चुनाव से कुछ महीने पहले 2019 में देश के कई छोटे किसानों के बैंक खाते में पीएम- किसान (प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि) योजना के तहत 2,000 रुपये डाले गए। इसके साथ यह वादा भी किया गया कि अगर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में फिर से वापस आती है तब सभी श्रेणियों के किसानों को 4,000 रुपये और दिए जाएंगे। जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 22 दिसंबर को दिल्ली के रामलीला मैदान में जुटी भीड़ को संबोधित करते हुए कहा कि दिल्ली की 1,731 अवैध अवासीय कॉलोनी को अधिकृत किया जाएगा तब भाजपा को यही उम्मीद जगी कि जिस तरह लोकसभा चुनावों में पीएम-किसान का फायदा मिला ठीक उसी तरह पीएम-उदय (दिल्ली में प्रधानमंत्री अनाधिकृत कॉलोनी आवास अधिकार योजना) का फायदा दिल्ली के चुनावों में भी मिल सकता है।
निसंदेह पीएम-उदय योजना भाजपा की एकमात्र विश्वसनीय उपलब्धता होगी जिसके जरिये दिल्ली के नागरिकों को लुभाया जा सके। एक अनुमान के मुताबिक 40 लाख लोगों को इस चुनाव पूर्व हुई घोषणा के लाभार्थी के तौर पर देखा जा रहा है और ये लोग दिल्ली के 1.46 करोड़ मतदाताओं का लगभग एक-तिहाई और 2 करोड़ आबादी का 20 फीसदी हिस्सा है। कुछ दिन पहले ही भारतीय निर्वाचन आयोग द्वारा दिल्ली विधानसभा चुनावों की घोषणा करने से पहले ही केंद्रीय मंत्री हरदीप पुरी ने 20 लाभार्थियों को संपत्ति के दस्तावेज सौंपे।
भाजपा यह उम्मीद कर रही है कि 40 लाख में से बाकी मतदाता इस बात से प्रभावित हो सकते हैं कि 20 लोगों को संपत्ति के दस्तावेज मिल चुके हैं और वे पार्टी के पक्ष में मतदान करने का मन बना सकते हैं। कॉलोनी के केवल इन्हीं लोगों के घर को वैध घोषित नहीं किया जा रहा है। सैनिक फाम्र्स और छत्तरपुर सहित 67 अन्य पॉश कॉलोनी को इस बार छोड़ दिया गया है लेकिन यह वादा भी किया गया है कि अगले चरण के नियमीकरण के दौरान इन इलाकों को शामिल किया जाएगा। इन कॉलोनियों के दायरे को देखते हुए यह अंदाजा मिलता है कि भाजपा की इस पेशकश का असर 60-70 विधानसभा क्षेत्रों में देखने को मिल सकता है। करीब 10 विधानसभा क्षेत्रों की पहचान की गई है जहां कोई अवैध कॉलोनी नहीं है जिनमें मुस्लिम दबदबे वाला इलाका बल्लीमारन और मटिया महल शामिल है।
पीएम-उदय योजना के अमल करने के तरीके और समय से यह अंदाजा मिलता है कि भाजपा को अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली आम आदमी पार्टी (आप) को दिल्ली के आगामी विधानसभा चुनाव में बड़ी चुनौती मिलती दिख रही है। भाजपा के आत्मविश्वास की कमी की एक झलक इस फैसले में भी दिखती है कि पार्टी ने मोदी को दिल्ली में पार्टी का चेहरा बनाकर पेश किया है। वर्ष 2015 में पार्टी ने पुद्दुचेरी की उपराज्यपाल किरन बेदी को दिल्ली में मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर पेश किया था जो पार्टी के लिए घातक साबित हुआ था। हालांकि 2013 में जब हर्षवर्धन को मुख्यमंत्री का चेहरा बनाया गया था तब पार्टी सरकार नहीं बना पाई थी। महत्त्वपूर्ण योजना का नाम प्रधानमंत्री के नाम पर रखने और मोदी को दिल्ली में चेहरा बनाने की रणनीति से यह अंदाजा होता है कि पार्टी भी यह मान रही है कि मनोज तिवारी, विजय गोयल और हर्षवद्र्धन जैसे पार्टी के स्थानीय नेता भी दिल्ली में केजरीवाल के कद का मुकाबला नहीं कर सकते हैं।
