सेना के तीनों अंगों की एकीकृत थिएटर कमान पर विचार जरूरी | दोधारी तलवार | | अजय शुक्ला / January 20, 2020 | | | | |
सेना के उच्च प्रबंधन को मजबूत करने की चर्चाओं में आम तौर पर दो सुधारों की जरूरत पर सहमति होती है। पहली जरूरत सेना के तीनों अंगों- थलसेना, नौसेना और वायुसेना के बीच तालमेल बिठाने के लिए एकीकृत प्रमुख की नियुक्ति है। भारत के पहले सैन्य बल प्रमुख (सीडीएस) की नियुक्ति के साथ आंशिक तौर पर इसे पूरा किया जा चुका है। सीडीएस को तीनों सेनाओं के बीच समन्वय बनाने का जिम्मा दिया गया है लेकिन वह ट्राई-सर्विस मसले पर ही सरकार को परामर्श देगा और तीनों सेनाओं के प्रमुख अपने बल के बारे में पहले की तरह सलाह देते रहेंगे।
अधिकतर विशेषज्ञ इस जरूरत पर सहमत हैं कि तीनों सेनाओं को साथ आकर ट्राई-सर्विस लड़ाकू कमान बनानी चाहिए। एक भौगोलिक क्षेत्र में तीनों सेनाओं की कमान अलग होती है, मसलन सेना की उत्तरी कमान, वायुसेना की पश्चिमी कमान और नौसेना की दक्षिणी कमान। तर्क यह रहा है कि तीनों सेनाओं की एकीकृत कमान बनाकर यह अलगाव खत्म किया जाए। इस कमान को जंग की स्थिति में लड़ाकू अभियान चलाने के लिए थल सेना, नौसेना और वायुसेना के जरूरी सभी अधिकार होंगे। अंडमान एवं निकोबार कमान में ऐसी एकीकृत कमान पहले से मौजूद है लेकिन उस प्रायोगिक अनुभव को आगे नहीं बढ़ाया गया। एकीकृत कमान की अवधारणा सबसे पहले अमेरिका ने लागू की थी। उसने 1947 में पांच क्षेत्रों के लिए पांच युद्धक कमान गठित की थी। मध्य कमान, अफ्रीका कमान और हिंद-प्रशांत कमान जैसे नाम पूरी दुनिया को ही कवर करते थे। चीन की सेना ने भी 2016 में यह मॉडल अपनाते हुए पांच संयुक्त थिएटर कमान में पुनर्गठन किया।
साझा नेतृत्व जहां सैन्यबलों के पुनर्गठन और उपकरणों की खरीद में किफायत बरतने में मदद करता है, वहीं साझा थिएटर कमान ढांचा लागू करने के पहले काफी सोच-विचार करना होगा। भारतीय वायुसेना ने थिएटर कमान व्यवस्था का लगातार विरोध किया है। हमें उसकी दलीलों पर ध्यान देना चाहिए।
पहली, लड़ाकू विमानों के तीव्र रफ्तार से उड़ान भरने और तेजी से भौगोलिक दायरा बदलने को आधार बनाते हुए वायुसेना कहती है कि पूरा भारत एक ही भौगोलिक थिएटर है। वहीं अपेक्षाकृत धीमी रफ्तार वाली थलसेना और नौसैनिक पोतों को भौगोलिक आधार पर एक समूह में रखना तर्कसंगत लगता है। लेकिन यह भी सही है कि लड़ाकू विमान जिस तरह मिनटों में ही दूसरी जगह जा सकते हैं, उसी तरह वे एक से दूसरी लड़ाकू भूमिका भी अपना सकते हैं। पाकिस्तान में बालाकोट के आतंकी शिविर पर गत फरवरी में हुए हमले के दौरान मिराज-2000 विमानों ने मध्य कमान में स्थित ग्वालियर से उड़ान भरी थी और पश्चिमी थिएटर से भी दूर के निशाने पर धावा बोला था। उस अंतर-थिएटर अभियान में मिराज विमानों ने 1,500 किलोमीटर से अधिक उड़ान भरी और हवा में ही ईंधन भरा गया। ऐसे ही किसी अभियान में लड़ाकू