बीमा दावे के लिए बाढ़ में बारिश भी शामिल | एमजे एंटनी / February 09, 2020 | | | | |
भारी बारिश के साथ संपत्ति को हुए नुकसान को साधारण बीमा नीति में बाढ़ और सैलाब की परिभाषा में शामिल किया गया है। उच्चतम न्यायालय ने ओरियंटल इंश्योरेंस कंपनी की दलील को खारिज करते हुए यह व्यवस्था दी है। कंपनी का कहना था कि यह बीमा नीति के दायरे से बाहर है। उसकी दलील थी कि भारी और असाधारण बारिश से हुआ नुकसान बीमित नहीं है। दरअसल भारी बारिश के कारण आई बाढ़ से जेके सीमेंट वक्र्स का नीमबेहरा में रखा कोयला भंडार बरबाद हो गया था। बाढ़ और सैलाब की पेचीदा दलील पर बीमा कंपनी ने दावे को खारिज कर दिया।
बीमा कंपनी को जिला उपभोक्ता फोरम से लेकर राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग तक शिकस्त का सामना करना पड़ा। न्यायालय ने भी उसके दावों को खारिज करते हुए कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि उस इलाके में भारी बारिश हुई थी जिससे बाढ़ जैसे हालात पैदा हो गए थे। इससे कंपनी के परिसरों में रखा कोयला खराब हो गया। सर्वेयर की रिपोर्ट में भी कहा गया था कि भारी बारिश के कारण वहां पानी जमा हो गया था जिससे खराब हो गया। न्यायालय ने ओरियंटल को नौ फीसदी ब्याज के साथ 58.89 लाख रुपये का हर्जाना देने का निर्देश दिया।
बीमा कंपनी को चोरी की रिपोर्टिंग में देरी
उच्चतम न्यायालय ने वाहन चोरी की सूचना देरी से बीमा कंपनी को देने के सवाल पर दो न्यायाधीशों के मतभेदों को सुलझाते हुए कहा है कि इस तरह की देरी दावे को खारिज करने के लिए आधार नहीं हो सकती है। न्यायालय ने गुरशिंदर सिंह बनाम श्रीराम जनरल इंश्योरेंस कंपनी वाद में यह व्यवस्था दी। सिंह का ट्रैक्टर चोरी हो गया था। उन्होंने पुलिस में शिकायत दर्ज की लेकिन वाहन का पता नहीं चल पाया। उन्होंने बीमा कंपनी में दावा किया लेकिन 52 दिन की देरी का हवाला देकर इसे खारिज कर दिया गया। उपभोक्ता फोरमों और राष्ट्रीय आयोग ने भी इसी आधार पर दावे को खारिज कर दिया। लेकिन उच्चतम न्यायालय ने उनके फैसले को पलटते हुए कहा कि जब किसी बीमित व्यक्ति ने चोरी के तुरंत बाद प्राथमिकी दर्ज कर ली है और पुलिस ने जांच के बाद अंतिम रिपोर्ट दे दी है कि वह वाहन खोजने में नाकाम रही है और जब बीमा कंपनी द्वारा नियुक्त सर्वेयर ने वाहन चोरी के दावे को सही पाया है तो बीमा कंपनी को सूचना में देरी दावे को खारिज करने का आधार नहीं हो सकता है।
पट्टे की जमीन : पेट्रो कंपनियों की हार
उच्चतम न्यायालय ने सार्वजनिक क्षेत्र की तीन पेट्रोलियम कंपनियों की अपील को खारिज कर दिया है जो चाहती थीं कि अदालत भूमालिकों को उन्हें पट्टे की जमीन बेचने का निर्देश दे। इन कंपनियों ने बहुत पहले पेट्रोल पंप बनाए थे और डीलरशिप समझौते के तहत उन्हें डीलरों को दिया था। डीलरों को दी गई जमीन का वास्तविक कब्जा कंपनियों के पास नहीं था। पट्टे में समयसीमा का कोई उल्लेख नहीं था। कंपनियां चाहती थीं कि न्यायालय जमीन की कीमत तय करे और भूखंड उन्हें बेच दे। भारत पेट्रोलियम कॉरपोरेशन लिमिटेड, इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन और हिन्दुस्तान पेट्रोलियम कॉरपोरेशन ने अपने दावे को सही ठहराने के लिए मद्रास शहर किरायेदार संरक्षण अधिनियम का सहारा लिया। इससे पहले मद्रास उच्च न्यायालय ने उनकी याचिका को खारिज कर दिया था क्योंकि जमीन का वास्तविक कब्जा उनके पास नहीं था लेकिन उन्होंने इसे डीलरों को दिया था। उच्चतम न्यायालय ने इसे सही ठहराया।
