एसऐंडपी बीएसई 500 सूचकांक में शामिल करीब 60 कंपनियां अपने बहीखाते में शेयरधारकों को 88,600 करोड़ रुपये की अतिरिक्त रकम लौटा सकती हैं। यह रकम 31 मार्च 2019 को उनके बहीखाते पर दर्ज कुल रकम का महज एक तिहाई है। गवर्नेंस फर्म इंस्टीट्यूशनल इन्वेस्टर एडवाइजरी सर्विसेज (आईआईएएस) के एक ताजा अध्ययन से यह खुलासा हुआ है। यह आकलन वित्त वर्ष 2018-19 के वित्तीय नतीजों पर आधारित है।
इन 60 कंपनियों में करीब एक तिहाई बहुराष्ट्रीय कंपनियां (एमएनसी) हैं। ये कंपनियां अपने शेयरधारकों की कुल नकदी का करीब 52 फीसदी हिस्सा लौटा सकती हैं। आईआईएएस की रिपोर्ट में कहा गया है कि इनमें 10 कंपनियां ऐसी हैं जो 31 मार्च 2019 को अपने बहीखाते पर उपलब्ध नकदी में से 75 फीसदी रकम वितरित कर सकती हैं। सूची में शामिल प्रमुख बहुराष्ट्रीय कंपनियों में हिंदुस्तान यूनिलीवनर (एचयूएल), एसीसी, ऐबट इंडिया, नेस्ले, फाइजर और ग्लैक्सोस्मिथक्लाइन कंज्यूमर हेल्थकेयर हैं।
आईटी कंपनियां शीर्ष पर
अध्ययन में कहा गया है कि 88,600 करोड़ रुपये में से केवल पांच कंपनियां शेयरधारकों को 46,300 करोड़ रुपये का भुगतान कर सकती हैं। प्रमुख सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) कंपनी इन्फोसिस इस सूची में सबसे ऊपर है जो 15,570 करोड़ रुपये का भुगतान कर सकती हैं। इसके बाद विप्रो और फिर टाटा कंसल्टैंसी सर्विसेज (टीसीएस) का स्थान है। अन्य दो कंपनियों में प्रमुख एफएमसीजी कंपनी आईटीसी लिमिटेड और एसबीआई लाइफ इंश्योरेंस शामिल हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि वित्त वर्ष 2019 में इन 60 कंपनियों के समेकित कर बाद मुनाफे में सालाना आधार पर 13.4 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई जबकि बीएसई 500 कंपनियों के एकीकृत कर बाद मुनाफे में इस दौरान महज 0.3 फीसदी की वृद्धि हुई।
आईआईएएस ने कहा है, 'इस सूचकांक में 60 कंपनियों का प्रदर्शन (लाभप्रदता के आधार पर) जबरदस्त रहा जबकि इनमें से लगभग आधी कंपनियों के इक्विटी पर रिटर्न (आरओई) में एक साल पहले के मुकाबले वित्त वर्ष 2019 के दौरान गिरावट आई। ऐसे में उनके बोर्ड को पूंजी आवंटन की समीक्षा करने के बाद अतिरिक्त रकम शेयरधारकों को लौटाना चाहिए।'
आईआईएएस ने 2018 में इसी तरह के एक अध्ययन में उन 92 कंपनियों का संकलन किया था जो 34,000 करोड़ रुपये अधिक लाभांश का भुगतान कर सकती थीं। अध्ययन के बाद करीब एक दर्जन कंपनियों ने पुनर्खरीद के जरिये अपने शेयरधारकों को 37,200 करोड़ रुपये लौटाए जिनमें टीसीएस और इन्फोसिस भी शामिल थीं।
लाभांश पर कर
हालिया बजट प्रस्तावों में लाभांश के संदर्भ में कराधान नियमों में बदलाव किया गया है। कंपनियों के लिए इसे खत्म कर दिया गया है जबकि प्राप्तकर्ताओं/ शेयरधारकों के लिए उपयुक्त दर पर इसे लागू किया गया है। यह दर अत्यधिक धनाढ्य शेयरधारकों के लिए 43 फीसदी तक हो सकती है। हालांकि मॉर्गन स्टैनली के विश्लेषक ऐसा नहीं मानते हैं कि अधिक लभांश भुगतान के जरिये शेयरधारकों को रकम लौटाने के लिए कंपनियों में कोई तत्परता दिखेगी।
मॉर्गन स्टैनली के प्रमुख (इंडिया रिसर्च एवं इंडिया इक्विटी स्ट्रैटेजिस्ट) रिधम देसाई ने बजट के बाद एक नोट में लिखा, 'सरकार ने सितंबर 2019 में कॉरपोरेट कर की दरों में कटौती की थी जिससे कंपनियों को 1.45 लाख करोड़ रुपये की बचत होने का अनुमान लगाया गया था। वित्त वर्ष 2020 में डीडीटी के तौर पर करीब 650 अरब रुपये का संग्रह किया जा रहा है। हमारा मानना है कि कंपनियां कर में कटौती के अनुपात में लाभांश में वृद्धि नहीं करेंगी और कर में कटौती का अधिकांश रकम बचा लेंगी। अधिक लाभांश भुगतान करने वाली तमाम कंपनियों की आय में उतनी वृद्धि नहीं दिखेगी जिससे वे अधिक लाभांश को समायोजित कर सकें।'
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