कारोबारी वजहों से आत्महत्या करने की बढ़ी तादाद | सचिन मामबटा / January 22, 2020 | | | | |
अगर बॉलीवुड की मशहूर हस्ती अमिताभ बच्चन अपने मुश्किल दिनों में किसी से मदद मांग सकते हैं तो दूसरे लोगों को भी ऐसा करने में शर्मिंदगी महसूस नहीं होनी चाहिए। मुंबई के मनोरोग चिकित्सकों का कहना है कि मुश्किल वक्त में मदद मांगने से गुरेज नहीं होना चाहिए। अमिताभ भी जब आर्थिक परेशानियों के दौर से गुजर रहे थे तब उन्होंने यश चोपड़ा से अपनी फिल्म में कोई भूमिका देने की गुजारिश की थी। मनोरोग चिकित्सकों द्वारा यह सलाह देने की कुछ अहम वजहें भी हो सकती हैं। मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े मुद्दों के प्रति जागरुकता का अभाव और समाज में निंदा के डर से कारोबारी लोगों द्वारा आत्महत्या किए जाने की तादाद में वर्ष 2018 में बढ़ोतरी हुई जबकि इससे पिछले दो सालों में आत्महत्या की तादाद में कमी आई थी।
नैशनल क्राइम रिकॉड्र्स ब्यूरो (एनसीआरबी) के सरकारी डेटा के मुताबिक वर्ष 2018 में कुल 7990 कारोबारी लोगों ने आत्महत्या कर ली जो इससे पिछले साल के 7778 लोगों की आत्महत्या के मुकाबले 2.7 फीसदी अधिक था। आत्महत्या करने वाले लोगों के पेशे का जायजा लेने पर यह डेटा सामने आया है। कर्नाटक में सबसे ज्यादा 1,113 ऐसे मामले सामने आए। इसके बाद महाराष्ट्र (969) और तमिलनाडु (931) का स्थान है। ये राज्य सकल राज्य घरेलू उत्पाद के लिहाज से उच्च पायदान पर है लेकिन लोगों को कड़ी मेहनत के बावजूद अपने कारोबार से मुनाफा पाना मुश्किल साबित हो रहा है। मानसिक रोग की डॉक्टर और लेखक अंजलि छाबडिय़ा कहती हैं, 'अब अचानक लोगों को यह महसूस होने लगा है कि अगर आप पूरे दिन भी कड़ी मेहनत करते हैं तो जरूरी नहीं है कि आप पैसे कमा लेंगे। कई दफा लोग उन वजहों से भी शर्मिंदा हो जाते हैं और खुद को असहाय महसूस करते हैं जो उनके वश में नहीं है।'
एनसीआरबी के आंकड़े भी आत्महत्या की वजहों का जिक्र करते हैं। दिवालिया होने या कर्ज में फंसने की वजह से करीब 4970 लोगों ने आत्महत्या कर ली। 2018 में देश भर में आत्महत्या करने वाले लोगों में कारोबारी लोगों की तादाद 3.7 फीसदी तक रही। हैरानी की बात यह है कि यह इससे पहले के साल में हुई 5151 आत्महत्याओं के मुकाबले कम था। 2017 में कुल आत्महत्या की घटनाओं में कारोबारी लोगों द्वारा की गई आत्महत्या की तादाद 4 फीसदी तक थी। मुंबई के मनोचिकित्सक हरीश शेट्टी का कहना है कि यह आंकड़ा कम करके बताया जा सकता है। कई मामलों में दिवालिया होने की बात पता भी नहीं चलती है और ऐसे मामलों को आमतौर पर पारिवारिक वजह बता दिया जाता है। इसकी वजह यह भी है कि कारोबार में नाकाम होने की बात को शर्मिंदगी के तौर पर देखा जाता है। वह कहते हैं, 'कारोबारी नुकसान को कलंक के तौर पर देखा जाता है और इस बात को कोई परिवार आसानी से किसी से साझा नहीं करता है।' ऐसे ज्यादातर मामले में इसकी वजह पारिवारिक बता दी जाती है। ऐसी घटनाओं की तादाद 2017 के 30.1 फीसदी से बढ़कर 2018 में 30.4 फीसदी हो गई। हरीश शेट्टी कहते हैं कि पारिवारिक तनाव की स्थिति भी आर्थिक दबाव की वजह से बनती है। वर्ष 2018 में आत्महत्या की घटनाओं में बीमारी से जुड़ी आत्महत्या की तादाद 17.7 फीसदी तक रही। वहीं शादी से जुड़ी समस्याओं की वजह से ऐसी आत्महत्या की तादाद 6.2 फीसदी तक रही। वहीं कुल आत्महत्या में ड्रग और नशे की लत की वजह से आत्महत्या करने की तादाद 5.3 फीसदी रही।
2018 में आत्महत्या में कमी आई लेकिन दिवालिया होने की वजह से रोजाना आत्महत्या की 13 से अधिक घटनाएं हुईं। आत्महत्या की घटनाओं पर पेशे के आधार पर गौर किया जाए तो यह अंदाजा होगा कि कारोबारी लोग रोजाना 21 की दर से आत्महत्या करते हैं। केवल महाराष्ट्र में ही दिवालिया होने की वजह से 1541 लोगों ने आत्महत्या की और ऐसी घटनाओं के लिहाज से महाराष्ट्र अन्य राज्यों के मुकाबले आगे है। इसके बाद कर्नाटक का स्थान है जहां 1391 लोगों ने कारोबार की वजह से आत्महत्या कर ली। अगर शहर के लिहाज से जायजा लिया जाए तो बेंगलूरु में 142 लोगों ने दिवालिया होने की वजह से आत्महत्या कर ली। जबकि 2018 में मुंबई में केवल 20 लोगों ने ही कारोबारी वजहों से आत्महत्या की।
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