गिफ्ट वाउचर के साथ जुड़ी हैं शर्तें
कंपनियों द्वारा दिए जाने वाले उपहारों के साथ शर्तें जुड़ी होती हैं। टुडे मर्केंडाइज बनाम अनिल कुमार वाद में उच्चतम न्यायालय के फैसले में एक बार फिर यह बात साबित हुई है। कंपनी ने अपनी वेबसाइट पर हॉलिडे वाउचर का प्रचार किया था कि इससे खरीदारों को लैपटॉप, सेलफोन और एलईडी टीवी जैसे उपहार मिलेंगे। इसके साथ कुछ शर्तें भी जोड़ी गई थीं। इस खरीदार ने तीन वाउचर खरीदे और इन पर उपहार का दावा किया। कपंनी ने दावे को खारिज कर दिया क्योंकि वह शर्तों को पूरा नहीं करता था। खरीदार ने उपभोक्ता फोरम का दरवाजा खटखटाया और यह दलील दी कि निराशा के कारण उसे मानसिक प्रताडऩा हुई है।
फोरम ने उनकी दलील को मान लिया। मुआवजे के आदेश के खिलाफ कंपनी की अपील खारिज हो गई। लेकिन अपनी अंतिम अपील में कंपनी अपने खिलाफ सभी आदेशों को पलटने में सफल रही। उच्चतम न्यायालय ने कहा कि दूसरी शर्तें पूरी किए बिना केवल वाउचर खरीदने से ही खरीदार उपहारों का हकदार नहीं बन जाता है।
अनुबंध मध्यस्थता में सरकार की हार
दिल्ली उच्च न्यायालय ने जी1 लिटमस इवेंट्स लिमिटेड के खिलाफ विवाद में पंचाट के फैसले को चुनौती देने वाली युवा मामलों के मंत्रालय की अपील दूसरी बार खारिज कर दी है। यह विवाद दिल्ली में करीब 10 साल पहले हुए राष्ट्रमंडल खेलों में दिए गए ठेकों से जुड़ा है।
कंसोर्टियम ने बकाये का भुगतान नहीं किए जाने की शिकायत की थी और पंचाट का फैसला सरकार के खिलाफ आया था। सरकार ने पिछले साल इसके कुछ हिस्सों को सितंबर में इसे चुनौती दी और अधिकांश में उसे हार का सामना करना पड़ा। अब बाकी हिस्सों में भी उसे हार का सामना करना पड़ा है क्योंकि दिल्ली उच्च न्यायालय ने उसकी दलीलों को खारिज कर दिया है।
सरकार ने दलील थी कि अनुबंध के तहत उसकी मुआवजा और ब्याज देने की जिम्मेदारी नहीं थी। न्यायालय ने इस दलील को खारिज कर दिया और कहा कि पंचाट ने पाया कि कंपनी को यह राशि पाने का अधिकार था और इसके लिए पर्याप्त सबूत भी रखे गए थे। लेकिन उसे अवैध रूप से इससे वंचित रखा गया। न्यायालय ने साथ ही कहा कि पंचाट के फैसलों के खिलाफ अपील में उसकी भूमिका सीमित है।
विक्रेताओं की मुकदमेबाजी
दिल्ली उच्च न्यायालय के एक खंडपीठ ने विक्रेताओं के एक पक्ष के खिलाफ लगाई गई रोक हटा दी है। एकल पीठ ने यह पाबंदी लगाई थी। दावा किया जा रहा था कि यह पक्ष सीधे ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म पर बिक्री कर रहा है। एमेजॉन सेलर सर्विसेज ने एमवे इंडिया एंटरप्राइजेज, ओरिफ्लेम इंडिया और मोदीकेयर लिमिटेड के खिलाफ तीन अपील दायर की थीं। इनमें से दो अपील क्लाउडटेल इंडिया लिमिटेड ने क्रमश: एमवे और ओरिफ्लेम के खिलाफ की थी।
एक अपील स्नैपडील ने एमवे के खिलाफ की थी। इसमें विवाद यह था कि एमवे के उत्पाद विभिन्न ऑनलाइन पोर्टल या मोबाइल ऐप के जरिये बेचे जा रहे थे। थोक और खुदरा दुकानें अवैध तरीके से छूट दे रही थीं जिससे एमवे के उत्पाद बेचने वाले विक्रेताओं की बिक्री में कमी आ रही थी। यह आरोप भी था कि इस तरह के अवैध विक्रेता एमवे के उत्पादों पर प्रकाशित विशेष कोड को हटा रहे थे ताकि उन्हें पकड़ा न जा सके। एकल न्यायाधीश ने पाया कि इसमें अनुबंध का उल्लंघन हुआ था। खंडपीठ ने कहा कि विपक्षी पक्षों के खिलाफ प्रथम दृष्टïया कोई मामला नहीं है।
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