शाह की छाया से बाहर होंगे पार्टी के नए अध्यक्ष नड्डा | अर्चिस मोहन / January 20, 2020 | | | | |
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का नया अध्यक्ष बनने पर जगत प्रकाश नड्डा का स्वागत किया और पार्टी कार्यकर्ताओं से कहा कि वे नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) पर विपक्षी दलों द्वारा फैलाई जा रही गलत सूचनाओं का खंडन करने के लिए लोगों से संपर्क करें। 59 वर्षीय नड्डा मोदी सरकार के पहले कार्यकाल के दौरान केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री थे और जून के मध्य में उनकी नियुक्ति भाजपा के कार्यकारी अध्यक्ष के पद पर हुई थी। भाजपा 'एक व्यक्ति एक पद' के सिद्धांत का अनुसरण करती है और इसके अनुसार अमित शाह को केंद्रीय गृह मंत्री पद की शपथ लेने के साथ ही पार्टी अध्यक्ष का पद छोड़ देना चाहिए था लेकिन वह गृहमंत्री बनने के बावजूद शाह सात महीने तक पार्टी अध्यक्ष के पद पर भी बने रहे। शाह के ही नेतृत्व में पार्टी झारखंड, हरियाणा और महाराष्ट्र के विधानसभा चुनावों में उतरी। शाह ने जुलाई 2014 में पार्टी अध्यक्ष की कमान तब संभाली थी जब केंद्रीय गृह मंत्री बनने के बाद राजनाथ सिंह को भाजपा अध्यक्ष का पद छोडऩा पड़ा था।
मोदी ने भाजपा के राष्ट्रीय मुख्यालय में मौजूद लोगों को याद दिलाया कि नड्डा 1990 के दशक से ही उनके करीबी रहे हैं। मोदी उन दिनों हिमाचल प्रदेश में पार्टी के संगठनात्मक मामलों की जिम्मेदारी संभाल रहे थे और नड्डा भाजपा युवा इकाई के प्रमुख थे। मोदी ने उन दिनों को याद करते हुए बताया कि वह नड्डा के साथ पार्टी के कामकाज के सिलसिले में दोपहिया वाहन से घूमा करते थे। पार्टी अध्यक्ष के तौर पर अपने तीन साल के कार्यकाल में शाह की छाया से बाहर आना ही नड्डा की सबसे बड़ी चुनौती है क्योंकि पार्टी के मामलों में शाह की पकड़ जारी रहेगी। इसकी वजह यह भी है कि हाल में जो नेता प्रदेश प्रभारी के तौर पर चुने गए हैं वे शाह के करीबी माने जाते हैं।
शांत स्वभाव वाले नड्डा पर्दे के पीछे ही रहकर काम करने में खुद को सहज पाते हैं और उनकी ख्याति पार्टी को जमीनी स्तर पर संगठनात्मक तरीके से मजबूत बनाने वाले नेता के तौर पर है। उन्हें अब न केवल इस साल के आखिर में पार्टी को बिहार विधानसभा चुनावों के लिए तैयार रखना है बल्कि मई 2021 में पश्चिम बंगाल और असम के विधानसभा चुनाव की चुनौतियों के लिए भी मजबूती से खड़े रहना है। नड्डा निर्विवाद रूप से पार्टी अध्यक्ष चुन लिए गए क्योंकि नामांकन प्रक्रिया के बाद वही एकमात्र उम्मीदवार थे। शाह ने कहा कि भाजपा दूसरे राजनीतिक दलों के मुकाबले इसी वजह से अलग है क्योंकि यहा किसी खास जाति या परिवार के लोग नेतृत्वकर्ता की भूमिका में नहीं आते हैं। नड्डा के पिता पटना विश्वविद्यालय के कुलपति रहे हैं
वैसे नड्डा का ताल्लुक किसी राजनीतिक परिवार से नहीं रहा है लेकिन उनकी शादी राजनीतिक परिवार में हुई है। उनकी सास जयश्री बनर्जी का उनके राजनीतिक जीवन में बड़ा प्रभाव रहा है जो जबलपुर से भाजपा की पूर्व सांसद रही हैं और कई दफा मध्यप्रदेश में विधायक रहने के साथ-साथ राज्य की पूर्व मंत्री भी रही हैं। हिमाचल प्रदेश से ताल्लुक रखने वाले नड्डा का लालन-पालन पटना में ही हुआ और वह पटना विश्वविद्यालय और हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय की छात्र राजनीति में सक्रिय रहने के साथ ही 1991 में भाजपा की युवा इकाई के प्रमुख बने। इसके बाद 1993 में हिमाचल प्रदेश में विधायक चुने गए और 2007 में राज्य में मंत्री बन गए।
अपने भाषण में कांग्रेस के नाम का जिक्र किए बगैर नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ विरोध करने वालों का जिक्र करते हुए कहा, 'जिन्हें लोगों ने खारिज कर दिया है उनके पास सीमित तरीके ही बचते हैं ताकि वे झूठ फैला सकें। भाजपा के कार्यकर्ताओं को देश के लोगों से ताकत मिलती है। हमें उन लोगों से प्रमाण लेने की जरूरत नहीं है जो हमें कभी स्वीकार नहीं करेंगे।' मोदी ने कहा, 'कुछ लोग ऐसे हैं जो हमें निर्देशित करने वाले सिद्धांतों को पसंद नहीं करते। इसी वजह से वे समस्याएं खड़ी करने की कोशिश करते हैं।'
प्रधानमंत्री ने दावा किया कि देश भर में नागरिकता संशोधन कानून के पक्ष में रोजना 10-15 रैलियों का आयोजन हो रहा है जिनमें 50,000 से एक लाख लोग हिस्सा ले रहे हैं लेकिन मीडिया इन रैलियों को कवर नहीं करता। उन्होंने कहा कि यह खेल जारी रहेगा ऐसे में कार्यकर्ताओं को लोगों से सीधे तौर पर संपर्क साधने की जरूरत है।
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