेशनल इन्वेस्टर इसके विपरीत कदम उठाते हैं।
आप अभी भारत को कैसे देखते हैं?
भारत अभी ज्यादा राजकोषीय घाटे और बढ़ती महंगाई के चरण में प्रवेश कर गया है, जिसने भारतीय रिजर्व बैंक को नीतिगत दरें उम्मीद से ऊंची रखने को बाध्य किया। ज्यादा वित्तीय जरूरत से ज्यादा उधारी देखने को मिलती है, लेकिन सरकार अभी भारतीय बॉन्ड बाजार विदेशी के लिए खोलने का साहस नहीं जुटा पाई है। ढुलमुल राजकोषीय नीति से दरें बढ़ती हैं और यह निजी निवेश और कारोबारी भरोसे के लिए खराब होती है।
क्या अन्य बाजार अनुकूल नजर आ रहे हैं?
चुनावी कारणों से राजकोष पर पड़े बोझ के बाद भारत को अब राजकोषीय खर्च को वापस पटरी पर लाने और सुधार पर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है। लेकिन लगता है कि नरेंद्र मोदी के प्रशासन के पास विचारों का अभाव है। यह सरकार सार्वजनिक बैंकों को दुरुस्त नहीं कर पा रही और विदेशी निवेशकों के लिए पूरी तरह नहींं खोल पा रही। दूसरे देशों में बेहतर मौके हैं, जहां मूल्यांकन अपेक्षाकृत आकर्षक है और परिदृश्य को ढांचागत बदलाव की मजबूत प्रतिबद्धता का सहारा मिला हुआ है। इन देशों में चीन और दक्षिण अमेरिका के कुछ हिस्से शामिल हैं।
राजकोषीय स्थिति खराब होने पर क्या बाजार कड़ी प्रतिक्रिया जताएगा?
राजस्व को लेकर बजट का अनुमान कुछ हद तक ज्यादा साहसिक है। सरकार ज्यादा विज्ञप्तियां जारी कर रही है और एकबारगी के राजकोषीय कदम पर ज्यादा भरोसा कर रही है। यह बजट की गुणवत्ता में कमी ला रहा है। मध्यम अवधि का अनुमान हालांकि कम घाटे की ओर लौटने का संकेत देता है, लेकिन इस लक्ष्य को हासिल करने को लेकर काफी अनिश्चितताएं हैं। बाजार राजकोषीय कमजोरी का स्वागत नहीं करेगा। पिछली कांग्रेस सरकार के गिरने की वजह राजकोषीय उदारता थी और अब मोदी उसी राह पर बढ़ते दिख रहे हैं।
क्या बाजार अपने फंडामेंटल से आगे है?
हां, ऐसा है। मैं वैसी इक्विटी निवेश रणनीति की ओर जाऊंगा और सावधानीपूर्वक उन क्षेत्रों की पहचान करूंगा जिसे मौजूदा राजकोषीय व मौद्रिक नीति से फायदा होगा। फिर इन क्षेत्रों में काफी बड़ी, लिक्विड और सस्ती कंपनियों की पहचान करूंगा और बाकी छोड़ दूंगा।
अगर वित्त वर्ष 2021 में कंपनियों की आय निराशाजनक रही तो क्या बाजार टूटेगा?
मैं आय को लेकर सहज नहीं हूं और दूसरी जगह मजबूत भरोसा देख रहा हूं। उदाहरण के लिए देसी इक्विटी के मुकाबले एशियाई सेमीकंडक्टर कंपनी ज्यादा आकर्षक नजर आ रही हैं, लेकिन उन्हें उपयोगी एंट्री पॉइंट के तौर पर देखा जाना चाहिए। कोरोनावायरस धीरे-धीरे खत्म हो जाएगा। निवेशकों को इस स्थिति का इस्तेमाल एशियाई इक्विटी में अपनी पोजीशन की मजबूती में करना चाहिए।
क्या हालिया नीतिगत प्रस्ताव ने वित्तीय क्षेत्र से संबंधित मसलों का समाधान कर दिया है?
नहीं, इन समस्याओं का निदान नहीं हुआ है। विशेष समूह के लिए सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक अवैध कार्य के लिए रखा हुआ धन है। ये अंतत: राजकोषीय बोझ बनते हैं और अर्थव्यवस्था को धराशायी कर देते हैं। इसे बंद किया जाना चाहिए। हालांकि यह कुछ सामाजिक जरूरतें पूरी करने और बाजार की नाकामियों को दूर करने की सीमा तक सेंट्रल डेवलपमेंट बैंक का इस्तेमाल अवैध कार्यों के लिए रकम लेने के चलन की समाप्ति के लिए करना होगा। उन्हें बंद किए बिना समस्या दोबारा उभरेगी।
विनिवेश के एजेंडे को देखते हुए सूचीबद्ध सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों के शेयर अगले 12 महीने में कैसा प्रदर्शन करेंगे?
यह सकारात्मक प्रगति है। सरकारी कंपनियों का आकार घटाने और उनकी गतिविधियां निजी क्षेत्र के नियंत्रण में देने के मामले में भारत को लंबा सफर तय करना है। हालांकि राजकोषीय नीति का आधार विनिवेश पर बनाना अच्छा नहीं है। विनिवेश से एकबारगी राजस्व मिलता है, जो मौजूदा राजकोषीय घाटे का वित्त पोषण नहींं कर सकता।
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