करदाता चार्टर से भर पाएगी भरोसे की खाई? | ऐश्ली कुटिन्हो और सुदीप्त दे / February 09, 2020 | | | | |
बजट में आयकर अधिनियम में एक नई धारा जोडऩे का प्रस्ताव रखा गया है जो केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) को एक करदाता का चार्टर अपनाने एवं घोषित करने के लिए अधिकृत करता है। आयकर अधिनियम में नई धारा 119ए जोड़े जाने के बाद सीबीडीटी के पास आयकर अधिकारियों को दिशानिर्देश और आदेश जारी करने की शक्ति मिल जाएगी। अगर इस बजट प्रस्ताव को संसद की स्वीकृति मिल जाती है तो नई व्यवस्था 1 अप्रैल से लागू हो जाएगी।
भारत को अक्सर घरेलू एवं बाहरी करदाता एक आक्रामक कर नियमन वाले देश के तौर पर देखते रहे हैं। ऐसे में करदाताओं के लिए तैयार चार्टर को इस कानून का हिस्सा बनाने से करदाताओं का भरोसा बहाल करने में मदद मिल सकती है। हालांकि बाजार से जुड़े लोगों को लगता है कि इस चार्टर का प्रभाव इस बात पर निर्भर करेगा कि इसे किस तरह तैयार एवं लागू किया जाता है?
बीएमआर लीगल के प्रबंध निदेशक मुकेश बुटानी कहते हैं कि एक करदाता चार्टर का कानून में प्रावधान होना आयकर विभाग की वेबसाइट पर उल्लिखित सिटिजंस चार्टर से काफी आगे की बात है। सिटिजंस चार्टर में भी पारदर्शिता एवं सेवा मानदंडों के लिए सामान्य सिद्धांतों का उल्लेख है लेकिन उसमें असरकारी क्षमता की कमी है। ऐसे में नए चार्टर को तैयार करते समय कानून-निर्माताओं को करदाताओं के प्रति एक तरह की जवाबदेही दिखानी चाहिए। बुटानी का मानना है कि करदाता चार्टर में कर विवरण सूचना की निजता, कारोबार संबंधी आंकड़ों की गोपनीयता और औपचारिक समाधान प्रक्रिया से इतर एक शिकायत निपटान प्रणाली को भी शामिल किया जाना चाहिए।
बुटानी कहते हैं, 'भारत में अदालतों ने एक समृद्ध प्रणाली तय की हुई है ताकि अधिकारी न्यायपूर्ण ढंग से आचरण करें। अगर इन अधिकारों का हनन होता है तो अधिकारियों के भीतर जवाबदेही की भावना लाने की भी जरूरत है। इस लक्ष्य को करदाता चार्टर से ही हासिल किया जा सकता है।' आरएसएम इंडिया के संस्थापक सुरेश सुराना का मानना है कि चार्टर के भीतर क्रियान्वयन में एकरूपता रखी जानी चाहिए ताकि प्रशासनिक विवेक की गुंजाइश ही न रहे और इसका अनुपालन न होने पर वैधानिक उपचार का भी प्रावधान हो।
अद्वैत लीगल के वरिष्ठ प्रमुख (प्रत्यक्ष कर मामला) अरिजीत चक्रवर्ती कहते हैं कि एक चार्टर भले ही करदाता को अधिकार दे देगा लेकिन उसके प्रभावी होने के लिए लोगों की मानसिकता में बदलाव भी जरूरी है। चक्रवर्ती कहते हैं, 'अभी तक का हमारा अनुभव इसके ठीक उलट है। करदाताओं को संदेह की नजर से देखा जाता है, उठने वाले मुद्दे कभी भी अंतिम मुकाम तक नहीं पहुंच पाते हैं, एक कारगर निपटान व्यवस्था का अभाव है और सबसे अहम, उठाए गए कदम के लिए जवाबदेही की कमी है।'
जानकारों का कहना है कि दुनिया भर में 40 से अधिक देशों में ऐसे ही करदाता चार्टर बने हुए हैं। ब्राजील और इटली जैसे देशों में यह चार्टर कानून का हिस्सा है जबकि ऑस्ट्रेलिया और कनाडा जैसे देशों में चार्टर को विधिक संरक्षण नहीं मिला है। ट्रांजैक्शन स्क्वायर के संस्थापक गिरीश वनवारी को लगता है कि इस चार्टर का प्रभाव इस पर निर्भर करेगा कि यह आयकर अधिनियम के प्रशासकीय पहलुओं पर किस तरह असर डालता है और करदाताओं की आक्रामक कर योजना एवं राजस्व अधिकारियों की कर आक्रामकता के बीच किस तरह संतुलन साधता है? वनवारी कहते हैं, 'यह देखना भी रोचक होगा कि यह चार्टर अधिनियम में पहले से ही मौजूद विवाद निपटान प्रणाली के भीतर किस तरह काम करता है?'