इस दफा भाजपा ने जमीनी स्तर के चुनावी अभियान पर जोर दिया है। भाजपा अध्यक्ष और गृह मंत्री अमित शाह ने बड़ी चुनावी रैलियां आयोजित करने के बजाय बूथ स्तर के कार्यकर्ताओं को हर घर में जाने और मोहल्ला बैठक करने का निर्देश दिया गया है। कई सालों से यही रणनीति केजरीवाल ने अपनाई है। वर्ष 2013 और 2015 के चुनावों के दौरान आप कार्यकर्ता न केवल अवैध कॉलोनियों बल्कि घर-घर गए और इसके अलावा उन्होंने मध्यमवर्गीय आवासीय सोसायटी में भी दफ्तर के समय के बाद लोगों से मिलने और संपर्क साधने की रणनीति अपनाई ताकि स्थानीय उम्मीदवार के पक्ष में लोगों का मत जुटाया जा सके। आप को दिल्ली जैसे क्षेत्र के शहरी चुनाव में अपनी इस रणनीति का बेहद फायदा मिला जहां बड़ी चुनावी रैलियों की अपनी जटिलताएं हैं क्योंकि इसमें मतदाताओं के शामिल होने की अनिश्चितता के साथ-साथ भीड़ की उपस्थिति को लेकर भी सवाल खड़े होते हैं। पार्टी ने 2015 के चुनाव में दिल्ली की 70 विधानसभा सीटों में से 67 सीट पर ऐतिहासिक जीत दर्ज की जबकि 2013 में अपनी पहली चुनावी पारी के दौरान ही इसने 28 सीटें जीतकर कांग्रेस के साथ कुछ वक्त की सरकार बनाई थी। 2013 की चुनावी जीत की सफलता में निजी तौर पर संपर्क साधने और प्रचार के स्थानीय तरीकों को अपनाने की अहम भूमिका थी।
ऐसा लगता है कि भाजपा केजरीवाल को भ्रष्टाचार या फिर भाई-भतीजावाद के मोर्चे पर चुनौती देने के लिए भाजपा के पास कुछ भी नहीं है। चुनाव के दौरान भाजपा के स्थानीय नेताओं ने दिल्ली के मुख्यमंत्री के सामने कुप्रशासन या खराब प्रदर्शन जैसे आरोप रखे गए हैं लेकिन उनके सवालों का पर्याप्त जवाब उनके पास है।
ऐसे में मोदी, पीएम-उदय और शाह के आप से प्रेरित चुनावी अभियान की योजना का भाजपा के लिए क्या अर्थ है? 2015 के चुनावी अभियान के दौरान भी मोदी लहर के जादू को छोड़कर भाजपा के पास बताने लायक कोई उपलब्धि नहीं थी। हालांकि इसके बावजूद पार्टी अब भी 32.19 फीसदी वोट हिस्सेदारी पाने में सफल है। हालांकि इसने 2015 के चुनावों में इसे 70 विधानसभा सीटों में से महज 3 सीटें मिली थीं।
आप को न केवल ऐतिहासिक 67 सीटें मिलीं बल्कि कोई भी विपक्षी दल टक्कर नहीं दे पाया। वर्ष 2015 में आप के केवल चार उम्मीदवारों की जीत का मार्जिन 5 फीसदी से कम था। इस बार भी भाजपा न केवल मोदी के चेहरे के साथ-साथ चुनाव से पहले की पेशकश करते हुए मतदाताओं को लुभाने की रणनीति बना रही है। लेकिन क्या भाजपा के ये कदम लोकप्रिय केजरीवाल को चुनौती देने के लिए काफी होंगे? 11 फरवरी को इस सवाल का जवाब मिल सकता है।
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