वित्त मंत्रालय ने कपड़ा क्षेत्र के लिए ड्रॉबैक अनुसूची में संशोधन करते हुए एक अधिसूचना जारी की है। यह फरवरी से प्रभावी होगी। सूती उत्पादों के लिए यह ड्रॉबैक करीब 0.2 प्रतिशत होगा, जबकि मानव-निर्मित फाइबर और मिश्रित धागे वाले कपड़ों के लिए यह तकरीबन 0.4 से 0.6 प्रतिशत रहेगा। हालांकि इस घोषणा का स्वागत करते हुए निर्यातकों ने कहा कि सरकार को एफटीए (मुक्त व्यापार समझौते) पर हस्ताक्षर तथा राज्य व केंद्रीय करों और शुल्कों (आरओएससीटीएल) में छूट के निपटारे पर ध्यान देना चाहिए जिससे निर्यातकों की कार्यशील पूंजी प्रभावित हो रही है। यह अधिसूचना 4 फरवरी, 2020 से प्रभावी होगी। संशोधन के बाद सूती टी-शर्ट के लिए ड्रॉबैक दर मौजूदा 1.9 प्रतिशत की तुलना में 2.1 प्रतिशत हो जाएगी। मिश्रित धागे से बने कपड़े के लिए मौजूदा 2.9 प्रतिशत की तुलना में यह दर 3.5 प्रतिशत और मानव-निर्मित धागे वाले कपड़े के लिए मौजूदा 2.5 प्रतिशत की तुलना में यह दर तीन प्रतिशत होगी। निर्यातकों ने कहा कि यह इजाफा मामूली है और इस बात को लेकर संशय है कि इससे निर्यात में वृद्धि होगी। वर्ष 2018-19 में (अप्रैल से दिसंबर) सिले-सिलाए कपड़ों का निर्यात 11.363 अरब डॉलर था और वर्ष 2019-2020 में यह बढ़कर 11.457 अरब डॉलर हो गया। तिरुपुर से 24,000 करोड़ रुपये मूल्य का निर्यात करने वाले निर्यातकों के बड़े वर्ग का प्रतिनिधि करने वाले संगठन तिरुपुर एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन का कहना है कि निर्यातक ने केवल ज्यादा दर चाहते हैं, बल्कि वे मुक्त व्यापार समझौते भी चाहते हैं। उन्होंने अपनी बात केंद्र सरकार के सामने रखने का फैसला किया है। एक प्रमुख निर्यातक ने कहा कि संबंधित कर सहित जिस भी शुल्क और कर का भुगतान किया जाता है, वह जीएसटी, आरओएससीटीएल और ड्रॉबैक के रूप में वापस दिया जाता है। सरकार इससे ज्यादा नहीं देगी। वे केवल यूरोपीय संघ, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया और कनाडा के साथ एफटीए में शामिल हो सकते हैं। चिंता की एक अन्य बात यह है कि सरकार ने लंबित दावों का निपटारा नहीं किया है। उदाहरण के लिए, अकेले तिरुपुर की इकाइयों के लिए ही करीब 1,400 करोड़ रुपये लंबित हैं और सरकार ने इस सप्ताह की शुरुआत में ही आरओएससीटीएल लाभ के दावे की प्रक्रिया शुरू की है।