कानूनी जानकारों का मानना है कि नए चार्टर में कई बिंदुओं को स्पष्ट रूप से उल्लिखित किए जाने की जरूरत है। मसलन, तलाशी लेने या सम्यक रूप से अधिकृत जांच को छोड़कर समन जारी करने या कर प्रक्रिया चलने पर विशिष्ट मुद्दों का जिक्र करते हुए एक पूर्व-नोटिस व्यवस्था की जरूरत है। सुराना कहते हैं कि समन जारी होने, तलाशी या सर्वे के दौरान करदाताओं को अपने कानूनी या कर सलाहकार साथ रखने का अधिकार मिलना चाहिए। इसी तरह बयान दर्ज कराते समय भी यह व्यवस्था होनी चाहिए। इसके अलावा एक तय समय से अधिक पूछताछ चलने पर करदाताओं के पास निजता का अधिकार और दवा लेने, पूजा करने, सोने और आकस्मिक जरूरतों के लिए भी छूट मिलनी चाहिए।
मनोहर चौधरी ऐंड एसोसिएट्स के पार्टनर अमित पटेल कहते हैं, 'अपीलों के निपटारे की समय-सीमा तय की जानी चाहिए। मसलन, अगर मैं आयकर आयुक्त के समक्ष कोई अपील करता हूं और उसकी सुनवाई दो-तीन या पांच साल में नहीं होती है तो फिर यह एक समस्या है।'
शार्दूल अमरचंद मंगलदास के पार्टनर अभय शर्मा चाहते हैं कि कर प्रमाण-पत्र जारी करने की एक तय समय-सीमा रखी जाए और जुर्माना लगाने की परिपाटी पर रोक लगाई जाए, बशर्ते कि करदाता ने कर चोरी की हो। वह कहते हैं, 'एक कर मामले में शीर्ष अदालत की तरफ से निर्धारित सिद्धांतों को लागू करने से इनकार करने को हतोत्साहित या रोक लगानी चाहिए। दो तरह के विचार होने पर करदाता के लिए लाभप्रद सोच ही लागू करने का सिद्धांत आत्मसात करना होगा।'
ईवाई इंडिया के राष्ट्रीय कर प्रमुख सुधीर कपाडिय़ा की मानें तो एक चार्टर को तथ्यों एवं परिस्थितियों के संदर्भ में लागू करने की जरूरत है लेकिन कानून में सभी संभव व्यावहारिक स्थितियों के लिए एक बहुद्देशीय प्रावधान कर पाना मुश्किल होगा। वह कहते हैं, 'इस तरह के चार्टर का मुख्य उद्देश्य ही यह है कि वरिष्ठ कर अधिकारियों के हाथों उत्पीडऩ होने पर करदाता इन दिशानिर्देशों का हवाला दे सकें। अपीली अधिकरणों और अदालतों में मामला जाने पर भी करदाता इनका उल्लेख कर सकते हैं।'
वनवारी का मानना है कि घरेलू एवं विदेशी दोनों स्तरों पर कराधान परिदृश्य में मौजूदा प्रवाह को देखते हुए यह चार्टर लागू करने का वक्त अहम होगा। वह कहते हैं, 'भारत डिजिटलीकरण और ई-आकलन के संक्रमण काल से गुजर रहा है। इसके साथ आयकर अधिनियम में नियंत्रण एवं संतुलन भी लगातार बढ़ रहा है। सामान्य करवंचना-रोधी नियम, नोटबंदी और डिजिटल प्रयोग से कर चोरी रोकने की कोशिशें हुई हैं। ऐसी स्थिति में करदाता चार्टर लाने के पहले समुचित विमर्श की जरूरत है।'
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