विमान ग्वालियर से उड़ते हुए पूर्वी थिएटर में जाकर मैकमोहन रेखा के पार भी हमला कर सकते हैं। इसमें उड़ान भरने से लेकर निशाना लगाने तक केवल एक घंटे का वक्त लगेगा और हवा में ईंधन भरने की भी सीमित जरूरत पड़ेगी। इसकी वजह यह है कि मिराज-2000 विमान वापस लौटते समय आसानी से तेजपुर या चाबुआ के एयरफोर्स स्टेशन पर उतरकर ईंधन भर सकते हैं। एक लड़ाकू विमान के लिए दूसरे कमान क्षेत्र में जाकर कार्रवाई करना बेहद आसान है।
दूसरी, ऐसे अभियानों में अलग-अलग थिएटरों के बीच समन्वय बनाना कठिन है। पाकिस्तान और चीन के हवाई क्षेत्र में जाकर हमला करने के लिए आज एक पूरा पैकेज चाहिए। हमलावर विमान को वायु प्रतिरक्षा एस्कार्ट, इलेक्ट्रॉनिक जंगी विमान, हवा में ईंधन भरने वाले विमान और हवाई चेतावनी एवं नियंत्रण प्रणाली की भी जरूरत होगी। यह पैकेज कई एयरबेस से जुटाए विमानों से ही तैयार होगा क्योंकि एक बेस में सभी मौजूद नहीं होती हैं। ऐसे में सभी तरह के विमानों के उड़ाने भरने में बेहद सटीक समन्वय जरूरी होगा ताकि तय समय पर वे उपलब्ध रहें। लेकिन अलग-अलग थिएटर कमान में बांटे जाने पर ऐसा होना मुश्किल होगा। हरेक थिएटर कमांडर अपने काम को सबसे आगे रखेगा और दूसरे थिएटरों में हमले के लिए संसाधन देने में हिचकेगा।
तीसरी, वायुसेना की युद्धक क्षमता महज 28 स्क्वाड्रन है। इन्हें अगर तीन या चार थिएटरों में बांट दिया जाए तो स्थिति कमजोर हो जाएगी। विशाल वायुसेनाएं ही अपने विमान अलग थिएटर कमान में देने का जोखिम उठा सकती हैं। भारत का हवाई क्षेत्र चीन के पश्चिमी थिएटर कमान से भी छोटा है, लिहाजा भारतीय वायुसेना एक थिएटर का ही हिस्सा रह सकती है।
चौथी, एकल थिएटर आधार पर परिचालन के लिए वायुसेना को नियंत्रण एवं नियोजन केंद्रीकृत करना होगा जबकि क्रियान्वयन को विकेंद्रित रखना होगा। जंगी स्क्वाड्रनों के अपने स्थायी ठिकाने हैं लेकिन किसी भी थिएटर में अभियान अंजाम देने के लिए एक पायलट को दूसरी जगहों पर भेजकर अनुभव दिलाना होगा। इस तरह का लचीलापन लाना मुश्किल होगा।
पांचवीं, भारत के हवाई क्षेत्र को सुरक्षित रखने के लिए वायुसेना को केंद्रीकृत नियंत्रण की जरूरत है। वायु सुरक्षा निगरानी को स्वचालित नेटवर्क आईएसीसीएस से अंजाम दिया जाता है। एस-400 और एमआर-सैम प्रणालियों के इस साल लागू हो जाने पर स्थिति साफ हो जाएगी। अंतरिक्ष की निगरानी के लिए केंद्रीकृत नियंत्रण चाहिए।
वैसे सीडीएस ने कहा है कि भारत एकीकृत थिएटर कमान में दूसरे देशों की आंख मूंदकर नकल नहीं करेगा और फैसला पूरी तरह देश की जरूरतों पर आधारित होगा। यह भी सच है कि सेना की अधिकांश कमान में नौसेना की कोई भूमिका नहीं है। ऐसे में हमें एकीकृत ट्राई-सर्विस ढांचा बनाने के बजाय इस बारे में सोचना चाहिए कि युद्ध शुरू होने पर तीनों सेनाओं की समन्वित मारक क्षमता किस तरह बढ़ाई जा सके।
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