इस्पात के दाम बढ़ते रहने पर संशय | अदिति दिवेकर / मुंबई February 07, 2020 | | | | |
मांग में सुधार के संकेत न होने के बावजूद घरेलू इस्पात उद्योग नवंबर से लगातार अपने उत्पादों के दाम बढ़ाता आ रहा है। इस्पात विकास एवं संवृद्धि संस्थान (आईएनएसडीएजी) के महानिदेशक सुषिम बनर्जी ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि मांग वृद्धि के ऐसे जरा भी संकेत नहीं है जिससे दामों में यह इजाफा कायम रखा जा सके। बुनियादी संरचना की मांग में अभी इजाफा नहीं हुआ है और वाहन क्षेत्र कमजोर चल रहा है। घरेलू इस्पात उत्पादक फरवरी के लिए उत्पादों के दामों में करीब 2,000 रुपये प्रति टन तक का इजाफा कर चुके हैं। बनर्जी ने कहा कि फरवरी की दाम वृद्धि भी स्टॉकिस्टों के पास रखे स्टॉक की मांग बढऩे की उम्मीद से हुई है। अब तक कोई मजबूत मांग नहीं है। कच्चे माल के अधिक दाम, वैश्विक स्तर पर इस्पात के दामों में इजाफा और मांग बढऩे की उम्मीद के कारण ही नवंबर के बाद से घरेलू इस्पात उत्पादकों ने हर महीने दाम बढ़ाए हैं। फिलहाल घरेलू बाजार में हॉट-रॉल्ड इस्पात के दाम प्रति टन 40,000 रुपये के स्तर पर चल रहे हैं जो वर्ष 2019 के मध्य में दर्ज किए गए 15 महीने के निचले स्तर प्रति टन 33,500 रुपये से अधिक हैं। हालांकि दामों का मौजूदा स्तर अक्टूबर 2018 में हॉट रॉल्ड के दर्ज किए गए 47,000 रुपये प्रति टन की तुलना में कम हैं।
टाटा स्टील, सज्जन जिंदल के नेतृत्व वाली जेएसडब्ल्यू स्टील, नवीन जिंदल की अगुआई वाली जिंदल स्टील ऐंड पावर और सरकारी स्वामित्व वाला भारतीय इस्पात प्राधिकरण (सेल) देश के शीर्ष इस्पात उत्पादकों में शामिल हैं। मुंबई स्थित एक कारोबारी ने पहचान उजागर न करने की शर्त पर बताया कि दामों में इजाफा करना ठीक है, सवाल दामों में इस इजाफे के कायम रहने का है। मांग है ही कहां? उद्योग के कुछ अधिकारियों की राय है कि वित्त वर्ष 21 के आम बजट में टिकाऊ उपभोक्ता वस्तुओं पर लगाए गए सीमा शुल्क से इस्पात बाजार में मामूली-सी मांग आ सकती है। बनर्जी ने कहा कि टिकाऊ उपभोक्ता वस्तुओं की हल्की-सी मांग घरेलू इस्पात उद्योग की मांग में जान फूंकने के लिए पर्याप्त नहीं है।
घरेलू इस्पात उद्योग की कुल मांग में सबसे बड़ा हिस्सा बुनियादी ढांचा क्षेत्र और वाहन उद्योग का रहता है। कुल इस्पात खपत का करीब 10 से 12 प्रतिशत का मामूली हिस्सा ही टिकाऊ उपभोक्ता वस्तुओं का रहता है। एडलवाइस सिक्योरिटीज के एक नोट में कहा गया है कि हमारे विचार से यह अपेक्षित मूल्य वृद्धि (फरवरी में) शायद पूरी तरह से कारगर न रहे क्योंकि जापान के फ्री ऑन बोर्ड दाम सीएफआर वियतनाम के दामों में गिरावट का अनुसरण कर सकते हैं। इसके अलावा जब चीन की कंपनियां 9 फरवरी को फिर से काम शुरू करेंगी तो चीन के दामों में गिरावट आ सकती है। इससे घरेलू कीमतों की तुलना में आयातित कीमतों में गिरावट आने के आसार हैं। संयुक्त संयंत्र समिति के आंकड़ों के अनुसार अप्रैल से मई के दौरान भारत का घरेलू इस्पात उपभोग 6.65 करोड़ टन रहा है जो पिछले साल की इसी अवधि के मुकाबले 3.65 प्रतिशत ज्यादा है, जबकि उत्पादन पिछले साल की तुलना में दो प्रतिशत अधिक 6.766 करोड़ टन रहा है।
उद्योग के अधिकारियों का मानना है कि यह बात परखने के लिए कि क्या दाम वृद्धि बनी रहेगी, घरेलू इस्पात उद्योग के लिए अगले दो से तीन महीने बहुत महत्त्वपूर्ण होंगे क्योंकि अधिक उपभोग की अवधि मई तक जारी रहेगी। मुंबई के कारोबारी और बंबई आयरन मर्चेंट्स एसोसिएशन के एक सदस्य ने कहा कि मांग बेहद कमजोर है और उत्पादक पूरी तरह से अवसरवादी बन रहे हैं। इस्पात के लिए जुलाई से सितंबर तक की अवधि को आमतौर पर सुस्त मांग वाले मौसम के रूप में माना जाता है क्योंकि मॉनसून की वजह से देश भर में औद्योगिक गतिविधियों में ठहराव आ जाता है। इस बीच भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) द्वारा आवास के लिए उपभोक्ता ऋण को बढ़ावा देने के लिए राहत के कुछ उपायों की घोषणा किए जाने के बाद कारोबारियों को रियल एस्टेट क्षेत्र से मांग में इजाफा होने की उम्मीद है। बनर्जी ने बताया कि अब तक उद्योग में केवल यही एकमात्र सकारात्मक बात देखी जा सकती है कि उपभोग के लिहाज से अनिश्चितता पूरी तरह खत्म हो चुकी है। इस वित्त वर्ष के दौरान कंपनियों को मांग में मंदी की वजह से पूंजीगत व्यय में कटौती करनी पड़ी है। उद्योग इस स्थिति से निकल चुका है। अब तक केवल यही एकमात्र वास्तविक सकारात्मक बात है।
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